कविता- रिश्ते
कल्पना सिंह
रिश्तों की नाजुक डोर को बचाना पड़ता है,
कभी लुटना पड़ता है, कभी लुटाना पड़ता है।
प्यार ,नफरत, दोस्ती, दुश्मनी कई रूप हैं इसके,
इनके बीच के फर्क को पहचानना पड़ता है।
रिश्तों के बदलते रूप को स्वीकारना पड़ता है,
आसान नहीं, हर रिश्ते में खुद को ढालना पड़ता है।
दुख ,दर्द भी अपनों के अपनाना पड़ता है,
खुद रो कर ,उनको हंसाना पड़ता है।
कहीं किसी बात पर अपने न रूठने पाएं,
रिश्तों की नाजुक डोर को बचाना पड़ता है।
पता :आदर्श नगर, बरा, रीवा (मध्य प्रदेश)
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