पलट सकता है गैरसैंण मंडल का फैसला
हाल ही में भराड़ीसैंण विधानसभा बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की ओर से गैरसैंण को मंडल बनाने की जो घोषणा हुई थी, तीरथ सिंह रावत की सरकार उसे पलट सकती है। इसके पीछे मुख्य वजह कुमाऊं मंडल में नेता और जनता में पनपा असंतोष है। बुधवार को दो सांसद और एक विधायक एवं पार्टी के वरिष्ठ नेता ने इसके संकेत दिए।भराड़ीसैंण में विधानसभा बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण को मंडल बनाने की घोषणा की थी। उन्होंने इसमें कुमाऊं मंडल से अल्मोड़ा, बागेश्वर और गढ़वाल मंडल से चमोली व रुद्रप्रयाग को शामिल करने को कहा था। उनकी इस चौंकाने वाली घोषणा से खासकर कुमाऊं मंडल में भारी असंतोष पैदा हो गया। इसी असंतोष के बीच त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी चली गई।अब नई सरकार में गैरसैंण मंडल की घोषणा वापस लेने की प्रबल संभावनाएं बन गई हैं। पूर्व कैबिनेट मंत्री, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और डीडीहाट के विधायक बिशन सिंह चुफाल ने अमर उजाला से बातचीत में इस बात के संकेत दिए। उन्होंने कहा कि गैरसैंण मंडल पर सरकार पुनर्विचार कर सकती है। वहीं, नैनीताल सांसद अजय भट्ट ने भी कहा कि सरकार गैरसैंण मंडल के फैसले पर पुनर्विचार कर सकती है। क्योंकि अभी यह सिर्फ घोषणा थी, इसकी अधिसूचना जारी नहीं हुई है। वहीं, अल्मोड़ा के सांसद अजय टम्टा ने कहा कि सरकार इस फैसले पर फिर से विचार कर सकती है।
अस्सी के दशक में 20 साल की उम्र में बन गए थे संघ के प्रचारक
संघ में प्रचारक से मुख्यमंत्री बने तीरथ सिंह रावत को धैर्य का इनाम मिला है। 80 के दशक में राष्ट्र भावना से संघ की शाखाओं में गए और 20 साल की उम्र में ही प्रचारक बन गए। राजनीति सफर में चुनौतियों ने कई बार उनके धैर्य की परीक्षा ली। लेकिन उन्होंने कभी धैर्य को नहीं खोया। यही वजह है कि आखिरकार भाजपा हाईकमान ने कई दिग्गज नेताओं को छोड़ कर उन्हें मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी दी है।
राष्ट्र भावना से प्रेरित होकर तीरथ सिंह ने 80 के दशक में संघ की शाखाओं में जाना शुरू किया। उनकी कर्तव्य निष्ठा को देखते हुए संघ ने विस्तारक व प्रचारक की जिम्मेदारी थी। आठ साल तक प्रचारक की भूमिका निभाने तक उन्हें भाजपा के बारे में जानकारी दी। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल विहारी वाजपेयी के श्रीनगर गढ़वाल दौरे आने के बाद इसका पता लगा की भाजपा भी अपना परिवार है।
छात्र राजनीति से तीरथ ने अपना राजनीति सफर शुरू किया। वर्ष 1997 में पहली बार विधायक बने। राज्य गठन के बाद 2000 में प्रदेश के पहले शिक्षा मंत्री बने। 2007 में भाजपा प्रदेश महामंत्री की जिम्मेदारी संभाली। 2012 में पौड़ी जिले के चौबट्टाखाल विधानसभा सीट से चुनाव जीता और दूसरी बार विधायक बने।
सीटिंग विधायक होने के बावजूद भी 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। पार्टी के प्रति नाराजगी तो रही। लेकिन धैर्य नहीं खोया। पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय सचिव के साथ ही हिमाचल प्रदेश का प्रभारी बना कर बड़ी जिम्मेदारी सौंपी। बतौर प्रभारी हिमाचल में चार लोक सभा सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की। उनके धैर्य को देखते हुए पार्टी हाईकमान ने मुख्यमंत्री बना कर इनाम दिया है।
राजनीति गुरु बीसी खंडूड़ी के बेटे के खिलाफ लड़ा लोक सभा चुनाव
वर्ष 2019 के लोक सभा में भाजपा ने तीरथ सिंह रावत को पौड़ी सीट से टिकट दिया। उनके सामने पूर्व मुख्यमंत्री मेजर जनरल(सेवानिवृत्त) भुवन चंद्र खंडूड़ी के बेटे कांग्रेस प्रत्याशी मनीष खंडूड़ी के खिलाफ चुनाव लड़ने की चुनौती थी। तीरथ को बीसी खंडूड़ी का हनुमान माना जाता है। इस चुनाव में भी तीरथ ने मनीष को तीन लाख से अधिक वोट से पराजित किया।
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