"सरकार बताए क्या नाम दूँ"
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
आज फ़िर एक लम्बे अंतराल के बाद तेज़ गुस्से वाली पीढ़ा के साथ ये लेख लिख रहा हूँ ...
मैं आज एक ही लेख में कई बातों व मुद्दों को आप सबके सामने रखूँगा, सबसे पहले तो कोरोना पर लिखूँगा जो इस प्रकार है
"कोरोना फ़ैलता ही नहीं"
अगर ये दो गलतियाँ न हुई होती
मैंने सबसे पहले कोरोना की खबर मध्यप्रदेश के अखबारों में पढ़ी थी नवम्बर 2019 में वहाँ सरकार ने चेताया भी था अगर वहाँ पर राजनीतिक पेंच वाज़ी न चल रही होती तो ये कोरोना इतने पाँव भारत में फ़ैला ही नहीं सकता था, लेकिन ये राजनेताओं को अपनी कुर्सी की पड़ी थी तब बिल्कुल ध्यान ही नहीं केन्द्रित किया केन्द्र सरकार ने...
खैर वो छोड़ो फ़िर भी जब कोरोना कुछ ही हद तक था लेकिन ट्रंप के साथ बातचीत करने के लिए लाखों की भीड़ को देश-विदेश भर से एकत्रित किया गया जिससे संक्रमण ने और तेज़ी पकड़ ली इसके बाद सब ठीकरा जनता पर रखपर उसी के रोजगार पर छुरियाँ चला दी गयीं
अब मैं देश के प्रधानमंत्री से सवाल करता हूँ कि क्या आप अमेरिकी राष्ट्रपति से अकेले मीटिंग नहीं कर सकते थे लेकिन कोरोना फ़ैलाने की वजह जमात वालों पर रखा गया अब ये बताओ की जमात के लिए अनुमति तो सरकार ने ही दी होगी
( कोई ये न सोचे की मैं पक्ष पात कर रहा हूँ सच को सच लिख रहा हूँ बस यहाँ कोई जाति धर्म की बात नहीं कह रहा हूँ )
"एक और सवाल आर्थिक स्थिति कैसे बिगड़ गई बिगड़ ही नहीं सकती"
मेरा इरादा किसी को अपमानित करने का नहीं है सिर्फ़ सच्चाई जानने का है जो भी हिम्मत रखता हो मुझे बताए...
मैं कोई भी राजनीतिक दल से ताल्लुक़ नहीं रखता हूँ पिछली सरकारों ने भी बहुत बड़ी-बड़ी बीमारियों का सामना किया है टीबी, हैज़ा, पोलियो, एड्स और भी लेकिन सरकार ने लाकडाउन कभी नहीं किया जबकि एड्स, टीबी तो बिल्कुल लाकडाउन के हक़दार थे ही फ़िर बहुत ही आसानी काबू पा लिया गया और इसमें भारत बंद बावत भी कमी बीमारी में कमी हुई ही नहीं जिन्हें मरना था उन्हें मौत ने आगोश में ले ही लिया वायरस अभी भी खतम नहीं हुआ है क्या फ़ायदा हुआ बन्दी का बदले में नुकसान ही हुआ,
पिछले समय में सन 1962, 65, 71 में युद्ध भी लड़े गएलेकिन आर्थिक स्थिति इतनी खराब नहीं हुई न किसी का रोजगार छीना गया जो वेतन लागू होने वो लागू किए गए, मैं मानता हूँ उन सरकारों ने देश को लूटा है वर्तमान सरकार कहती है की वो देश को लूटते रहे हैं, खूब घोटाला भी हुए फ़िर भी देश आगे बढ़ता रहा है पीछे नहीं गया और अब आप तो कहते थे " देश नहीं झुकने दूँगा, देश नहीं बिकने दूँगा "
और आपने देश को झुका भी दिया आर्थिक स्थिति में और बेंच भी दिया बहुत कुछ अब आप पर भरोसा कैसे और क्या देख कर करूँ मैंने आपके पोर्टल पर एक पत्र भेजा उसका आजतक जवाब नहीं क्या जनता की सुनते हो...
