कभी टिहरी राजा की सम्पत्ति थी कार्बेट नेशनल पार्क
प्रीति नेगी
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देहरादून/जनमंच टुडे।
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बेहतर आबोहवा और प्राकृतिक सुंदरता के लिए देश विदेश में विख्यात उत्तराखण्ड में एक से बढ़कर एक विख्यात धर्मस्थल और पर्यटक स्थल हैं जो लोगों को बरबस अपनी ओर खिंचते हैं, उन्ही में एक है विश्व विख्यात कार्बेट नेशनल पार्क। गढ़वाल की शिवालिक पर्वत श्रृंखलाओं की तलहटी के घनघोर जंगलों से आच्छादित यह विशाल राष्ट्रीय पार्क जैव विविधता के लिये पूरी दुनिया मेंं मशहूर है। पार्क में रामगंगा गंगा जैसी विशाल नदी के साथ ही अनेक छोटे- छोटे झरने और नदियां इस पार्क की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं। जैवविविधता के लिए मशहूर विभिन्न प्रकार के पक्षियों के साथ रंगबिरंगी तितलियों की प्रजातियां पाई जाती है। यह पार्क बाघों के सरक्षण के लिए दुनिया भर में मशहूर है। इस पार्क में राष्ट्रीय पशु बाघ के साथ ही हाथी, भालू, लगड़बघा, गुलदार, जंगली कुत्ते, भेड़िया, सांभर, जंगली बिल्लियां, लोमड़ी के समेत विभिन्न प्रजातियों के जीव पाए जाते हैं। यहां की नदियों में घड़ियाल, मगरमच्छ के साथ ही गोल्डन महाशीर और कैट फिश मछलियों की प्रजाति भी पाई जाती है। क्या आपको पता है कार्बेट नेशनल पार्क कभी टिहरी के राजा की अपनी जमीन थी। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 1800 ई तक यह क्षेत्र टिहरी नरेश की निजी संपत्ति थी। कहा जाता है जब गोरखाओं ने आक्रमण किया तो अंग्रेजों ने टिहरी राजा की बहुुुत मदद की थी, बदले में टिहरी नरेश ने इस क्षेत्र को 1820 ई में अंग्रेजों को भेंट कर दिया और जंगल का मालिकाना हक अंग्रेजों के पास आ गया और 1858 तक इस जंगल पर अंग्रेजों का आधिपत्य रहा। इसके बाद अंग्रेज़ों ने इस जंगल के लिए एक संरक्षण परियोजना बनाई। इस इलाके में पशु चुगान और खेती करने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई। धीरे, धीरे समय के साथ सबकुछ बदलता गया तो 1868ई में इसकी देखरेख की जिम्मेदारी वनविभाग को सौप दी गई। फिर 1879 में इस विशाल वन क्षेत्र को वन आरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया, इसके जीवजन्तु के लिए यह सबसे मुफीद बन गई। तीन जनवरी 1907 में सर माइकल किन के दिमाग में पहली बार इस विशालकाय जंगल को गेम सेंचुरी बनाने का आइडिया आया और इसके लिए तत्कालीन ब्रिटिश सरकार को प्रस्ताव बनाकर भेजा लेकिन ब्रिटिश हुकूमत ने सर माइकल किन के प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया। लंबे समय बाद 1934 में गवर्नर सर मेलेकम हेली ने इस पूरे वन क्षेत्र को वन्य जीवों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए कानून बनाने की माँग सरकार से की और वन्य जीवों की रक्षा के लिए आवाज उठाई। इसके बाद मेजर जिम कार्बेट के नेतृत्व में इसके सीमाकंन के लिए टीम गठित की। जिम कॉर्बेट जब सीमांकन के लिए यहां पहुँचे तो वह क्षेत्र की सुंदरता को देखकर मंत्रमुग्ध हो गए। वह कई दिनों तक अपनी टीम के साथ यहां घूमते रहे। जिम ने इस क्षेत्र का सीमाकंन करके रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। जिम के रिपोर्ट के बाद अगस्त 1936 में यूनाइटेड प्रोविंस नेशनल पार्क एक्ट के तहत इसे भारत का पहला राष्ट्रीय उद्यान घोषित कर दिया गया और इसे नेशनल हेली पार्क का नाम दिया गया। बाद में इसका नाम बदलकर रामगंगा नेशनल पार्क कर दिया गया। शुरुवात में इस पार्क का क्षेत्रफल 323 वर्ग किमी रखा गया । जानवरों की संख्या में जैसे ही इज़ाफ़ा हुआ तो 1966 में पार्क का क्षेत्रफल 323 से बढ़ाकर 520.82 वर्ग किमी कर दिया गया। जीवों की बढ़ रही संख्या के चलते फिर इसका एक बार फिर विस्तार किया गया, और 520.82 से बढ़ाकर इसका क्षेत्रफल 1288.32 वर्ग किमी कर दिया गया। कहा जाता है कि पहले यहां जीवों का अंधाधुंध शिकार होता था। पार्क में सैर करने के लिए पहुँचने वाले राजा, महाराजाओं, सामंतों और अधिकारियों को मुख्य वन संरक्षक कार्यालय से मनोरंजन के लिए जीवों के शिकार की अनुमति दी जाती थी, इसका परिणाम यह हुआ कि जंगली जीवों के असितत्व पर संकट छाने लगा। जिसके बाद इसे बन्द कर दिया गया। जिम कार्बेट ने भी इस पार्क में अनेक जीवों का शिकार किया। कहा जाता है कि जिम ने 100 से भी अधिक बाघों का शिकार किया था। जिम के बारे में कहा जाता है कि वह बाघ की आवाज़ निकालने में माहिर थे। वह बाघ की आवाज निकाल के बाघ को अपने पास बुला लेते थे और बिना हाका और काटा लगाए ही उसका शिकार करते थे। जानवरों को मारने वाले जिम का ह्रदय अचानक कैसे परिवर्त हुआ कि उसने जीवों को मारना छोड़कर उनके सरक्षण व बचाव में लगा दिया। इसके पीछे भी एक रोचक तथ्य है। कहा जाता है कि 1940 में मेजर जिम की शिकारी मंडल टीम नैनीताल के पास जंगल में शिकार करने गई थी। इसी दौरान शिकारी दल ने एक ही दिन में तीन सौ से अधिक जंगली मुर्गियों को मार डाला और उनका मास पकाया। इतनी सारी मुर्गियों के एक साथ मारे जाने से जिम का ह्रदय इतना द्रविड और दुखी हुुुआ की उसने अपनी बंदूक एक तरफ फेंक दी और जीव हत्या न करने का प्रण ले लिया। शिकारी मंडली ने कार्बेट को समझाया लेकिन वह नही माने। इस दिन के बाद जिम की अपनी दिनचर्या बदल गई, जो कल तक जीवों को मारता था वह उनको बचाने में जुट गया था। वह जंगलों में घूम कर घायल जीवों की खोज कर उनका उपचार करने लगा। जिम कॉर्बेट ने अपनी जान जोखिम में डालकर दर्जनों घायल बाघों का उपचार कर उन्हें नया जीवन दिया। लम्बी बीमारी के चलते जब जिम का निधन हुआ तो इस पार्क के जंगली जीवों के प्रति उनकी सेवा व समर्पित भावना को देखते हुए इस रामगंगा नेशनल पार्क का नाम बदल कर जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क रख दिया गया।
- प्रीति नेगी
- सम्पादक,
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