लैंसडौन वन प्रभाग की शर्मनाक करतूत। 9 माह की गर्भवती को भी नहीं बख्शा
रिपोर्ट- मनोज नौडियाल
कोटद्वार। लैंसडौन वन प्रभाग के कोटद्वार रेंज अंतर्गत स्वीकृत 50 वर्षों से निवास कर रहे कासिम और मस्तु के परिवार पर कोटद्वार रेंज के अधिकारियों का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। जून के प्रथम सप्ताह में अधिकारियों की मौजूदगी में वन कर्मियों ने गुर्जर परिवारों की झोपड़ियों को आग के हवाले कर दिया था। जिसमें 7-8 गुर्जर परिवार अपने बाल बच्चों और परिवार सहित बेघर हो गए थे। जब इस खबर के दौरान प्रसारित की तो वन विभाग का गुस्सा सातवें आसमान घर पहुंच गया। वन विभाग का गुस्सा उन तक ही सीमित रहा और विभागीय जांच शुरू हो गई। लेकिन जांच से बौखलाए वन कर्मियों ने गुर्जर परिवार के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी।
शनिवार की शाम 5:00 बजे फॉरेस्टर के नेतृत्व में वन विभाग की टीम गुर्जरों के डेरे पर पहुंच गई। गुज्जर तो मिले नहीं तो उन्होंने वहां पर मौजूद गुर्जर परिवार की महिलाओं के साथ बद नियति तो की ही साथ ही उनके साथ मारपीट भी कर डाली। जिसमें 9 माह की गर्भवती जयुवती भी घायल हो गई। उन्होंने गुर्जर परिवारों के बच्चों के साथ भी मारपीट से गुरेज नहीं किया। वन कर्मियों के इस रवैया ने मानवता के चेहरे को शर्मसार तो किया ही साथ ही वन विभाग के कर्मचारियों की मानसिकता को भी दर्शाया है। जिन वन कर्मियों ने 9 माह की गर्भवती महिला से मारपीट की और बच्चों को नहीं बख्शा उनसे कैसे किसी मानवता की उम्मीद की जा सकती है। जब इस संबंध में गुर्जर परिवार के पुरुषों के पता लगा तो वह अपनी फरियाद लेकर कोटद्वार कोतवाली पहुंचे। लेकिन वहां पर मौजूद पुलिसकर्मी भी वन विभाग से पीछें रहने की कसम ही खाय हुए थे, और उन्होंने रिपोर्ट दर्ज तक नहीं की।
जब की इस संबंध में मानवता के नाते पुलिस को शीघ्र कार्यवाही करनी चाहिए थी। जबकि महिला का इलाज राजकीय संयुक्त चिकित्सालय में 2 दिन से चल रहा है। जिस की मेडिकल रिपोर्ट संलग्न की जा रही है। वन विभाग का यह शर्मनाक चेहरा निश्चित रूप से मानवता को शर्मसार करता है। साथ ही सूबे के वन मंत्री जिनकी यह विधानसभा भी है की लापरवाही को भी दर्शाता है। जिनकी विधानसभा क्षेत्र में विभाग से संबंधित कर्मचारी ऐसा काम करते हो और उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती। ऐसे में राज्य के अन्य जिलों में वन कर्मी वन क्षेत्र से लगे परिवारों के साथ कैसा व्यवहार करते होंगे। यह तो सोचने समझने की बात है। अब देखना यह है कि, वन कर्ममचारियो पर विभाग के उच्चाधिकारी कार्यवाही करते हैं या सूबे के वन मंत्री।
Source :Bright post news
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