"जनता ने आपको रूपये दिए देश के लिए वो कहाँ गए"
पीएम केयर फ़न्ड में अनगिनत रुपये का चंदा पहुँचा अगर आप देश के लिए कार्यरत हैं तो ₹ कहाँ किसके पेट में चले गए
कोर्ट ने आदेश दिया उस फ़न्ड पर आरटीआई नहीं जाँच करेगा मान लिया लेकिन ये बताओ
इसका मतलब ये हुआ की ऐसे संकट के समय में हमारे देश के प्रधानमंत्री के नाम पर जनता को ठगा गया है फ़िर तो जब दान करने को कहा गया तब यही कहा गया था कि इस महामारी से लड़ने के लिए सब सहयोग करें
फ़िर जब ये महामारी के लिए लिए गए थे ₹ तो अब पार्टी के कैसे हो गए अगर पार्टी के ही हुए तो ये पार्टी के लिए चंदा सारी जनता से महामारी के नाम पर क्यों लिए गए, इस सवाल का जवाब मैं कोर्ट से भी माँगता हूँ
क्योंकि मैं जानता हूँ जब सरकार बहुमत में होती है तो न्यायालय घुटनों पर आ जाता है वो वही करता है जो सरकार कहती है मेरे पास पिछले दशकों के बहुत ही प्रमाण हैं इस प्रकार के, "इंदिरा गांधी ने कैसे क्या किया था"
मेरा ख्याल यही है वो फ़न्ड के जरिए जनता को ठगा गया है
आर्थिक स्थिति कुछ नहीं बिगड़ी है अपने पेट भरे गए हैं नहीं तो आप दान भर का ₹ अगर निकाल दें तो आर्थिक स्थिति लाइन पर आ जाए
"क्यों कर रहे हो किसानों के साथ अन्याय"
पराली पराली पराली पिछले साल कोर्ट ने आदेश दिया था किसानों को परेशान न किया जाए उन पर जुर्माना न लगाया जाए फ़िर इस साल फ़िर वही मुद्दा उठा लिया गया है आख़िर क्यों...
सदियों से किसान पराली जलाते आए हैं अब रोक क्यों
अभी सभी किसान भाई तिलहन की खेती में कीड़ों से परेशान थे किसी ने नहीं सुना सारी फ़सल काट दी दुबारा बुआई करनी पड़ी उसमें भी नुकसान हो रहा है मैं स्वंम लखनऊ सेंटर कीड़ा भेजा कोई जवाब नहीं मिला
पराली जलाने किसान को लाभ होता है न कि नुकसान कीट,पतंगे हानिकारक तथ्य खतम हो जाते हैं अब वो भी करने से रोका जा रहा है,दवाओं का स्प्रे करने से भी रोका जा रहा है किसान करे क्या
जबकि ये प्रदूषण की सच्चाई ये है ....
ये प्रदूषण तो अमीरों की दीवाली से छाया है l
इल्ज़ाल किसानों की पराली पर आया है ll
सरकार किसानों के खिलाफ जो लागू करे वो हाल लागू हो जाता है
अभी केन्द्र ने 50₹ बढाकर गेंहूँ का मूल्य 1925₹ से 1975₹ किया किसान के गेहूँ 1400-1500₹ में लिया जा रहा है अब ये क्या है
खाद का रेट बढते ही लागू हो जाते हैं
पेट्रोल का रेट बढते ही लागू हो जाते हैं
किराया बढते ही लागू हो जाते हैं
किसान के अनाज़ का रेट घटते ही लागू हो जाते हैं
लेकिन किसानों का तो जो रेट तय है फ़सल का वही नहीं मिल पा रहा है ये सब क्या है
इसे क्या नाम दूँ l
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