कविता-बचपन खेला खेले
सावन महीना दिल जले मन रोये
यादों की समिधा में नींदों का हवन होये
बचपन खेला खेले भरी जवानी सोये
आता बुढापा देख ये मानुस मन रोये
मन कपटी काजल की कोठरी हुआ
फिर तन रगड़ रगड़ के कैसे गोरा होये
सपने रूठे हैं लगती नींदे भी झूठी
जाग रहे अरमान फिर हम कैसे सोये
साजन बने गैर की बाहों का गहना
सजनी रो रोकर अपने दीदा खोये
मन घायल मौसम ए इश्क में तड़पे
तन प्यासा परिंदा रह रह आपा खोये
आरती त्रिपाठी
सीधी मध्य प्रदेश
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