फूलों की खेती से हुआ किसानों का मोह भंग

 






देहरादून/ किसानों की आय दोगुनी करने के दावों के बीच रर्वाइं घाटी के फूल काश्तकारों को सरकारी मंडी के अभाव में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। अन्य नगदी फसलों के मुकाबले अधिक लाभदायक होने के कारण स्थानीय किसान सालों से फूलों की खेती कर रहे हैंए लेकिन मंडी नहीं होने से किसानों को अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। ऐसे में किसानों का अब फूलों की खेती से मोह भंग हो रहा है। घाटी के नैणी, पिसाउं, किम्मी, मटियाली, कृष्णा, राजगढ़ी आदि गांवों के किसानों ने विगत 7.8 साल पहले गुलदावदी आदि फूलों की विभिन्न प्रजातियों की खेती की थी लेकिन जनपद में सरकारी मंडी नहीं होने के कारण किसानों को मनचाहा मुनाफा नहीं मिल सका। रविंद्र चंद, मनमोहन, कौर सिंह, भगवान सिंह, पप्पू लाल आदि किसानों ने बताया कि मंडी नहीं होने के कारण उन्हें स्वयं ही अपनी फसल लेकर बाजार जाना पड़ता है जहां बिचौलिए मनचाहे दामों पर उनकी फसल खरीदते हैं। बीते साल भी उन्हें मजबूरन गुलदावदी की फसल को 30 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचना पड़ा जबकि मुनाफा कमाने के लिए फसल को कम से कम साठ रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकना जरूरी था। साल दर साल हो रहे आर्थिक नुकसान के कारण अब अधिकांश किसानों ने फूलों की खेती करना बंद कर दिया है जबकि अभी भी फूलों की खेती कर रहे किसानों को लगातार नुकसान उठाना पड़ रहा है। वहीं रवाईं घाटी फल एवं सब्जी उत्पादक एसोसिएशन के अध्यक्ष जगमोहन चंद ने कहा कि एक वक्त था जब फूलों की खेती के लिए घाटी पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध थी लेकिन सरकार की तरफ से मंडी की सुविधा प्रदान नहीं किए जाने के कारण आज यह क्षेत्र अपनी पहचान खोता जा रहा है। ऐसे में सरकार को समस्या का निस्तारण करते हुए जनपद में फूलों की मंडी खोलनी चाहिए।


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