महंगाई का गठबंधन और लाचारगी सहीराम


सहीराम
जिन लोगों ने यह मान लिया था कि गठबंधनों का दौर अब चला गया है, वे यह देख लें कि गठबंधन फिर लौट आए हैं। गठबंधन कोई गया वक्त थोड़े ही था, कोई कमान से निकला तीर थोड़े ही था, जुबान से निकाली बोली और बंदूक से निकली गोली थोड़े ही थी कि वह लौटता नहीं। देख लीजिए, वह लौट आया है। वैसे सच्चाई तो यह है कि वह गया ही कब था। और आज उसे लौटाकर ला रहे हैं तो वही लोग ला रहे हैं जिन पर उसे खदेड़ देने का जिम्मा था। आज वही उसे आदर सहित ला रहे हैं। बात सिर्फ राजनीति की नहीं है जनाब। लगता है महंगाई का भी पुराना गठबंधन लौट आया है। पहले प्याज महंगा हुआ। प्याज वैसे भी प्याज नहीं है। वह राजनीति की धड़कन है। बढ़ जाए तो समझ लेना चाहिए कि राजनीति में कुछ गड़बड़ है। वह किचन में आंसू निकले तो अच्छी है, लेकिन जब वह सब्जी मंडी में रूलाने लगे तो समझ लेना चाहिए अब बदलाव का वक्त आ गया। सच मानिए जनाब प्याज, प्याज नहीं है। वह राजनीति का आईना है। अगर सत्ताधारी दल उसमें अपना चेहरा देख सके और कुछ धो-पोंछकर उसे दर्शनीय बना सके तो अच्छी बात है, वरना दुत्कार तो इंतजार कर ही रही होती है। प्याज राजनीति का थर्मामीटर है। वह बता देती है कि पारा सामान्य से कितना ज्यादा बढ़ गया है।
वैसे तो अकेला प्याज ही सरकारें पलट देने का माद्दा रखता है, पर अगर उसके साथ टमाटर भी मिल जाए तो यह जोड़ी अपराजेय हो जाती है। टमाटर की लाली को अगर आप समझ सकते हैं तो समझ लीजिए कि वह प्रेमिका के गालों की लाली नहीं है, वह जनता के तमतमाने की लाली है और उसके लाल-पीला होने की लाली है। वह जनता के गाल पर पड़े थप्पड़ की लाली है। वह उसकी आंखों में उतर आए खून की लाली है। हमारे नेताओं को आदत है कि जब प्याज महंगा होता है तो वे प्याज बेचने लगते हैं, लेकिन जब टमाटर महंगे होने लगते हैं तो वे उपदेश देने लगते हैं कि टमाटर मत खाओ, इससे पथरी होती है। इससे अच्छा सेब क्यों नहीं खाते। मतलब फ्रांस की उस महारानी का वंश अभी खत्म नहीं हुआ है, जिसने भूखी जनता से कहा था कि रोटी नहीं है तो केक खाओ। और जनाब अब तो प्याज और टमाटर के साथ चार सौ रुपये किलो होकर लहसुन भी जुड़ गया, वैसे ही जैसे सरकार बन जाने के बाद उससे निर्दलीय जुड़ जाते हैं। उनके जुडऩे से जिस तरह से सरकार पक्की हो जाती है, वैसे ही महंगे प्याज-टमाटर के साथ अब लहसुन ने जुड़कर महंगाई को एकदम पुख्ता कर दिया है। अब यह तय है कि यह लंबी चलेगी, स्थायी सरकार की तरह।


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