देश की तरक्की के लिए विचारों का एक होना जरूरी 


सलीम रज़ा
हिन्दुस्तान ही एक ऐसा देश है जहां विभिन्न धर्म ,सम्प्रदाय,पंथ और विभिन्न संस्कृतियों को मानने वाले लोग रहते हैं।हिन्दुस्तान ही एक ऐसा देश है जहां अनेकों भाषायें बोली और पढ़ी जाती हैं, ऐसे बहुभाषी, बहुधर्मी होने के बाद भी राष्ट्रीय पटल पर सब साथ-साथ हैं जो राष्ट्रीय एकता की परिभाषा को बयां करता है। इस बात मे कोई शको-सुवह नहीं हैं कि ये एकता की भावना ही हमारे राष्ट्र की एकता का मुख्य आधार स्तम्भ है। अब हमारा देश और हमारा राष्ट्र में भी अंतर है क्योंकि देश सीमाओं से घिरा होता है और राष्ट्र भावनाओं से बनता है, क्योंकि राष्ट्र का निर्माण देश के लोगों की भावनाओं से होता है कहने का मतलब साफ है कि जब तक देश के लोगों की विचारधारा मेल नहीं खाती तब तक वह देश राष्ट्र कहलाने का कोई हक नही रखता। एकता की मिसाल हिन्दुस्तान ऐसे देश से ज्यादा और कौन देश दे सकता है, जब अंगे्रजों की गुलामी से निजात पाने के लिए सभी धर्मों के लोगों ने मिलकर अंग्रेजों से लोहा लेते हुए देश को आजाद कराया था। कहते हैं माला जब तक अपने स्वरूप को नहीं खोती है जब तक उसके मोती एक धागे में पिरोये रहते है,ं लेकिन माला टूटने के बाद बिखरे हुये मोतियों का कोई स्वरूप नहीं रह जाता वो सिर्फ मोती ही रहता है न की माला। हमारा देश कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक अपनी आभा के लिए जाना जाता है। कई तरह की विविधताओं से भरे होने के बावजूद देश को एक सूत्र मे पिरोने के लिए राष्ट्रीय एकता  की भावना बहुत जरूरी है। एकता की ताकत को तो हम सब अच्छी तरह से जानते हैं लेकिन फिर भी कुछ ऐसी बाते हैं जिन्हें अपनाया जाता है तो हम अपने देश को और ज्यादा संगठित और प्रगति के पथ पर ले जाने में सहायक हो सकते हैं। 


हिन्दुस्तान की एकता और अखंडता को लेकर भी सवाल उठाये जाते रहे हैं, हिन्दुस्तान की एकता के बारे में अगर हम और पुख्ता होना चाहते हैं तो हमें इतिहास के पन्नों को पलटना जरूरी भी है, उसके लिए 300 ईसा पूर्व चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन काल हो या आचार्य चाणक्य या अंग्रेजी शासन काल हो या 1857 ईसवी में मंगल पांडे के द्वारा पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में देश की आजादी के लिए उठाया गया विद्रोह का कदम हो ये सारी बातें देश की एकता और अखंडता की कहानी बताती हैं। हिन्दुंस्तान में 19 नवम्बर को राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया जाता है, दरअसल एकता का मतलब होता है मिलजुलकर रहना, सबसे बड़ी बात है कि एकता एक तरह से मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया या एक तरह की भावना है जो राष्ट्र में अमनो अमन भाई-चारे के साथ देश के प्रति अपनत्व की भावना प्रदर्शित करती है इसी को एकता कहते हैं, जिसका मतलब ही होता है कि देश के सभी धर्मों में आपसी भिन्नताये, विचारों और विभिन्न आस्थाओं के होते हुये भी आपसी प्रेम भाई-चारा,एकता का बना रहना। राष्ट्रीय एकता में शारीरिक समीपता कोई मायने नहीं रखती जितना की मानसिक,बौद्धिक, वैचारिक और भावनात्मक करीबी भी बहुत जरूरी है। सवाल ये उठता है कि आखिर देश की एकता और अखंडता को अलग चश्मे से देखने वाले ने फिर उस बात को मजबूत कर दिया जिसमे कहा गया था कि भारत में एकता नहीं थी। दरअसल सियासी विचारधारा ने ही लोगों के मन को विचलित किया जिसके चलते देश की एकता और अखंडता के बीच खडा हो गया अलगाववाद आखिर ये आया कहां से जिसने एकता और अखंडता को खंडित करने का काम किया है।


