पहाड़ पर बच्चों की जान खतरे में,एक साल में हुई 386 बच्चों की मौत
हल्द्वानी/पिथौरागढ़/ राजस्थान और गुजरात में नवजात बच्चों की मौत के मामले स्वास्थ्य सेवाओं की हालत पर चिंता में डालने वाले तो हैं ही कुमाऊं में भी स्थिति जुदा नहीं है। नैनीताल जिले में अकेले हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल, एसटीएच में 218 बच्चों की मौत का आंकड़ा मिला दिया जाए तो कुमाऊं में एक साल के भीतर 386 बच्चों की मौत हुई है।मंडल के अधिकतर सरकारी अस्पतालों में एसएनसीयू की सुविधा तक नहीं है। मंडल के सबसे बड़े अस्पताल एसटीएच में 20 बेड का एसएनसीयू है और मात्र चार बेड पर ही वेंटीलेटर की सुविधा है।हल्द्वानी के महिला अस्पताल में भी एसएनसीयू,स्पेशल न्यूनेटल केयर यूनिट की सुविधा नहीं है। यहां पिछले एक साल में 4551 बच्चों का जन्म हुआ जबकि तीन बच्चे मृत पैदा हुए। अल्मोड़ा में बाल रोग विशेषज्ञ के पद तो हैं लेकिन जिले के सरकारी और निजी अस्पतालों में एसएनसीयू और वेंटीलेटर की सुविधा ही नहीं है। चार बेड का वार्मर जरूर है। एक साल में जिले में आठ नवजात बच्चों की मौत हो चुकी है। इनमें पांच रानीखेत क्षेत्र के हैं। जिला महिला अस्पताल में 24 प्री मैच्योर डिलीवरी हो चुकी हैं। वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ0 प्रीति पंत ने बताया कि तीन नवजातों की जन्मजात विकृति के कारण भी मौत हुई है।
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