प्यार
प्यार से प्यार बांटना चाहिए।
दर्द को मुस्कराहट में बदलना चाहिए।
हैं ग़म मेरी ज़िन्दगी में बहुत।
सलीक़े से इसे सहना चाहिए।
मंज़िलें पाकर भी मायूस हैं जो।
अपनी तिश्नगी को वश में रखना चाहिए।
अपने किरदार पर न इतरा ऐ इंसां।
वक्त की नज़़ाकत को समझना चाहिए।
वक्त न साथी था न होगा।
अपना रहबर मज़बूत होना चाहिए।
ये ज़िन्दगी बुलबुले के मानिंद है।
हर दिल से दिल मिलाकर जीना चाहिए।
ख्वाब रात में ही आते हैं अक्सर।
दिन में कभी ख्वाब नहीं देखना चाहिए।
अपनी तो हसरत है ये ''रज़ा''।
डब.डबाती आंखों से निकले आंसू पोंछना चाहिए।
सलीम रज़ा (पत्रकार,लेखक)
देहरादून,उत्तराखण्ड।
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