दिल्ली हाई कोर्ट के फैसलों से 2019 में कई बड़े नामों को लगा बड़ा झटका
नयी दिल्ली/ राजनीति की जानी.मानी हस्तियों, वरिष्ठ अधिकारियों और कॉरपोरेट जगत के बड़े नामों को 2019 में दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसलों से झटके पर झटके मिले। नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस नेताओं सोनिया गांधी और राहुल गांधी की बात हो या आईएनएक्स मीडिया मामले में पी चिदंबरम की। सीबीआई के शीर्ष अधिकारियों के बीच मतभेद का मामला हो या घोटालों के आरोपों से घिरी इंडियाबुल्स और भूषण स्टील का मामला। इन सभी मामलों में उच्च न्यायालय ने सख्त रुख अपनाया। उच्च न्यायालय ने आईएनएक्स मीडिया भ्रष्टाचार मामले में पी चिदंबरम को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया। ये फैसला चिदंबरम के लिए महंगा साबित हुआ, क्योंकि अगले ही दिन नाटकीय घटनाक्रम के बीच सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उन्हें करीब 100 दिन हिरासत में बिताने पड़े क्योंकि अदालत ने उन्हें नियमित जमानत भी नहीं दी। कांग्रेस के मुखपत्र नेशनल हेराल्ड के प्रकाशक एसोसिएटेड जनरल लिमिटेड ;एजेएल को भी अदालती फैसले की मार झेलनी पड़ी, जिसमें परिसर खाली करने संबंधी केंद्र के आदेश को चुनौती देने वाली एजेएल की याचिका को खारिज कर दिया गया। इस फैसले में साथ ही कहा गया कि एजेएल के शेयर यंग इंडियन को हस्तांरित किया जाना अवैध एवं जाली था। यंग इंडियन में राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी के सबसे ज्यादा शेयर थे। सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा भी धनशोधन के एक मामले में फंसे, जिसे वह रद्द कराने की कोशिश में थे जबकि प्रवर्तन निदेशालय ,ईडी ने निचली अदालत से वाड्रा को मिली अग्रिम जमानत को खारिज करने के लिए उच्च न्यायालय का रुख किया।वाड्रा पर लंदन के 12 ब्रायनस्टन स्कॉयर में संपत्ति खरीद के मामले में धनशोधन के आरोप लगे हैं। इन झटकों के बाद कांग्रेस को कुछ राहत भी मिली जब पार्टी नेता डी के शिवकुमार को एक महीना जेल में बिताने के बाद उच्च न्यायालय से जमानत मिली। वह ईडी की तरफ से दायर धनशोधन के एक मामले में जेल में थे। आम आदमी पार्टी के संयोजक केजरीवाल के लिए 2019 कुछ राहत भरा रहा जहां उनके खिलाफ जारी आपराधिक मानहानी के दो मामलों में कार्यवाही पर रोक लगा दी गई और डीडीसीए को लेकर उनके और कांग्रेस नेता कीर्ति आजाद के बीच चल रहे मानहानि के अन्य मामले में समझौता हो गया। हालांकि, न्यायालय ने अन्नाद्रमुक के पूर्व नेता टीटीवी दिनाकरण और वीके शशिकला की याचिकाएं खारिज कर दीं, जिसमें पार्टी का नाम और दो पत्तियों वाला चिह्न उनके धड़े को दिए जाने का दावा किया गया था। अदालत ने उनके विरोधी पलानीस्वामी नीत धड़े को पार्टी का नाम और चिह्न रखने की इजाजत दी। राजनीतिक प्रभाव वाले कॉरपोरेट घोटाले जैसे अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलीकॉप्टर सौदा, एयरसेल मैक्सिस, एयर एशिया और टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले भी बीते साल चर्चा में रहे। इसके अलावा जिन्हें उच्च न्यायालय में मुश्किल वक्त देखना पड़ा उनमें भूषण स्टील और उसके प्रवर्तक बृज भूषण और नीरज सिंघल, रेनबैक्सी के मलविंदर और शिविंदर सिंह और इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड शामिल थे। इंडियाबुल्स ने दावा किया कि गबन के आरोपों को लेकर सितंबर में उसके खिलाफ जनहित याचिका दायर किए जाने के बाद से उसका राजस्व घट रहा है और वह कर्ज नहीं दे पा रहा है। यह मामला फिलहाल उच्च न्यायालय में लंबित है। इसी तरह सिंह भाइयों को भी फर्जीवाड़े और धनशोधन के मामलों में कई एजेंसियों के आक्रोश का सामना करना पड़ रहा है जिनमें कथित तौर पर ये दोनों शामिल हैं।सीबीआई के दो शीर्ष अधिकारियों के बीच की लड़ाई का मामला भी उच्च न्यायालय पहुंचा। न्यायालय ने विशेष निदेशक राकेश अस्थाना और डीएसपी देवेंद्र कुमार की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें एजेंसी के पूर्व प्रमुख आलोक कुमार वर्मा की अनुमति से उन पर लगे रिश्वत के आरोपों के संबंध में दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया गया था। साल के अंत में तीस हजारी अदालत परिसर में पार्किंग के मुद्दे पर वकीलों और पुलिस के बीच हिंसक झड़प भी देखने को मिली। इस मामले में उच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा था। अदालत ने दोनों के खिलाफ किसी तरह की दंडात्मक कार्रवाई नहीं की, जबकि न्यायिक आयोग द्वारा घटना की जांच अब भी जारी है। हालांकि, संशोधित नागरिकता कानून,सीएए के मद्देनजर बड़े पैमाने पर हुई हिंसा में उच्च न्यायालय ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया के आंदोलनरत छात्रों को दंडात्मक कार्रवाई से संरक्षण देने से इनकार कर दिया। उच्च न्यायालय की अन्य गतिविधियों में कई जनहित याचिकाओं पर सुनवाई शामिल हैं। ऐसी ही एक याचिका में केंद्र को देश के लिए समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
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