कविता- तुम नहीं जानते
कल्पना सिंह
तुम्हारी महक मेरी सांसों में बसी है,
मेरी धड़कनें तुम्हारे ही गीत गुनगुनाती हैं।
हर पल सिर्फ तुम्हें ही सोचती हूं;
हल्की सी आहट से ठिठक जाती हूं,
तुम नहीं जानते मैं तुम्हें कितना चाहती हूं।
हवाएं तुम्हारी मौजूदगी का एहसास दिलाती हैं
रोके से भी नहीं रुकती तुम्हारी याद आती है।
तुम्हारे एहसास से महक जाती है बगिया दिल की;
वक्त लगता है कि कहीं ठहर जाता है,
तुम नहीं जानते मैं तुम्हें कितना चाहती हूं।
सोचा कई बार हाल ए दिल बता दूं तुमसे,
कि नहीं रह सकती अब एक पल भी तुम बिन।
कोशिशें करके भी मैं खुद से हार जाती हूं;
सोचती हूं मगर तुम्हें बता नहीं पाती हूं,
तुम नहीं जानते मैं तुम्हें कितना चाहती हूं।
काश कभी ऐसा मुमकिन हो पाता,
बिन कहे भी तुम्हें सब समझ आ जाता।
मेरी हया, मेरा संकोच भी कायम रहता;
और निगाहों से सब बयां हो जाता।
यह सच है कि तुम्हें यह बताना चाहती हूं,
तुम नहीं जानते मैं तुम्हें कितना चाहती हूं।
आदर्श नगर ,बरा, रीवा( मध्यप्रदेश)
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