कविता- "माफ़ किया"
शिवम अनन्तपुरिया
"माफ़ किया"
_गलतियाँ अपनों की हजारों_
_माफ़ किया करता हूँ_
_फ़िलहाल मैं किसी को माफ़_
_करने के लायक नहीं_
_फ़िर भी बस जिंदगी के हजारों_ ख्वाब जिया करता हूँ_
_कुछ भी हो तुम्हें तो गलत हम_ _कह सकते नहीं_
_जिंदगी ये कहाँ ले जाएगी इसका_ _तो पता नहीं_
_अभी तो बस अपनी_ _आलोचनाओं को सहा करता हूँ_
_रूठे हुए लोगों की मुस्कान बना_ _करता हूँ_
_मैं नाराज होता ही नहीं तुमसे रूठ_ _कर जाऊँगा कहाँ_
_किसने मुझसे क्या कहा सबको हूँ_ _मैं बताता कहाँ
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