बरेली: महामारी में घरेलू हिंसा पर हाईकोर्ट ने मांगी सरकार की रिपोर्ट


बरेली/ उच्च न्यायालय ने कोरोना-महामारी काल में महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा के मामलों को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल से स्टेटस (प्रगति) रिपोर्ट मांगी है। कोविड-19 के दौरान घरेलू हिंसा की शिकायतों पर सरकार ने क्या कदम उठाए हैं। सभी पीड़िताओं के संबंध में इसका विवरण प्रस्तुत करें। सुनवाई की अगली तारीख 27 जुलाई नियत हुई है।


आला हजरत हेल्पिंग सोसायटी की अध्यक्ष निदा खान ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में यह जनहित याचिका (पीआईएल) दाखिल की है। बुधवार को न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की दो सदस्सीय डिवीजन बेंच ने मामले को सुना। याची ने अपनी याचिका में घरेलू हिंसा से जुड़ी शिकायतों की निगरानी और निस्तारण के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त किए जाने का आग्रह किया है, ताकि ऐसे मामलों में पीड़िताओं को राहत मिल सके और त्ववरित कार्रवाई हो।


महिलाओं को घर से निकालने पर पहुंचीं न्यायालय


लाकडाउन के अंतराल में शहर में महिलाओं को घर से निकालने की घटनाएं अचानक बढ़ गई थीं। जगतपुर की एक नव-विवाहिता को अप्रैल में उनके पति ने घर से निकाल दिया था। इससे पहले भी कई घटनाएं प्रकाश में आईं। इससे विचलित होकर निदा खान ने घरेलू हिंसा के मामलों का विवरण जुटाया। 24 मार्च को लाकडाउन प्रभावी होने के बाद उन्होंने देशभर में 257 घटनाओं का ब्यौरा एकत्रित किया। इसमें सर्वाधिक 90 मामले उप्र के थे। अपनी याचिका में भी इसका जिक्र किया है।


तीन तलाक के बाद अब सम्मान की लड़ाई


निदा खान आला हजरत खानदान की बहू हैं। शौहर से विवाद के कारण इनका मामला न्यायालय में है। निदा खान ने तीन तलाक के विरुद्ध बड़ी आवाज उठाई थी। इस पर उनके विरुद्ध इस्लाम से खारिज किए जाने का फतवा भी जारी हुआ, जिसकी देशभर में आलोचना हुई। निदा खान कहती हैं कि महिलाओं को आत्मसम्मान से जीने का अधिकार है। मगर पुरुष पल भर में उन्हें घर से निकाल देते। तलाक की धमकी देते। ऐसा करके वे उनके साथ लगातार हिंसक व्यवहार करते हैं। जिला स्तर पर कोई पीड़िताओं की सुनवाई के लिए कोई मजबूत तंत्र नहीं है। पुलिस-प्रशासन भी नहीं सुनता। अंतता हिंसा जारी रहती है।


जिला स्तर पर नहीं नोडल अधिकारी


एमजेपी रुहेलखंड विश्वविद्यालय के विधि विभाग के विभागाध्यक्ष डा. अमित सिंह बताते हैं कि घरेलू हिंसा अधिनियम-2005 में यह कहा गया था कि जिला स्तर पर एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति की जाए। मगर अधिकांश जिलों में अभी तक नोडल अधिकारी नियुक्त नहीं हुए हैं। जिला समाज कल्याण अधिकारी या डीपीओ को इसका प्रभार सौंपकर काम चलाया जा रहा है। यही कारण है कि ऐसे मामलों में महिलाओं की शिकायतें निस्तारित नहीं हो पाती हैं।


 


 


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