ग्रामीण क्षेत्रों की तस्वीर संवारने में जुटे हैं डॉ0अनिल प्रकाश जोशी
देहरादून/ धारा के विरुद्ध तैरना आसान नहीं है, लेकिन कुशल तैराक वही होता है जो कठिनाइयों को मात देते हुए मंजिल तक पहुंच जाए। कुछ ऐसा ही है हिमालयी पर्यावरण अध्ययन एवं संरक्षण संगठन,हेस्को के संस्थापक डॉ0अनिल प्रकाश जोशी का व्यक्तित्व। सरकारी महाविद्यालय में प्राध्यापक की नौकरी छोड़कर उन्होंने विज्ञान व लोक विज्ञान का समावेश कर उत्तराखंड समेत हिमालयी राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों की तस्वीर संवारने की ठानी। उत्तराखंड से लेकर पूर्वोत्तर राज्यों तक गांव व समाज की बेहतरी को उठाए गए कदम डॉण्जोशी के कार्यों की गवाही दे रहे हैं। 36 साल के वक्फे में हेस्को यदि अधिक सशक्त होकर उभरा है तो इसके पीछे डॉ0जोशी की मेहनत ही छिपी है। विभिन्न राज्यों में 10 हजार से अधिक गांवों में हेस्को के कराए गए कार्यों से लाभान्वित हो रही पांच लाख की आबादी इसकी बानगी है। पौड़ी जिले के कोटद्वार निवासी डॉ0जोशी को वर्ष 1976 में प्राध्यापक के पद पर नियुक्ति मिली, मगर में मन में हिमालय और पहाड़ की चिंता ही शुमार थी। 1983 में उन्होंने कुछ प्राध्यापकों व विद्यार्थियों को साथ लेकर हेस्को संगठन की स्थापना कर इसका रास्ता तलाशा। फिर लोक विज्ञान और विज्ञान का समावेश कर गांव.समाज की बेहतरी को कार्य करने की मुहिम शुरू की गई।इस मुहिम को आगे बढ़ाने में जब सरकारी नौकरी बाधा बनने लगी तो 1992 में डॉ0जोशी ने नौकरी छोड़ दी। इसके बाद वह पूरी तरह से गांव व समाज की सेवा में रम गए। उन्होंने लोकल नीड मीट लोकली के सूत्रवाक्य पर चलते हुए स्थानीय संसाधनों से स्थानीय जरूरतें पूरी करने पर जोर दिया। राज्य में उनके प्रयासों से 38 गांव मॉडल के रूप में विकसित किए गए हैं।स्थानीय संसाधनों के बेहतर उपयोग से आर्थिकी संवारने के लिए प्रसाद कार्यक्रम की उनकी मुहिम काफी प्रभावी रही है। वैष्णोदेवी,बदरीनाथ,केदारनाथ,गंगोत्री व यमुनोत्री में इस पहल के तहत स्थानीय फसलों पर आधारित प्रसाद स्थानीय लोगों से ही तैयार कराया गया। इससे रोजगार भी मिला और खेती को संबल भी। जल स्रोतों के संरक्षण पर भी कार्य किया गया और अब तक 125 जलधारे पुनर्जीवित किए गए। न केवल उत्तराखंड बल्कि अन्य हिमालयी राज्यों में गांव व स्थानीय समुदाय की उन्नति के लिए शुरू की गई उनकी पहल बदस्तूर जारी है।
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