राज्य स्थापना दिवस- युवा अवस्था मे ही वृद्ध नजर आने लगा उत्तराखण्ड।
सलीम रज़ा
उत्तराखण्ड को जन्म लिए 20 साल का अर्सा गुजर गया लेकिन जिस सपने के लिए आन्दोलनकारिओं ने अपनी शहादत दी ,अपने सीने पर गोली खाई लेकिन उनका सपना सियासत की भेंट चढ़ चुका है। बिषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखण्ड हिमालयी पर्वत श्रंखला को अलग राज्य बनाने के पीछे जितने भी आन्दोलन हुए जिसमें आन्दोलनकारियों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी भी बावजूद उसके पहाड़ के लोगों ने अपनी उम्मीदों को बरकरार रखते हुये आन्दोलन को जारी रखा था। यूं तो उत्तराखण्ड को अलग राज्य बनाने की मांग के आस्तित्व में आने के बाद पहाड़ के लोगों को लगने लगा कि अब उनकी सारी आकांक्षायें पूरी हो जायेगी लेकिन शायद राजनीति के आकाओं को कुछ और ही समझ में आने लगा। लग गये जोड़ तोड़ करने मे विकास के नाम पर होने लगी बंदरबांट,, रोजगार के रास्ते ऐसे बन्द कर दिये कि युवा बेचारे अब अधेड़ नजर आने लगे। डिग्रियां जो कभी पाकर उनकी आशाओं को पंख लग गये थे इन सियासतदाओं ने अपनी स्वार्थ सिद्धि के चलते कतर दिये। प्रदेश में शिक्षा का बुरा हाल है स्वास्थ और चिकित्सा व्यवस्था प्रदेश मे चरमरा गई है, मेडिकल में फीस की अतिवृद्धि से छात्रों का डाक्टर बनने का सपना अब सपना बन कर रह गया है।
वोटों के धु्रवीकरण के चलते पहाड़ और मैदान के बीच खाई बनाने का काम बदस्तूर जारी है। पहाड़ के लोकपर्व पर सरकार उदासीन है तो बंगाल बिहार की तस्वीर पेश की जा रही है। हर स्थापना दिवस पर घोषणाओं का अंबार लगता है लेकिन पहले की अधूरी रह जाती है तब तक नई जुड़ जाती हैं। प्रदेश में सड़कों का बुरा हाल है लोग जान हथेली पर रखकर चल रहे है लेकिन सरकारी अमला काले पैचेज भरने में मस्त । प्लास्टिक के खिलाफ अभियान चलाकर मानव श्रंखला बनाई जाती है तो दूसरी तरफ प्लास्टिक स्ट्रििप की बेरिकेड लगाकर ये बताया जाता है कि आप जागरूक नागरिक बने हम तो सिर्फ खानापर्ति कर हे है। रोजगार की तलाश में पहाड़ं का युवा दूसरे प्रदेशों में भटक रहा है लेकिन यहां सरकारी ऐशो आराम में कोई कमी नहीं है। प्रदेश कर्ज के बोझ तले दबता चला जा रहा है मुझे ये कहने में जरा सा भी संकोच नही है कि भाजपा और कांग्रेस दोनो की सोच भले ही अलग हो लेकिन लेकिन सत्ता सुख पाने के बाद काम करने की शैली दोनों की एक सी ही है।
दोनों ही सरकारें कर्ज लेने मे माहिर नजर आती हैं कर्ज उठाने की भी कुछ शर्ते होती हैं यानि कर्ज का इस्तेमाल उत्पदक इखराजात मे होना चाहिए जिससे विकास अपनी प्रगति पर रहे। लेकिन ये बहुत अफसोस और चिन्ता का विषय है कि प्रदेश की सरकारें बाजार से कर्ज उठाकर वेतन, भत्तों और पेंशन जैसे अनुत्पादक खर्चों में उड़ा रही है। इन सत्ताधारियों का ड्रामे की हदतो देखिये जब ये सत्ता से बाहर होकर विपक्ष में बैठेंगे तो इनका प्रमुख हथियार कर्ज बन जाता है। अगर हाल ऐसा ही रहा तो प्रदेश पर कर्ज का इतना बोझ हो जायेगा कि प्रदेश अपने यौवन में ही वृद्ध नजर आने लगेगा ।
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