बेटियों के अधिकारों और सुरक्षा के बारे में समाज को जागरूक होना जरूरी
सलीम रज़ा
तेरे आँचल मे सांस लेना चाहती हूँ,
तेरी ममता की छांव मे रहना चाहती हूँ
तेरी गोद मे सोना चाहती हूं।
आज राष्ट्रीय बालिका दिवस है सभी बेटियों को उनके उन्नत और सफल जीवन की शुभकामनाऐं। बेटियां हैं तो आप हैं ये बहुत छोटा सा वाक्य है लेकिन इसके अर्थ हमें आपको सोचने पर मजबूर कर देते हैं । ऐसा लगता है कि कहीं नेपथ्य से आवाज आ रही है जो ये कह रही है कि हम लोगों की भीड़ में अकेले क्यों हैं। उफ ये भी एक कड़वा सच है कि ‘ न गर्भ में न सड़कों पर सुरक्षित हैं बेटियां ’ भले ही सरकार बेटी पढ़ाओं, बेटी बचाओ’ सेव गर्ल जैसे स्लोगन चलाकर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच रही हैं। सवाल ये उठता है कि क्या आजादी के 7 दशकों बाद भी ऐसे स्लोगन अगर प्रचलित किये जाते रहे हों तो दो बातें सामने आती हैं कि अब भी सामाजिक व्यवस्था में खामी है क्या अभी भी समाज में जागरूकता की कमी है।
अगर शताब्दी के करीब पहुंच रहे हमें इस हिदायत की आवश्यकता पड़ती है तो सच मानिये हम अभी विश्व गुरू बनने से बहुत दूर खड़े है। हमारे देश का दुर्भाग्य हे कि सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी कन्या भ्रूण हत्या के मामलों में तेजी से इजाफा हो रहा है। आखिर कब तक इस सभ्य समाज में बंश बेल की इच्छा रखने वाले बेटियों को असमय गर्भ में खत्म करते रहेंगे। इस संदर्भ में मैं एक बात अवश्य कहना चाहूंगा किसी भी दिवस को मनाने में जितना उत्साह लोगों में देखा जाता है उतनी इच्छाशक्ति की कमी भी नजर आती है।
बालिका दिवस पर बड़े-बड़े मंचों से लेकर व्हाटस-एप यूनिवर्सीटी और दीगर सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर लोगों में बालिका प्रेम को देखकर दिल गद्गद हो जाता है, लेकिन जब मासूम को दरिंदगी का शिकार होने की खबर सामने आती है तो मन विचलित हो जाता है। फिर उनकी असमय मृत्यु पर सियासत के मंच सज जाते हैं। क्या बेटियां भी सियासत की तुला पर अपना भविष्य तौलने पर मजबूर हैं? ये कैसी सोच है इसका निदान किसके पास है। हर कोई ‘मेरी बेटी मेरा अभिमान’ जैसे चार वाक्य लिखकर इस दिवस पर अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर देता है, लेकिन अत्यंत गंभीर प्रश्न है मेरी बेटी ही क्यों हर किसी की बेटी मेरा अभिमान क्यों नहीं? हमें इस सोच को अपने अन्दर समाहित करना ही होगा। जरा सोचिए घटता लिंगानुपात ने कभी आपको इस बात के लिए प्रेरित किया कि वो ऐसे कौन लोग है जो इस मुहिम से अलग अपनी दुराचारी प्रवृत्ति को जारी रखे हुये हैं। दूसरा सबसे बड़ा अहम सवाल ये है कि जिस तरह से भड़कीले नारी विज्ञापन प्रचारित किये जाते हैं जो लोगों में नकारात्मक उर्जा पैदा करते हैं ऐसे भड़कीले विज्ञापनों पर सुचना एवं प्रसारण मत्रालय को चाहिए वो बैन कर देना चाहिऐ। इस तरह के उत्तेजना पैदा करने वाले विज्ञापन ही उस नारी की छवि को खराब करनेका काम तो करते ही हैं साथ ही विपरीत मानसिकता वाले लोगों को प्रेरित करते हैं जिनमें महिलाओं का सम्मान करने की ताकत खत्म हो जाती है फिर चाहें बालिग हो या नाबालिग।
सरकार अपना काम करती है लेकिन सिर्फ कागजों में जमीनी सतह पर हमें काम करने होगे हमें अपनी ही नहीं सभी बेटियों की सुरक्षा का जिम्मा लेना होगा ये तब संभव हो सकता है जब हम आप एक साथ एक सूत्र में बंधेगे। आज बेटियां हर क्षेत्र में अपनी भागीदारी देकर न सिर्फ हमारे देश का नाम रोशन कर रही हैं वल्कि हमारा भी और हमारे समाज का नाम रोशन कर रही हैं। लेकिन सवाल ये है कि समाज आया कहां से ? जनाब, समाज हमसे है और हम समाज से जिसके बनाये नियमों पर हम चल रहे हैं फिर बेटी की सुरक्षा के मामले में हम पीछे क्यों हैं। हमें इस बात का स्मरण रखना चाहिए कि स्लोगन में उतनी ताकत नहीं होती जितना सहयोग मे होती है लिहाजा हम सबका दायित्व बनता है कि हम नारों का इस्तेमाल जमीनी सतह के साथ अपने अमल में लाये और लोगों को जागरूक भी करें जिससे बेटियों को भी लगे कि अब उनके पापा के अलावा भी और बहुत लोग हैं जो उनकी सुरक्षा उनकी मुस्कान उनके सपनों को पंख लगाने में अपना योगदान दे रहे हैं, जिसमें भय नहीं वल्कि एक आत्मविश्वास भी है जो ये संदेश दे रहा है ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ ।
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