लघुकथा- आत्मनिष्ठा


 

कल्पना सिंह

 

एक समय की बात है, गर्मी का महीना था और जंगल के ज्यादातर जल स्रोत सूख रहे थे ।प्रचंड गर्मी से सभी जानवर परेशान होकर पानी की तलाश में यहां वहां भटक रहे थे ।इन्हीं में जंगली भैंसों का भी एक समूह था जिसमें छोटे ,बड़े सभी प्रकार के सदस्य थे ।मोटी चमड़ी और काला रंग होने के कारण धूप उन्हें कुछ अधिक परेशान कर रही थी ।थोड़ी देर भटकने के बाद उन्हें घने वृक्षों से गिरी एक नदी दिखाई दी। पानी देखकर सबके चेहरे पर चमक आ गई ।आसपास हरियाली भी छाई थी ।सभी ने भरपूर पानी पिया और हरी भरी घास का आनंद लेने में जुट गए ।भैंसों के झुंड का एक सदस्य अभी भी ठंडक के लालच में पानी के अंदर ही था जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया ।वह मगन होकर शीतल जल का आनंद ले रहा था ।अचानक उसे महसूस हुआ कि उसका एक पैर किसी ने जकड़ लिया है और उसे पानी के भीतर खींचने का प्रयास कर रहा है ।वह समझ गया कि उसका सामना किसी मुसीबत से हो चुका है। उसने घबरा कर सहायता के लिए चिल्लाना शुरू कर दिया किंतु कोई भी मदद के लिए नहीं आया क्योंकि सभी जानवर घास चरते चरते दूर जा चुके थे। किसी को उसकी आवाज सुनाई नहीं दी। सहायता मिलने की कोई आस दिखाई नहीं दे रही थी ।अतः अपने प्राणों को संकट में देखकर उसने स्वयं संघर्ष करने का निर्णय लिया ।उसने देखा कि उसके पैर को एक मगरमच्छ ने जकड़ रखा था और लगातार उसे पानी के अंदर खींचने का प्रयास कर रहा था जिससे वह उसे अपना शिकार बना सके। नन्हा भैंसा पूरी ताकत से अपने आप को बाहर की ओर खींचने का प्रयास कर रहा था ।दोनों ही हार मानने को तैयार नहीं थे बीच-बीच में वह अपने समूह के लोगों को आवाज भी लगा रहा था किंतु सब बेकार। धीरे धीरे उसकी ताकत जवाब देने लगी और उसे लगने लगा कि अब वह अपनी जान नहीं बचा पाएगा। वह आत्मसमर्पण करने ही वाला था कि उसके कानों में आवाज सुनाई दी," नहीं !तुम इस तरह हार नहीं मान सकते तुम्हें हारना नहीं है, लड़ना है।" नन्हे भैंसे ने देखा कि एक दरियाई घोड़ा उसी और बढ़ा चला अा रहा है ।इससे उसे उम्मीद की किरण दिखाई दी और उसने दुगुने उत्साह से प्रयास करने का निर्णय लिया। इधर जब मगरमच्छ ने भी दरियाई घोड़े को आते देखा वह घबरा गया और उसकी पकड़ ढीली पड़ गई फलस्वरूप भैसा उसकी की पकड़ से आजाद हो गया। वास्तव में दरियाई घोड़ा पहले भी दो बार मासूम और छोटे जानवरों को बेवजह शिकार के कारण मगरमच्छ को सबक सिखा चुका था।
      नन्हा भैंसा आजाद होकर बहुत प्रसन्न था। उसने दरियाई घोड़े को धन्यवाद देते हुए कहा," दादा, यदि आज आप मेरी सहायता न करते तो मैं अपने प्राण नहीं बचा पाता।" दरियाई घोड़े ने उसे समझाते हुए कहा, मैंने कुछ नहीं किया ।जो कुछ भी किया तुमने किया। मैंने तो सिर्फ तुम्हारा उत्साहवर्धन किया। एक बात हमेशा ध्यान रखना, दुनिया में कभी किसी से उम्मीद मत पालना। केवल अपने आप पर भरोसा बनाए रखना ।जो खुद पर भरोसा करते हैं ईश्वर भी हमेशा उनका साथ देते हैं।सीख को ध्यान में रखने का वायदा करके वह खुशी खुशी अपने झुंड में शामिल होने के लिए चल पड़ा।

 

 

आदर्श नगर, बरा,रीवा( मध्य प्रदेश)
 

 



टिप्पणियाँ