जारी है बिहार का चुनावी घमासान, विकल्पहीनता रही वजह या फेल हुआ एक्शन प्लान, जिसकी वजह से PK ने छोड़ा मैदान!

 



नीतीश सरकार पर हमालवर रहने वाले प्रशांत किशोर उर्फ पीके ने एक कैंपेन लॉन्च करने की भी बात कही जिसका नाम होगा ‘बात बिहार की। मुहिम को लेकर लंबे चौड़े दावे भी किये गए, लेकिन कुछ दिन बाद ही सारा मामला ठंडा पड़ गया।



 


बिहार चुनाव 2020 की तैयारियां अपने पूरे शबाब पर है। एनडीए और महागठबंधन के नेता तो सक्रिय नजर आ रहे हैं, लेकिन कभी फरवरी के महीने में पूरे दम-खम से नीतीश कुमार के खिलाफ खम ठोकने वाले राजनीतिक विश्लेषक से नेता बने प्रशांत किशोर सीन से ही गायब लग रहे हैं। 18 फरवरी 2020 को जब बिहार की राजधानी पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया। नीतीश सरकार पर हमालवर रहने वाले प्रशांत किशोर उर्फ पीके ने एक कैंपेन लॉन्च करने की भी बात कही जिसका नाम होगा ‘बात बिहार की।  




मुहिम को लेकर लंबे चौड़े दावे भी किये गए, लेकिन कुछ दिन बाद ही सारा मामला ठंडा पड़ गया। वजह भी कोई ऐसी वैसी नहीं थी, कोरोना वायरस और लॉकडाउन के चलते दुनिया की बाकी चीजों की तरह परंपरागत राजनीति के तौर तरीके भी बदल गये। ले देकर सोशल मीडिया और वर्चुअल कैंपेन का ही सहारा बचा जो सत्ता पक्ष के लिए तो ठीक रहा लेकिन विपक्षी खेमा कुछ भी कर पाने में असमर्थ साबित होने लगा। आलम यह है कि वे सोशल मीडिया पर भी एक्टिव नहीं हैं और 20 जुलाई के बाद से उन्होंने कोई ट्वीट भी नहीं किया है। अपने अंतिम कमेंट में प्रशांत किशोर ने 20 जुलाई को देश में कोरोना वायरस के संक्रमण का जिक्र किया था और इससे पहले भी 11 जुलाई को लिखा था कि नीतीश जी ये वक्त चुनाव का नहीं, बल्कि कोरोना से लड़ने का है। चुनाव कराने की जल्दी में लोगों की जिन्दगी को खतरे में मत डालिए।



बात बिहार की से मिशन बंगाल तक


साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर की भूमिका पर पूरे प्रदेश की निगाहें थी। चुनाव नतीजे आये तो मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को जेडीयू में उपाध्यक्ष बनाकर नंबर दो की पोजीशन दे डाली और पार्टी का भविष्य भी बताया। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रशांत किशोर कोरोना लॉकडाउन के दौरान ही ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस की 'मिशन बंगाल' के लिए निकल गए हैं। 


 


चुनावी कैंपेन में लौटने के अलावा नहीं था विकल्प


साल 2015 का चुनाव बिहार की राजनीति में एक नया अयाम लिखने वाला चुनाव था। बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है के नारा दिया तो उसे पूरे बिहारवासियों ने सुना भी और दिल से लगाया भी। नीतीश कुमार की छवि को और निखारने के लिए प्रशांत किशोर ने इस नारे को गढ़ा था। नीतीश से अलगाव के बाद पीके ने कोशिश तो की लेकिन सीएम नीतीश जैसे चेहरे की काट खोजना फिलहाल बिहार में मुश्किल था, ऐसे में उनके पास भी फिलहाल अपने पुराने पेशे यानी चुनावी कैंपेन में लौटने के अलावा बहुत विकल्प नहीं था।



Source: Prabha shakshi


 



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