औरंगाबाद का नाम बदलने पर विवाद बढ़ा, शिवसेना और कांग्रेस आमने-सामने
- औरंगाबाद शहर के नाम बदलने को लेकर महाराष्ट्र में सियासी टकराव अपने चरम पर है। एक ओर जहां शिवसेना औरंगाबाद का नाम संभाजी नगर किए जाने पर अड़ी है तो वहीं कांग्रेस लगातार इसका विरोध कर रही है। यह मुद्दा लगातार महाराष्ट्र में सुर्खियों में बना हुआ है। कांग्रेस के साथ-साथ गठबंधन में शामिल एनसीपी भी शिवसेना के इस प्रस्ताव का लगातार विरोध कर रही है। हालांकि एनसीपी का लहजा इतना कड़वा नहीं है। लेकिन कांग्रेस लगातार औरंगाबाद शहर का नाम बदलने को लेकर कड़े शब्दों में आपत्ति जता रही हैं। हालांकि यह मुद्दा महाराष्ट्र में नया नहीं है। 1995 में भी शिवसेना की ओर से यह कोशिश की गई थी जब मनोहर जोशी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे। तब यह मामला कोर्ट तक गया था। बाद में 1999 में जब कांग्रेस-एनसीपी की सरकार बनी तो इस अधिसूचना को ही वापस ले लिया गया। लेकिन इस बार यह मुद्दा बड़ा बनता जा रहा है क्योंकि शिवसेना पीछे हटने को तैयार नहीं है।
- 1995 में भी कांग्रेस औरंगाबाद का नाम बदलने को लेकर किसी भी सूरत पर तैयार नहीं थी। कांग्रेस के पार्षद मुस्ताक अहमद ने कोर्ट में चुनौती दी थी। इस बार भी कांग्रेस में अपना वही रवैया अपनाया हुआ है। कांग्रेस सार्वजनिक तौर पर यह कहते हुए नजर आ रही है कि महाराष्ट्र में गठबंधन शासन के लिए जिस महा विकास आघाडी में न्यूनतम साझा कार्यक्रम तय किया गया था उसमें शहरों के नाम में कोई बदलाव करने का था ही नहीं। यह मामला इतना गंभीर है कि कांग्रेस खुले तौर पर इसका विरोध कर रही है तो शिवसेना अपनी जिद पर अड़ी हुई है। शिवसेना ने तो अब औरंगाबाद एयरपोर्ट का नाम संभाजीनगर पर रखने को लेकर केंद्र सरकार को भी पत्र लिख दिया है। आपको बता दें कि महाराष्ट्र में कांग्रेस एनसीपी और शिवसेना गठबंधन की सरकार में है।
- अब तक कांग्रेस शिवसेना से बिल्कुल विपरीत रहती थी इसलिए वह लगातार विरोध करते थी। लेकिन इतिहास में यह पहली बार हुआ है जब शिवसेना और कांग्रेस एक साथ गठबंधन की सरकार में महाराष्ट्र में है। फिर भी कांग्रेस अपने पुराने रुख पर कायम है तो ही शिवसेना भी हर हाल में औरंगाबाद शहर का नाम संभाजीनगर करना चाहती है। शिवसेना के लिए अपने इस फैसले से पीछे हटना और भी मुश्किल हो सकता है। वहीं कांग्रेस किसी भी कीमत पर औरंगाबाद शहर के नाम का बदलाव नहीं चाहती है। अगर शिवसेना अपने इस प्रस्ताव पर पीछे हटती है तो कहीं ना कहीं उसे राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है क्योंकि संभाजी महाराष्ट्र में मराठा अस्मिता के प्रतीक है। औरंगाबाद को शिवसेना का गढ़ माना जाता है। 1989 से लेकर 2014 तक उसके ही सांसद थे। 1998 में उसे वहां चुनाव हारना पड़ा था। 1999 से 2014 तक औरंगाबाद से सांसद शिवसेना के ही थे और औरंगाबाद की सीट शिवसेना के लिए सुरक्षित माने जाती थी।
- 2019 के चुनाव में औरंगाबाद में अजीबोगरीब स्थिति देखने को मिली जब एक मुस्लिम उम्मीदवार यहां से जीता और वह भी ओवैसी की पार्टी के टिकट पर। ऐसे में अब हर हाल में शिवसेना औरंगाबाद में अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहती है ताकि 2024 के चुनाव में उसे यहां की सीट मिल सके। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इस से गठबंधन पर असर पड़ेगा? इसमें कांग्रेस नेता ने कहा कि यह मामला कितना लंबा चलेगा इस बारे में तो बताना मुश्किल है। लेकिन इतना तो तय है कि ऐसे ही मामले से गठबंधन टूट सकती हैं। उधर, भाजपा लगातार शिवसेना पर औरंगाबाद का नाम संभाजीनगर करने को लेकर दबाव बना रही है। अगर महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन में दरार पैदा होती है तो यह भाजपा के लिए फायदेमंद रहेगा।
Sources:Agency news
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