 हिन्दुस्तान में अलगाववाद की जड़ें जमना शुरू हो गईं ये हालात बहुत दुश्कर हैं जो देश की और समस्याओं से ज्यादा भयावह रूप ले रही हैं जिसकी तस्वीर बहुत ही ज्यादा खतरनाक है। हिन्दुस्तान ने अनेकानेक समस्याओं का सामना बहुत हिम्मत के साथ किया इसमें देश की आजादी एक मिसाल है लेकिन उसके बाद हिन्दुस्तान पाकिस्तान का बंटवारा जो एक त्रासदी बन गया था,उसके बाद 1992 में अयोध्या-बाबरी मामला जिसमें हिन्दंु-मुस्लिम के बीच पैदा हुई दरार जिसने एक कड़वे अनुभव और पीड़ा का अहसास कराया था,उसीके बाद से हिन्दंु-मुस्लिम के बीच नफरत के अंकुर निकल आये हैं। हिन्दुस्तान में अब भी एक लक्ष्मण रेखा छूआछूत को लेकर खींच दी गई जिसे अगर हम देश की एकता में बाधा कहें तो शायद अतिश्योक्ति नहीं होगी।दूसरी सामाजिक बाधा ,भाषा की बाधा और नाना प्रकार की सामाजिक बाधायें हमारे देश को पीछे ले जाने का काम कर रही हैं। हमारी सरकार देश में विविधता में एकता लाने के लिए भी काफी कुछ कर रही है कई तरह के नियम कानून भी बना रही है लेकिन मेरा मानना है कि नियम कानून तब तक प्रभावी रूप अख्तियार नही कर सकते जब तक देश का हर नागरिक अपने दिमाग को बदलेगा नहीं। अगर वो अपनी इच्छाशक्ति से अपना ब्रेन वाश नहीं करेगा तब तक स्वभाविक रूप से विविधता में एकता नहीं लाई जा सकती है। देश के अन्दर सामाजिक समस्याओं के इजाफे में उत्तरोत्तर वृद्धि होना भी राष्ट्रीय एकता और अखंडता के रास्ते मे बाधक हैं। देश के सभी नागरिकों को राष्ट्रीय एकीकरण के असली मायनों उसके उद्देश्यों और जरूरतों को समझना भी जरूरी हैं।



बहरहाल, हिन्दुस्तान अपनी विविधता में एकता के लिए जाना जाता है अगर हम राष्ट्र का विकास देखना चाहते हैं तब हमें एक दूसरे के विचारों को स्वीकारना होगा लेकिन हिन्दुस्तान में एक समस्या है यहां हर कोई अपने धर्म को बेहतर बताने की कोशिश करता है, इसलिए उसका मानना भी है कि वो जो कुछ भी कर रहा है वो बिल्कुल सही है, अपने निहित स्वार्थ के लिए और खुद को अववल साबित करने के लिए विभिन्न धर्म,संप्रदाय,पंथ,नस्लों के यहां रह रहे लोग शारीरिक, भावनात्मक, बहस और बेमतलब के तज़करों के कारण आपस में लड़ते झगड़ते देखे जाते है । इस तरह के  माहौल में एकजुटता का बन्धन उनके लिए कोई मायने नहीं रखता,उनके पास समय ही नहीं रहता कि वो एकजुट होकर अपने राष्ट्र के बारे में सोंच सकें उनकी ऐसी हरकतों के चलते वो सिर्फ राष्ट्रीय एकता कें रास्ते में रोड़ा बनते है ंजिसके चलते हमारे देश की प्रगति के पहिये भी थम जाते हैं। 


टिप्पणियाँ