हरिवंश का पहला कार्यकाल पूरा, चुनाव का फिर करना होगा सामना, ऐसा रहा पत्रकार से उपसभापति बनने तक का सफर
जेडीयू के राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ पत्रकार हरिवंश नारायण सिंह एक बार फिर से राज्यसभा के उपसभापति बन सकते हैं। एनडीए ने हरिवंश को एक बार फिर से उपसभापति पद के लिए उम्मीदवार बनाने का फैसला लिया है। राज्यसभा सांसद हरिवंश नारायण सिंह ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की ओर से उप सभापति के उम्मीदवार के तौर पर नामांकन भर दिया है। साल 2014 का दौर जब धमक के साथ सत्ता में आई बीजेपी लोकसभा में तो पूर्ण बहुमत के साथ थी मामला राज्यसभा को हो तो यहां उसका पलड़ा थोड़ा हल्का दिखता था। लेकिन 2014 में सरकार बनने के बाद पहला मौका था जब राज्यसभा में बीजेपी ने बाजी मारी। हरिवंश नारायण सिंह की जीत पक्की करने के लिए जबरदस्त नेटवर्किगं की गई। बीजेपी ने एक ऐसा उम्मीदवार खड़ा किया जिसका विरोध करना तमाम दलों के लिए बेहद ही मुश्किल था। जिसके बाद अंक गणित एनडीए के पक्ष में होने के बाद साल 2018 के अगस्त के महीने में हरिवंश नारायण सिंह जो पहले पत्रकार थे वो उप सभापति हो गए।
छठी क्लास में बिना जूतों के जाते थे स्कूल
हरिवंश नारायण सिंह का जन्म 30 जून 1956 को बिहार के छपरा में हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पास के ही टोला काशी राय के स्कूल से ली। जिसके बाद जेपी इंटर कॉलेज सेवाश्रम से 1971 में हाईस्कूल पास करने के बाद वे वाराणसी पहुंचे। जहां हरिवंश ने यूपी कॉलेज से इंटरमीडिएट और उसके बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक किया और पत्रकारिता में डिप्लोमा की डिग्री हासिल की। लेकिन उनकी स्कूली शिक्षा के दौरान की एक कहानी ऐसी भी है जब छठी कक्षा में पढ़ने के दौरान उनके जूते फट गए थे और घर की हालत ऐसी नहीं थी कि झट से बाजार जाए और नए चमचमाते जूते खरीद लाए। हालांकि उनके पिता जूते बनाने वाली एक दुकान पर जाते हैं और जूते का ऑर्डर दे देते हैं। इस दौरान हरिवंश रोज बिना जूतों के स्कूल जाते हैं और साथ ही रोज उस दूकान पर भी जहां पर उनके पिता ने जूतों को बनाने का आर्डर दिया होता है। एक उम्मीद कि शायद आज जूते बन गए होंगे, एक आशा कि कल से जूतों को पैरों में डाल वो स्कूल जा सकेंगे। ये उम्मीद और आशा का दौर चलता रहा और जूते की दूकान पर जाने का क्रम भी एक महीने तक लगातार चलता रहा। फिर जाकर हरिवंश को आखिरकार नए जूते मिले।
पत्रकार हरिवंश
पत्रकारिता में डिप्लोमा की डिग्री लेने के बाद हरिवंश ने 1977-78 में टाइम्स ऑफ इंडिया समूह मुंबई से अपनी पत्रकारिता की पारी का आगाज किया। इसके बाद ये क्रम चलता रहा और धर्मयुग, आनंद बाजार पत्रिका जैसे संस्थानों में विभिन्न भूमिका निभाने के साथ ही पत्रकारिता की दुनिया में मुकाम हासिल करने के कदम भी बढ़ता रहा। हालांकि साल 1981 से 1984 के बीच में उन्होंने हैदराबाद एवं पटना में बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी भी की लेकिन इसके बाद 1984 में पत्रकारिता की पेशे को फिर से चुना। इसके बाद वे टाइम्स समूह की साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग में 1981 तक उप संपादक रहे। 1981-84 तक हैदराबाद एवं पटना में बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी की और वर्ष 1984 में इन्होंने पत्रकारिता में वापसी की और 1989 अक्तूबर तक आनंद बाजार पत्रिका समूह से प्रकाशित रविवार साप्ताहिक पत्रिका में सहायक संपादक रहे। साल 1990 के नवंबर महीने में बागी बलिया के चंद्रशेखर प्रधानंत्री बने तो हरिवंश उनके अतिरिक्त सूचना सलाहकार बने और वो इस पद पर जून 1991 तक रहे जब तक कि चंद्रशेखर प्रधानमंत्री के पद पर रहे। साल 2018 का दौर था और एक साल बाद लोकसभा के चुनाव होने थे। कभी सीटों को लेकर कभी बयानों को लेकर एनडीए के बीच या फिर कहे बीजेपी और जेडीयू के बीच खटपट की खबरें मीडिया में आ रही थी। अमित शाह और नीतीश कुमार के बीच बैठक हुए और फिर ये तय हुआ कि एनडीए की तरफ से जेडीयू सांसद हरिवंश नारायण सिंह राज्यसभा के उपसभापति का उम्मीदवार बनाया जाएगा। इसके पीछ विश्लेषकों ने उपसभापति का पद जेडीयू को देने के पीछे बिहार में जेडीयू और बीजेपी के बीच जारी गतिरोध को खत्म करने की दिशा में एक कदम के तौर पर देखा है। एनडीए उम्मीदवार हरिवंश को 125 वोट मिले जबकि विपक्षी उम्मीदवार बी के हरिप्रसाद को 105 वोट मिले। जिसके बाद हरिवंश राज्यसभा के उपसभापति पद का चुनाव जीत जाते हैं।
Source:Agency news
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