टेलीविज़न रेटिंग पॉइंट(TRP) क्या है? TRP पर सवालिया निशान


 




लोकतांत्रिक देशों में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के क्रियाकलापों पर नजर रखने के लिये मीडिया को ‘‘चौथे स्तंभ’’ के रूप में जाना जाता है। 18वीं शताब्दी के बाद से, खासकर अमेरिकी स्वतंत्रता आंदोलन और फ्राँसीसी क्रांति के समय से जनता तक पहुँचने और उसे जागरूक कर सक्षम बनाने में मीडिया ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मीडिया अगर सकारात्मक भूमिका अदा करें तो किसी भी व्यक्ति, संस्था, समूह और देश को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक रूप से समृद्ध बनाया जा सकता है।


क्या हो जब मीडिया टेलीविज़न रेटिंग पॉइंट (Television Rating Point-TRP) आधारित पत्रकारिता करने लगे और जनहित के मुद्दों को नज़रअंदाज करते हुए खबरों को सनसनीखेज़ बनाकर प्रस्तुत करे। हाल ही में मुंबई पुलिस ने यह खुलासा किया कि कुछ मीडिया चैनल्स TRP रैकेट का संचालन कर रहे थे। इस खुलासे ने निश्चित रूप से मीडिया की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगाया है।


टेलीविज़न रेटिंग पॉइंट से तात्पर्य


सामान्य शब्दों में TRP यह दर्शाती है कि किस सामाजिक-आर्थिक श्रेणी से कितने लोग किसी विशेष अवधि के दौरान कितने चैनलों या प्रोग्राम को देखते हैं। यह समयावधि एक घंटे, एक दिन या एक सप्ताह के लिये भी हो सकती है। भारत एक मिनट की समयावधि के अंतर्राष्ट्रीय मानक का पालन करता है। TRP से संबंधित डेटा आमतौर पर प्रत्येक सप्ताह सार्वजनिक किया जाता है।


TRP एक ऐसा उपकरण या टूल है, जिसके द्वारा यह पता लगाया जाता है कि टीवी पर कौन सा प्रोग्राम या चैनल सबसे ज्यादा देखा जा रहा है।


इसके द्वारा अनुमान लगाया जाता है कि एक न्यूज़ चैनल की या किसी प्रोग्राम या मनोरंजन चैनल की कितनी प्रसिद्धि है और इसे कितने लोग पसंद करते हैं, इससे लोगों की पसंद का पता चलता है।


TRP की गणना कैसे की जाती है?


ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (Broadcast Audience Research Council-BARC) ने पुर देश में 45,000 से अधिक घरों में बार-ओ-मीटर (BAR-O-meter) स्थापित किया है। इन घरों को न्यू कंज्यूमर क्लासिफिकेशन सिस्टम (New Consumer Classification System-NCCS) के तहत 12 श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।


टेलीविज़न पर किसी कार्यक्रम या चैनल को देखते समय घर के प्रत्येक सदस्य अपनी दर्शक आईडी के माध्यम से उपस्थिति दर्ज कराते हैं। घर के प्रत्येक व्यक्ति की एक अलग आईडी होती है। इस प्रकार BARC उस अवधि को रिकॉर्ड करता है जब चैनल देखा जा रहा है।


इसके लिये BARC सैंपल के तौर पर कुछ निर्धारित शहरों, कस्बों के घरों में TRP मापने वाले ‘पीपल्स मीटर’ लगाए जाते हैं। सैंपल के लिये निर्धारित घरों में इस डिवाइस को टेलीविज़न के साथ लगाया जाता है। इसकी सहायता से उस टेलीविज़न सेट पर क्या देखा जा रहा है और कितनी देर तक देखा जा रहा है, ये पता किया जाता है। इसके अलावा पिक्चर मैचिंग और ऑडियो वॉटरमार्क जैसी तकनीकी भी सैंपल एकत्र करने के लिये इस्तेमाल होती हैं।


वस्तुतः कुछ हजार घरों में लगने वाले इन उपकरणों से ही TRP तय होती है, जिसमें विशेष तौर पर दो तथ्यों का ध्यान रखा जाता है। पहला यह कि चैनल/प्रोग्राम कहाँ देखा जा रहा है और दूसरा कितने समय तक देखा जा रहा है। इसका तात्पर्य यह है कि यदि कोई चैनल कम टेलीविज़न सेटों पर ही ज्यादा समय तक देखा जा रहा है तो हो सकता है उसकी TRP ज्यादा टेलीविज़न सेटों पर देखे जाने वाले दूसरे चैनल से अधिक हो।


ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल


यह एक औद्योगिक निकाय है, जिसका स्वामित्व विज्ञापनदाताओं, विज्ञापन एजेंसियों और प्रसारण कंपनियों के पास है। जिसका प्रतिनिधित्व द इंडियन सोसाइटी ऑफ एडवरटाइज़र्स (The Indian Society of Advertisers), इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन और एडवरटाइजिंग एजेंसीज़ एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (the Indian Broadcasting Foundation and the Advertising Agencies Association of India) द्वारा किया जाता है।


यद्यपि इसे वर्ष 2010 में बनाया गया था, परंतु सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने 10 जनवरी 2014 को भारत में टेलीविजन रेटिंग एजेंसियों के लिये नीति दिशानिर्देशों को अधिसूचित किया और इन दिशानिर्देशों के तहत जुलाई 2015 में ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल को पंजीकृत किया गया।



TRP से चैनल की आय का संबंध


टेलीविज़न पर किसी चैनल के कार्यक्रम को देखते समय विज्ञापन प्रसारित किये जाते हैं, इन्हीं विज्ञापन के जरिये टेलीविज़न के चैनल्स की आय होती है। अधिकतर टीवी चैनलों की आय का ज़रिया विज्ञापन ही होते हैं।


विज्ञापनदाता अपनी कंपनी, उत्पाद और सर्विस का प्रमोशन करने के लिये टीवी चैनलों पर अपना विज्ञापन दिखाने के लिये करोड़ों रुपए देते हैं।


अब जिस टीवी चैनल की TRP सबसे ज्यादा होगी, उसे सबसे ज्यादा लोग देखते होंगे। इसलिये विज्ञापनदाता सबसे ज्यादा TRP वाले चैनलों पर विज्ञापन देना पसंद करते हैं।


इससे विज्ञापनदाता कंपनियों के विज्ञापन अधिक लोगों तक पहुँचते हैं और उन्हें ज्यादा लाभ प्राप्त होता है। चैनल की TRP जितनी अधिक होगी वह विज्ञापन दाताओं से विज्ञापन दिखाने के लिये उतना ही अधिक पैसे लेता है।


मीडिया की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह


मीडिया पर लोगों का काफी विश्वास है, अगर मीडिया में कोई न्यूज़ चलती है तो लोग उस पर विश्वास करने लगते हैं। लेकिन बदलते परिदृश्य में मीडिया की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह उठे हैं। कई बार मीडिया के संपादक या मीडिया के संचालक कुछ रुपयों की वजह से उस सूचना का या न्यूज़ का प्रसार करते हैं, जिससे उद्योगपतियों का लाभ हो। आज संपादकों का एक उद्देश्य पैसा कमाना भी है। मीडिया लाभ के बाज़ार के रूप में तब्दील हो गया है। संपादकों की नैतिकता और उनके आचरण पर सवालिया निशान लग गए हैं।


 


मीडिया के कवरेज में काफी बदलाव आया है। कई बार ऐसा लगता है कि मीडिया व्यक्ति-केंद्रित हो चुका है। कुछ नाटकीयता और अतिरंजना के साथ कार्यक्रम परोसकर दर्शकों को लुभाने की कोशिश की जा रही है। ऐसा लगता है कि मीडिया अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी से भाग रहा है। सामाजिक खबरें कम दिखाई देती हैं। वहीं अखबारों में विज्ञापन ज्यादा और खबरें कम दिखाई देती हैं। मीडिया की पहुँच का विस्तार हुआ है, पर यही बात कवरेज के बारे में नहीं कही जा सकती। वह गाँवों के लोगों की समस्याओं से अछूता नज़र आता है।


 


निष्कर्ष


 


वर्तमान में डिजिटल मीडिया के संदर्भ में किसी भी प्रकार के विनियमन का अभाव विद्वेषपूर्ण और भ्रामक सूचनाओं की समस्या को जन्म दे रहा है। विभिन्न न्यूज़ चैनल्स विज्ञापन प्राप्त करना ही अपना एकमात्र लक्ष्य समझने लगे हैं। सरकार को चैनलों की रेटिंग प्रक्रिया को मानकीकृत करने की आवश्यकता है ताकि चैनल्स अवैध साधनों का प्रयोग कर टेलीविज़न रेटिंग्स को प्रभावित न कर सकें।


(दृष्टि आईएएस)


 


-निखिलेश मिश्रा


टिप्पणियाँ