पूर्वोत्तर से उत्तर भारत तक सुलगी सी.ए.बी,एन.आर.सी की चिंगारी।
सलीम रज़ा
राष्ट्रहित में किये जाने वाले सरकार के किसी भी फैसले का स्वागत होना ही चाहिए क्योंकि ये संसद और देश की गरिमा का सवाल होता है। इस गरिमा को बनाये रखने में एक नहीं समस्त देशवासियों का योगदान होता है। जब हम योगदान की बात करते हैं तो इसमें संविधान की आस्था,विश्वास, और उसकी पुख्तगी को दर्शाता है। लेकिनं जब विरोध के स्वर उभर कर सामने आने लगें तो पूरी संसदीय प्रणाली पर सवालिया निशान लग जाता है, जिससे देश की गरिमा आहत होती है। इस वक्त देश में नागरिकता संशोधन बिल और एन.आर.सी. को लेकर जो आग पूर्वोत्तर से लेकर उत्तर भारत तक भड़की है वो आगे विकराल रूप लेगी या इसका कोई शान्त समाधान भी निकलेगा ये कह पाना अभी मुश्किल ही है। बहरहाल इस उग्र प्रदर्शन के कई मतलब हो सकते हैं। लोग ये मानते हैं कि केन्द्र की एन.डी.ए. सरकार देश के अन्दर पोलोराइजेशन की राजनीति चल रही है, इस बात में कितना दम है आसानी से समझा जा सकता है। आज जैसे हालात पूर्वोत्तर राज्य में हैं वो शुभ संकेत नहीं हैं जिसकी आंच अब उत्तर भारत में भी महसूस की जा रही है, लोग सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं क्यों? क्या वो बिल को समझ नहीं पा रहे हैं ? ऐसा नहीं कि उन्हें समझ में नहीं आ रहा है, मेरी समझ से समझ में तो आ रहा है लेकिन सरकार की मंशा में खोंट नजर आ रहा है जिसने लोगों को सड़कों पर उतरने को मजबूर कर दिया है।
अगर देश की आवाम को किसी भी कानून के बारे में संशय हो तो उसका समाधाान संसद के पटल पर जरूरी है न कि ताकत के बल पर। मेरी समझ से इस विरोध के कई बिन्दुओं पर गौर करना जरूरी है, पहला बिन्दु तो ये है कि जब असम में एन.आर.सी. की प्रक्रिया पूरी हो गई और उस प्रक्रिया में प्रदेश के 3,30,27,661 लोगों ने आवेदन किया जिसमें 3,11,21,004 लोगों को इस लिस्ट में शामिल किया गया और 19,06,657 लोगों को बाहर कर दिया गया था। इन बाहर हुये 19 लाख से ज्यादा लोगों में हिन्दुओं की संख्या ज्यादा थी, अब दोबारा से नागरिकता संशोध बिल लाया गया तो सरकार की मंशा पर शक होने लगा और ये ही वजह है कि लोगों में चारो तरफ इस बिल को लेकर असंतोष है। हो सकता था अगर पहले नागरिक संशोधन बिल पास होता फिर एन.आर.सी.लागू की जाती तो शायद इतनी आग न फैलती। हमारे देश के गृह मंत्री जी का कहना है कि विपक्षी पार्टियां देश की जनता को गुमराह करने का काम कर रही हैं जबकि नागरिक संशोधन बिल और एन.आर.सी. दोनों अलग-अलग हैं। उनका कहना है कि पाकिस्तान,अफगानिस्तान और बंगला देश से आये मजहबी प्रताड़ित अल्पसंख्यकों (हिन्दू,सिक्ख,ईसाई,वौद्ध,जैन,पारसियों) को भारत की नागरिकता प्रदान की जायेगी। यहां तक तो बात ठीक थी लेकिन एन.आर.सी. में साफ है कि जो अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पायेगा चाहें वो किसी भी धर्म संप्रदाय का हो उसे बाहर करा जायेगा, फिर सी.ए.बी. का लाना सरकार की सोंची समझी रणनीति का हिस्सा समझा जा रहा है।
क्योंकि कैब में आप साफ कर चुके हैं कि तीन देशों से आये गैर मुस्लिमों को ही इस संशोधन बिल के जरिये नागरिकता ग्रहण करने का अधिकार होगा। ये ही संविधान की मुल संरचना के साथ खिलवाड़ कहा जा रहा है जिसमें धर्म,समुदाय,लिंग,जाति,बर्णों के आधार पर किसी कानून में संशोधन नहीं कर सकते ये संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। अब आप देशिये कि इस पूरे बिल में सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम को अकेला छोडकर अपने हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना को भी पंख लगा दिए हैं। क्या ये नहीं हो सकता कि जैसे और लोग (गैर मुस्लिम) अपने दस्तावेज नहीं दे पाये उन्हें कैब के जरिए जीवनदान एक आशा प्राप्त हुई और यदि जो मुस्लिम नहीं दे पाये उसके लिए कैब में कोई जगह नहीं हैं उन्हें इस देश में कोई जगह नहीं ये विरोधाभास ही आग की लपटों का ईंधन है ,जिससे पूर्चोत्तर के साथ उत्तर भारत भी जलने लगा है। बहरहाल अपने आप को साबित करना कि हम भारत के नागरिक है इसमें कुछ भी गलत नहीं है हर देश अपने नागरिकों का रजिस्टर तैयार करता है, इसमें कोई बुराई भी नहीं हैं लेकिन जिस तरह से विरोधाभासी अधिनियम कैब की शक्ल में सामने आया है वो निश्चित रूप से मौजूदा सरकार की आगामी चुनाव की रूपरेखा जरूर कहीं जा सकती है।
अगर ये कहा जाये कि मौजूदा सरकार ने देश के अन्दर लोगों को जिस तरह से सड़कों पर उतरने को मजबूर करके उनका माईन्ड डायवर्ट कर दिया उसके पीछे सरकार की नाकामी तो नहीं है। सही मायनों में देश के अन्दर तेजी से बढ़ रही बेरोजगारी,मंहगाई और गिरती अर्थव्यवस्था जैसे ज्वलन्त मुद्दों को ढ़कने के लिए ंसरकार देश की जनता कोे कैब और एन.आर.सी. जैसे मुद्दों में उलझा कर अपनी राजनीतिक स्वार्थ के चलते देश की गुगा जमुनी तहजीब के बीच एक अवरोध खड़ा कर रही है, वहीं भाजपा ने आगामी चुनाव के लिए एक बैटल लाईन भी खींच दी है ।
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