कोरोना की वैश्विक महामारी के चलते इतिहास में पहली बार हुआ है कपाट खुलने की तिथि में बदलाव, जानिए बद्रीनाथ धाम से जुड़ी कुछ और महत्वपूर्ण जानकारी।
देहरादून – कोरोना की वैश्विक महामारी के चलते इतिहास में पहली बार हुआ है कपाट खुलने की तिथि में बदलाव, जानिए बद्रीनाथ धाम से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी ?
देवभूमि उत्तराखंड की पौराणिक चार धाम यात्रा में पहली बार देश के इतिहास में बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि एक बार तय होने के बाद दोबारा तय की गई है।
कपाट खोले जाने की तिथि में बदलाव के पीछे की मुख्य वजह सिर्फ और सिर्फ कोरोना की वैश्विक महामारी को ही बताया जा रहा है। आखिर क्या है 108 भू बैकुंठ धाम बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने की धार्मिक परंपराएं जो सदियों से चली आ रही है। आइए आपको बताते हैं इस स्पेशल रिपोर्ट में…..
दरअसल बसंत पंचमी के दिन टिहरी के राजपरिवार के पुरोहितों के द्वारा भगवान बद्रीविशाल के कपाट खोले जाने की तिथि तय की जाती है। पिछले सालों की तरह इस साल भी बसंत पंचमी को राज घराने में विधि विधान से पूजा अर्चना करने के बाद टिहरी नरेश की मौजूदगी में बसन्त पंचमी के शुभ मुहूर्त में भगवान बद्री विशाल के कपाट खोले जाने का समय तय किया गया था। इस सीजन में 30 अप्रैल को सुबह ब्रह्म बेला में भगवान बद्रीविशाल के कपाट वैदिक मन्त्रोच्चारण और पूरे विधि विधान के साथ आम श्रद्धालुओं के लिए खोले जाने की तिथि तय की गई थी।
बद्रीनाथ धाम के कपाट खोलने की तिथि तय करने का अधिकार टिहरी नरेश और टिहरी के राजपरिवार को ही प्राप्त है। लिहाजा कोरोना की वैश्विक महामारी के चलते एक बार फिर दोबारा से लंबे मंथन के बाद बदरीनाथ धाम के कपाट खोलने की तिथि तय की गई है। जिसका मुख्य कारण बद्रीनाथ धाम के रावल दूसरे प्रांत से उत्तराखंड पहुचना और केंद्र सरकार के लॉक डाउन के नियमों का पालन करने के चलते उनको 14 दिन के लिए क्वॉरेंटाइन किया गया है। जिसके चलते कपाट खोले जाने की तिथि को अब 30 अप्रैल से बढ़ाकर 15 मई कर दिया गया है।
दरअसल बद्रीनाथ धाम के कपाट खोले जाने की बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर पूजा अर्चना की जाती है। और तिथि तय की जाती है, वो एक मनमोहक नजारा होता है। क्योकि राज परिवार की महिलाओं द्वारा गाडूघड़ा तेल कलश तैयार किया जाता है। जिसमें तिल से तेल को पीरोंकर एक कलश एकत्र किया जाता है। उसके बाद फिर पूरे विधि-विधान से राज दरबार में ही बद्रीनाथ जी की पूजा आराधना की जाती है। अब दोबारा से इसकी तिथि 5 मई नियत की गई है। जिस दिन राज दरबार टिहरी में गाडूघड़ा तेल कलश की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।
इसके बाद गाडूघड़ा तेल कलश को लेकर डिमरी धार्मिक पंचायत के लोग जोशीमठ, पांडुकेश्वर से होते हुए भगवान बद्रीविशाल जी के कपाट खुलने से ठीक एक दिन पहले भगवान विष्णु जी के पावन धाम में पहुंचते है। लिहाजा तय तिथि के अनुसार यानी 15 मई को भगवान बद्री विशाल की वैदिक मंत्रोउचारण से पूजा अर्चना करने के बाद ब्रह्म मुहूर्त 4:30 बजे में श्रद्धालुओं के लिए कपाट खोल दिए जाएंगे हैं। सालों से चली आ रही इस धार्मिक परंपरा के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है। जब बद्री विशाल जी के कपाट खोलने की तिथि, एक बार तय होने के बाद दोबारा फिर से तय की गई है।
डिमरी धार्मिक पंचायत के अध्यक्ष आशुतोष डिमरी ने बताया कि अब बद्रीनाथ धाम के कपाट खोले जाने के लिए राजपरिवार से तेल एकत्र होने की परंपरा यानी गाडूघड़ा तेल कलश, 5 मई को जोशीमठ के लिए रवाना किया जाएगा। इसके बाद डिमर गांव से होते हुए 14 मई की शाम तक गाडूघड़ा तेल कलश, बद्रीनाथ धाम पहुंचाया जाएगा। जिसके बाद 15 मई को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में 4:30 बजे पूजा आराधना के बाद भगवान बद्रीविशाल के कपाट खोल दिए जाएंगे।
साथ ही बताया कि श्री हरि विष्णु भगवान के धाम में 15 मई से नियमित रूप से सुबह दोपहर और शाम की आरती पूजा आराधना का सिलसिला भी शुरू हो जाएगा। बावजूद इसके यात्रा सीजन ठीक से शुरू हो पाएगा या नहीं इसके लिए अभी श्रद्धालुओं को थोड़ा सा इंतजार करना पड़ेगा, क्योकि 3 मई को लॉकडाउन की तिथि खत्म होने के बाद केंद्र सरकार आखिर क्या फैसला लेती है। चारधाम यात्रा के संचालन को एकर सब कुछ इस पर निर्भर करेगा।
गौरतलब है कि बद्रीनाथ धाम के कपाट बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर खोलने की तिथि तय की जाती है। जबकि केदारनाथ धाम के कपाट खोले जाने की तिथि उखीमठ स्थित ओमकारेश्वर मंदिर में शिवरात्रि के पावन पर्व पर तय की जाती है। इसी तरह मां यमुनोत्री जी के कपाट खोले जाने की तिथि तय की जाती है साथ ही पतित तो पावनी मां गंगा यानी गंगोत्री धाम के कपाट खोले जाने की तिथि तय की जाती है।
धार्मिक मान्यताएं हैं कि उत्तराखंड के चारोधामो में सबसे पहले यमुनोत्री और गंगोत्री के कपाट अक्षय तृतीया पर खोले जाते हैं इसके बाद बाबा केदारनाथ धाम के कपाट और फिर भगवान बद्रीविशाल जी के कपाट, श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाते हैं। चारों धामों के कपाट खोले जाने की तिथि को तय किए जाने का भी एक महत्वपूर्ण समय होता है।जबकि कपाट बंद करने का समय भी धार्मिक परंपराओं के हिसाब से ही तय किया जाता है।
टिप्पणियाँ