देव भूमि में बढ़ता नशे का कारोबार

 


 




देहरादून/ देवभूमि में नशे का कारोबार युवा पीढ़ी को खोखला कर रहा है नशा चाहें वैध हो या अवैध ये कारोबार बड़ी चिंता का सबब है। राजभवन से लेकर उच्च न्यायालय तक नशे की बढ़ती प्रवृत्ति पर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं। प्रदेश सरकार भी यह दिखाती चली आई है कि वह नशाखोरी के खिलाफ बेहद सख्त है। लेकिन प्रदेश की सत्ता पर काबिज रही सरकारों की कथनी और करनी में बड़ा अंतर है। इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि राज्य गठन के 20 सालों में शराब का कारोबार तो खूब फला फूला लेकिन मद्य निषेध करना सरकार भूल गई।अविभाजित उत्तरप्रदेश के समय से नशाखोरी के खिलाफ जागरूकता को लेकर मद्य निषेध अधिकारी का जो प्रावधान होता था उत्तराखंड गठन के बाद सरकार पद तक सृजित नहीं कर पाई। राज्य गठन के बाद समाज कल्याण विभाग को मद्य निषेध के नाम पर जो पद हिस्से में आए, वे पिछले दो दशकों में एक एक करके खत्म होते गए और आज वे विभाग में इस विंग का अस्तित्व मिट जाने के कगार पर है। जबकि नशे की बढ़ती प्रवृत्ति के खिलाफ जन जागरूकता को लेकर सरकार के स्तर पर जो प्रयास किए जाने की बातें हो रही हैं, वे सभी मद्य निषेध विंग के माध्यम से संचालित हो सकती थीं। लेकिन अधिकारियों, कर्मचारियों और संसाधनों के अभाव में विभाग की ओर से चाहकर भी जन जागरूकता के गंभीर प्रयास नहीं हो सके।हालांकि विभाग के निदेशक विनोद गिरी गोस्वामी का कहना है कि मद्य निषेध अधिकारी का पद न होने के बावजूद विभागीय स्तर पर नशाखोरी के खिलाफ बनाए गए कार्यक्रमों को समाज कल्याण अधिकारी के माध्यम से संचालित किया जा रहा है। मद्य निषेध विभाग होता तो वह प्रचार माध्यमों, गोष्ठियों, कार्यशालाओं और नुक्कड़ नाटकों के जरिये नागरिकों और युवाओं में नशाखोरी के खिलाफ जागरूक करता। जानकारों की मानें तो उत्तरप्रदेश समय नशे के खिलाफ जन जागरूकता अभियान चलाने में मद्य निषेध विभाग की अहम भूमिका होती थी। मद्य निषेध अधिकारी के पद सृजित नहीं हुए। ये विंग समाज कल्याण का अहम टूल होता था। विभाग के स्तर पर मद्य निषेध को लेकर कार्य जारी रहेगा। अब ये जिम्मेदारी जिला समाज कल्याण अधिकारी निभा रहे हैं। विभागीय स्तर पर जो संसाधन है, उन्हीं से नशे के खिलाफ मद्य निषेध के कार्य किए जाएंगे। 


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