सदन में गूंजा गन्ना किसानों के बकाया भुगतान का मुद्दा
देहरादून । उत्तराखंड विधानससभा के शीतकालीन सत्र की दूसरे दिन की सदन में गन्ना किसानों के बकाया भुगतान का मुद्दा गंूजा। विपक्ष का कहना था कि सरकार को गन्ना किसानों की कोई चिंता नहीं है। गन्ना किसानों की हालत बद से बदतर होती जा रही है।
पूर्वाह्न 11 बजे सदन की कार्यवाही शुरु होते ही कांग्रेस के विधायक काजी निजामुद्दीन ने गन्ना किसानों के बकाया भुगतान का मामला उठाया। उन्होंने कहा कि पेराई सत्र शुरू हो चुका है सरकार ने गन्ने का मूल्य तय नहीं किया। उनके साथ ही समूचे विपक्ष ने इस मुद्दे पर नियम 310 के तहत चर्चा कराए जाने की मांग की। इस पर विधानसभा स्पीकर प्रेमचंद अग्रवाल ने व्यवस्था दी कि इस मुददे को नियम 58 के तहत सुन लिया जाएगा, इसके बाद प्रश्नकाल सुचारु रूप से चला। प्रश्नकाल के बाद इस मुद्दे पर नियम 58 के तहत चर्चा हुई। विधायक कॉजी निजामुद्दीन का कहना था कि सरकार गन्ना किसानों की अनदेखी कर रही है। सरकार को गन्ना किसानों के हितों की कोई चिंता नहीं है, जिस कारण गन्ना किसानों की हालत बदतर होती जा रही है। उनका कहना था कि केंद्र और राज्य सरकार किसानों की आय दोगुनी करने की बात करते-करते नहीं थक रहे हैं लेकिन किसानों की आय दोगुनी कैसे होगी इसका सरकार के पास कोई ठोस जवाब नहीं है। गन्ना किसानों के बकाया का भुगतान नहीं किया जा रहा है। गन्ने का भाव रिकवरी के आधार पर घोषित होता है, लेकिन सरकार किसानों खर्चे की तरह ध्यान नहीं दे रही है। उनका कहना था कि गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर करीब 250 करोड़ रुपये का बकाया है। इस बकाए का भुगतान शीघ्र किया जाए। इसके अलावा उनका यह भी कहना था कि चीनी मिलों द्वारा गन्ने की केवल अगेती फसल को ही खरीदा जा रहा है, पछेती वैराल्टी के गन्ने को चीनी मिलों द्वारा नहीं खरीदा जा रहा है। उन्होंने सरकार से स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट शीघ्र लागू किए जाने की मांग की। नेता प्रतिपक्ष डा. इंदिरा ह्रदयेश ने कहा कि गन्ने की फसल जो कि कैस क्राप के रूप में जानी जाती थी अब निराशा में बद0ल चुकी है। गन्ना किसानों का समय पर भुगतान न होने से उन्हें तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। किसान गन्ने की छोडऩे को विवश हैं। कर्ज में डूबे किसान आत्महत्या जैसा कदम उठाने को मजबूर हैं। उनका कहना था कि सरकार शीघ्र ही गन्ने का सम्मानजनक न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करें।
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