नागरिकता और एन.आर.सी. के बाद अब एन.पी.आर. पर रार ,अप्रैल से होगा सर्वे
दिल्ली/ नागरिकता संशोधन कानून,सी.ए.ए. को और राष्ट्रीय नागरिक पंजी,ए.नआर.सी. को लेकर देश भर में हंगामा मचा हुआ है। कई राज्यों में लोग इस कानून को लेकर केंद्र सरकार का विरोध कर रहे हैं। इसी बीच मोदी सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ;एन.पी.आर. की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए हैं। इस प्रक्रिया के लिए गृह मंत्रालय ने कैबिनेट से 3.941 करोड़ रुपयों की मांग की है। एन.पी.आर. का मकसद देश के सामान्य निवासियों की व्यापक पहचान का डेटाबेस बनाना है। इस डेटा में जनसांख्यिंकी के साथ बायोमेट्रिक जानकारी भी होगी। हालांकि सरकार की राह आसान नहीं होगी क्योंकि जिस तरह गैर.भाजपा शासित राज्य सी.ए.ए ;नागरिकता संशोधन अधिनियम और एन.आर.सी. का विरोध कर रहे हैं वह एन.पी.आर .प्रक्रिया की राह में रोड़े अटकाएंगे। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बाद केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने एन.पी.आर. पर जारी काम को रोक दिया है। केरल के मुख्यमंत्री कार्यालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि सरकार ने एन.पी.आर को स्थगित करने का फैसला लिया है। ऐसी आशंका है कि इसके जरिए एन.आर.सी. लागू की जाएगी। सरकार ने कल एक बयान जारी करते हुए एन.पी.आर. से संबंधित सभी गतिविधियों पर रोक लगाने का आदेश दिया है। बयान में कहा गया है आम जनता के बीच नागरकिता संशोधन कानून को लेकर जारी आशंकाओं को देखते हुए ऐसा माना जा रहा है कि एन.पी.आर. को एन.आर.सी. से जोड़ा जा सकता है इसलिए राज्य सरकार प्रदेश में एन.पी.आर. से संबंधित सभी गतिविधियों पर रोक लगाती है। इस आदेश को सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव के.आर. ज्योति.लाल ने जारी किया है। देश के आजाद होने के बाद पहली बार 1951 में जनगणना हुई थी। हर 10 में जनगणना होती है। इसे अब तक सात बार करवाया गया है हमारे पास वर्तमान में 2011 में हुई जनगणना के आंकड़े मौजूद हैं। 2021 की जनगणना को लेकर काम जारी है। जनगणना का रिकॉर्ड दर्ज करने में लगभग तीन साल का समय लगता है। जिसकी प्रक्रिया तीन चरणों में होगी। एन.पी.आर. देश के सभी सामान्य निवासियों का दस्तावेज होता है और नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों के अंतर्गत इसे स्थानीय, उप.जिला, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जाता है। छह महीने या उससे अधिक समय से स्थानीय क्षेत्र में रहने वाले किसी भी निवासी को एन.पी.आर. मे आवश्यक रूप से पंजीकरण करना होता है। सरकार ने 2010 से देश के नागरिकों की पहचान का डेटाबेस जमा करने के लिए इसकी शुरुआत की।
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