सुरक्षित वैक्सीन लाना चाहता है भारत, इसलिए रूस की तरह हड़बड़ी नहीं दिखा रहा


वैक्सीन पर लोगों का भरोसा जगाने के लिए खुद अपने पर या अपने किसी नजदीकी पर इसका परीक्षण करने का यह चलन चिकित्सा के इतिहास में कोई नया नहीं है। सच तो यह है कि ऐसा चलन अब इतिहास की चीज हो चुका है।



 


केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा है कि भारत जो कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार कर रहा है वह मार्च तक तैयार हो जाएगी और इसका सबसे पहला इंजेक्शन वह खुद लगवाएंगे। कुछ सप्ताह पहले जब रूस ने अपनी विवादास्पद कोरोना वैक्सीन स्पूतनिक-वी लांच की थी तो उसका पहला इंजेक्शन रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन की बेटी को लगाया गया था। वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित है इसका आश्वासन देने के लिए रूस को ऐसे किसी हाईप्रोफाइल वैक्सीनेशन की जरूरत थी, क्योंकि दुनिया भर में यह कहा जा रहा था कि इस वैक्सीन के परीक्षण पूरे नहीं हुए हैं, इसलिए इसमें कई तरह के खतरे भी हो सकते हैं। भारत में अभी तक वैक्सीन लांच करने को लेकर वह हड़बड़ी नहीं दिखाई गई जो रूस में दिखाई गई थी, लेकिन फिर भी स्वास्थ्य मंत्री को लगा कि लोगों को आश्वस्त करने के लिए यह तरीका अपनाया जाना चाहिए।


वैक्सीन पर लोगों का भरोसा जगाने के लिए खुद अपने पर या अपने किसी नजदीकी पर इसका परीक्षण करने का यह चलन चिकित्सा के इतिहास में कोई नया नहीं है। सच तो यह है कि ऐसा चलन अब इतिहास की चीज हो चुका है। दुनिया की पहली आधुनिक वैक्सीन चेचक की बनी थी जिसे ब्रिटेन के डॉक्टर एडवर्ड जेनर ने विकसित किया था। उन्होंने जब यह वैक्सीन बनाई तो इसका सबसे पहला परीक्षण अपने माली के बेटे पर किया। जब वहां सफलता दिखाई दी तो उन्होंने 23 और लोगों को इसका टीका लगाया। इन 23 लोगों में उनका अपना बेटा भी शामिल था। बाद में यह तरीका चल निकला। कई बार तो जो वैज्ञानिक वैक्सीन विकसित करता वह पहला इंजेक्शन खुद को ही लगाता।


 


इसका सबसे अच्छा उदाहरण उजबेकिस्तान के वैज्ञानिक वाल्डेमर हॉफकिन हैं जिन्हें हम इसलिए याद करते हैं कि उन्होंने भारत को एक नहीं दो-दो महामारियों की वैक्सीन दी। उन्नीसवीं सदी के अंतिम दशक में जब वे पेरिस के विश्वप्रसिद्ध पॉस्टर इंस्टीटयूट में शोध कर रहे थे तो वहां उन्होंने हैजे की वैक्सीन विकसित की। इसका पहला इंजेक्शन उन्होंने खुद को ही लगाया और इस वैक्सीन को लेकर वे भारत आ गए। यह हॉफकिन की वैक्सीन ही थी जिसमें भारत को हैजे से मुक्ति का पहला भरोसेमंद आश्वासन मिला। उन्होंने पूरे देश में घूम-घूम कर लोगों को वैक्सीन लगाई और इसके लिए काफी ख्याति भी अर्जित की। अभी भारत को हैजे की मुसीबत से छुटकारा मिलना शुरू हुआ ही था कि तभी मुंबई में प्लेग फैल गया। बड़ी संख्या में लोगों की जान जाने लगी। ऐसे में वहां हॉफकिन को याद किया गया। हॉफकिन कोलकाता से मुंबई पहुंचे और प्लेग पर शोध करने लगे। कुछ सप्ताह के शोध के बाद उन्होंने जो वैक्सीन तैयार की उसका सबसे पहले इंजेक्शन इस बार भी उन्होंने खुद को ही लगाया। उसके बाद प्रयोगशाला में उनके साथ शोध कर रहे ज्यादातर लोगों को लगा। प्लेग के मामले में भी हॉफकिन को लगभग वैसी ही सफलता मिली जैसी कि हैजे के मामले में मिली थी।


 


यह चलन लंबे समय तक चला और फिर बंद हो गया। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान को वैक्सीन के प्रति आश्वस्त करने के लिए इस तरह के किसी करतब की जरूरत नहीं रह गई। अब बाकी दवाओं की तरह ही वैक्सीन के परीक्षण का एक निश्चित प्रोटोकॉल है। यह परीक्षण किस तरह, कितने चरणों में और किन लोगों की निगरानी में होगा इसके सारे नियम कायदे बहुत विस्तार से बनाए गए हैं। हालांकि इसमें बहुत लंबा समय लग जाता है लेकिन अब यह वैक्सीन विकसित करने का मानक बन चुका है। यह माना जाता है कि इस प्रोटोकॉल का ठीक तरह से पालन करके जो भी वैक्सीन तैयार की जाएगी वह पूरी तरह सुरक्षित होगी।


हालांकि कोरोना वायरस के मामले में संकट गहरा होने की वजह से वैज्ञानिकों पर यह दबाव है कि वे तेजी दिखाएं। खासतौर पर कई देशों में राजनैतिक स्तर पर इसके लिए दबाव बनाया जा रहा है। अभी तक जिस काम में उन्हें महीनों लग जाते थे उसे कुछ ही हफ्तों में करने के लिए कहा जा रहा है। कई वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तरह जो वैक्सीन तैयार होगी उसमें कुछ खतरे भी छुपे हो सकते हैं, उनमें कई तरह की कमी भी हो सकती है। माना जाता है कि रूस की वैक्सीन इसी दबाव में बहुत जल्दी तैयार कर दी गई। खतरे क्या हो सकते हैं इसे हम ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार की जा रही वैक्सीन के मामले में देख चुके हैं। शुरूआती परीक्षणों में पाया गया कि इस वैक्सीन से कुछ लोगों को अजीब किस्म का बुखार होने लग गया था।


 


जब वैक्सीन को भरोसेमंद साबित करने के लिए उसका परीक्षण खुद पर या अपने किसी खास पर किया जाता था तब से आज तक लगभग एक सदी का समय बीत चुका है। अपनी बेटी को वैक्सीन का इंजेक्शन लगवाकर रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने वैक्सीन विज्ञान को एक सदी पहले के दौर में पहुंचा दिया है। इसके लिए उन्होंने उन तौर तरीकों को भी ताक पर रख दिया है जो इस एक सदी की यात्रा में विज्ञान ने स्थापित किए थे। रूस ने जो भी किया, भारत ने वैसी हड़बड़ी नहीं दिखाई। इसलिए उम्मीद है कि भारत को उस तरीके को आजमाने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी जो रूसी राष्ट्रपति ने अपनाया।


Source:Agency News


 



 



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