कर्मचारियों के तेवरों से असमंजस में सरकार

 



देहरादून/प्रमोशन में आरक्षण के विवाद पर सरकार उलझ गई है। सरकार के सामने संकट इस बात का है कि आखिर मांग माने तो माने किसकी? सामान्य-ओबीसी कर्मचारी जहां सरकार से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार व्यवस्था की मांग को लेकर हड़ताल शुरू कर चुके हैं, वहीं एससी-एसटी कर्मचारी भी झुकने को तैयार नहीं। उनका दो टूक कहना है कि यदि सरकार परंपरा से छेड़छाड़ की तो उसका गंभीर खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। कर्मचारियों के दोनों वर्गों के तेवर सरकार के लिए बड़ी मुश्किल बन चुके हैं। आरक्षण का विषय बेहद संवेदनशील होने की वजह से सरकार फिलहाल अनिर्णय की स्थिति में है। दरअसल, सरकार की चिंता की वजह कुछ और भी है। सामान्य-ओबीसी वर्ग के कार्मिकों के लिए यह राज्य के भीतर का मुद्दा है। पर सरकार व भाजपा के रणनीतिकार मानते हैं कि आरक्षण पर लिए किसी भी फैसले की गूंज पूरे देश में जाएगी। कांग्रेस पहले ही इस मुद्दे पर अपना स्टैंड साफ कर चुकी है। कांग्रेस हाईकमान प्रमोशन में आरक्षण के पक्ष में है। स्थानीय कांग्रेसी नेता इस बारे में तीखे बयान दे चुके हैं। अनिर्णय की स्थिति अब केवल भाजपा के सामने है। भाजपा न तो खुलकर प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ बोल पा रही है और समर्थन करने से भी हिचक रही है।प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर सरकार गंभीर है। बातचीत से किसी भी विवाद का हल निकाला जा सकता है और, सरकार बातचीत को तैयार भी है। कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री और मेरे साथ मुलाकात के दौरान और अपना-अपना पक्ष रखा है। सरकारी प्रवक्ता मदन कौशिक, का कहना है कि वर्तमान में सरकार के सामने बजट सत्र के चलते व्यस्तता है। 25 मार्च से गैरसैंण में बजट सत्र का दूसरा चरण शुरू होना है। कर्मचारियों को भी यह बात समझनी चाहिए। कर्मचारियों को चाहिए कि वे राज्य हित में आंदोलन को वापस लें और बातचीत के जरिए समाधान का रास्ता तलाशने के लिए आगे आएं।


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