बंगाल चुनाव-‘‘मीम’’ की गणित में भाजपा हुई फेल
सलीम रज़ा
बंगाल चुनाव-‘‘मीम’’ की गणित में भाजपा हुई फेल
सलीम रज़ा
चार राज्यों और एक केन्द्रशासित प्रदेश का चुनाव परिणाम घोषित हो चुका हैं भले ही दो राज्यों में भाजपा सरकार बनाने में सफल हो गई लेकिन पश्चिम बंगाल विधान सभा का चुनाव भाजपा के लिए डू एण्ड डाई बाला ही कहा जा सकता था जहां पर भाजपा ने चुनावी ताकत झोंकने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। बंगाल का मंजर देखकर मुझे वो बात याद आ जाती है के जब एक अकेली महिला को देखकर कैसे दबंग उसके घर जमीन पर जबरन कब्जा करने के लिए हर हद पार कर जाते है,ं ऐसा ही भाजपा ने पश्चिम बंगाल में ममता के साथ किया था। खैर ये बात तो सबने देख ही ली लिहाजा भाजपा का असली चेहरा सबके सामने आ ही गया कि उन्हें सत्ता हासिल करने की कितनी लालसा है कि पूरे देश को आग में झोंककर पूरी सरकार चुनाव में मस्त रहीे, आज वायुमण्डल में लाशों का धुआं आसमान में ज्यादा और आक्सीजन कम हो गई ये बेशर्म सियासत का नमूना ही है। उफ मैं भी इतना दूर चला गया खैर चलिए सीधे मुद्दे पर आते हैं। तो जी मैं कह रहा था कि ‘मीम’ की गणित मे भाजपा उलझ गई और चारो खाने चित हो गई ।
आप सोच रहे होंगे कि ‘मीम’ तो भाजपा के धुर विरोधी हैं तो शायद आप गलत सोच रहे हैं ये ‘मीम’ का खेल बंगाल में देखने को मिला ‘मीम’ का मतलब सिर्फ मुसलमान से ही मत निकालिए इसका मतलब है मतुआ समुदाय,महिला, मुस्लिम और ममता ये थे ‘मीम’ फैक्टर जिसके जाल में भाजपा ढ़ेर हो गई। अगर हम मत प्रतिशत की बात करें तो भाजपा का मत प्रतिशत पिछले चुनाव को देखते हुये घटा है, तो वहीं टी.एम.सी का मत प्रतिशत बढ़ा है । भारतीय जनता पार्टी के लिए पश्चिम बंगाल का चुनाव अस्मिता का सवाल था क्योंकि ये चुनाव भाजपा बनाम टी.एम.सी नहीं था वल्कि ये चुनाव मोदी बनाम ममता बनर्जी था । मैं पिछले आलेख में भी पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव को लेकर लिख चुका था कि अगर पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी चुनाव हारती है तो भाजपा के पतन की स्क्रििप्ट समझिये ब्रगाल की धरती से लिखना शुरू हो जायेगी । शायद 2022 में आने वाले राज्यों के विधान सभा चुनाव और 2024 में लोकसभा चुनाव में भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। भाजपा को पोलोराईजेशन और हिन्दू कन्सालिडेशन की सियासत ही भाजपा को सत्ता से बाहर करेगी ये लगभग तय है। धर्म की राजनीति अब देश की बहुसंख्यक आबादी को फ्रस्टेड कर चुकी है वो भी अब भाजपा के इस कार्ड को समझ चुकी है जिसमें पाने को नया कुछ नहीं खोने को ज्यादा है । आवाम मौजूदा कोरोना काल में सरकार की असंवेदनशीलता को देख ही रहा है जहां अपनी और अपनों की संासें वापिस लाने के लिए भी गिड़गिड़ाना पड़ रहा है।
पिछले सात सालों से विश्व गुरू बनने का सपना दिखाने वाले ने ही खुद लाशों के ढ़ेर लगवा दिये क्या ये सिर्फ मुस्लिम के लिए था ? नहीं अगर आप दर्द का आंकलन करें तो क्या मोदी सरकार ने अपने बहुसंख्यक को काल ग्रास में जाने से रोक लिया जी नहीं ये तो सिर्फ सत्ता की पराकाष्ठाा पर पहुंचकर हिटलर शाह बनने का सपना मात्र है, इन्होंने सियासत के मायने ही बदल दिये आवाम को मंदिर-मस्जिद हिन्दू-मुस्लिम के मकड़जाल में उलझााकर उनकों उनकी हालत पर छोड़ दिया फिर ऐसी सरकार और ऐसे मसीहा का क्या करना। खैर लिखने को तो बहुत कुछ था लेकिन बात बंगाल की है तो बंगाल की ही धरती पर रखी जाये तो ठीक रहेगा। पश्चिम बंगाल में खुद चुनाव हारकर ममता बनर्जी ने बंगाल चुनाव में अपनी पार्टी को उम्मीद से ज्यादा सीट दिलाकर अपनी हार का दर्द भुला दिया । भले ही भाजपा के लोग ये कहते हुये नजर आये कि दीदी तो हार गई या भाजपा ने 3 सीट से 76 सीट तक पहुंचकर बहुत बड़ा काम किया तो ये बात ठीक है कि भाजपा बंगाल में मुख्य विपक्षी दल बनकर उभरी जरूर है लेकिन दीदी भी एक बड़े राजनेता के रूप में बनकर उभरी है भले ही वो चुनाव हार गईं, लेकिन उन्हें मुख्यमंत्री का ताज पहनने से कोई नहीं रोक सकताहै। दरअसल भाजपा के ही चुनावी हथियार भाजपा को जख्म दे गये। आप देखे पूरे भारी भरकम अमले के साथ जिसमें देश के प्रधानमंत्री,गृह मंत्री,रक्षा मंत्री और भाजपा शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री के साथ बड़े और अग्रिम पंक्ति के भाजपा नेताओं की फौज के बाद भी शिक्स्त मिलने पर भाजपा को अपने गिरते ग्राफ और घटती लोकप्रियता पर मंथन करना होगा। भाजपा की शिकस्त में कुछ अहम मुद्दे भी रहे जो उनके लिए ही घातक बन गये। आईये जरा तलाशते हैं कि वो कौन सी खामियां रहीं जिसने भाजपा को बंगाल के सिंहासन सुख से वंचित कर दिया। दरअसल बंगाल चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की ध्रुवीकरण की सियासत औंधे मुंह गिर गई, आपने देखा होगा कि बंगाल मे धर्म की सियासत जय श्री राम उदघोष से शुरू हुई हालांकि ये मुद्दा ब्रगाल में विवादित हो गया था जिसे भाजपा ने इसे ममता बनर्जी के खिलाफ चुनावी हथियार बनाया ममता बनर्जी ने भी उलटवार करते हुये सार्वजनिक मंच पर चण्डी पाठ करके हरे कृष्ण हरे हरे का नारा बुलन्द किया हो सकता था कि भाजपा को उम्मीद थी कि हिन्दू वोटरों को रिझाने के लिए चला गया उनका ऐ दांव उनके लिए हितकर रहेगा लेकिन चुनाव नतीजों ने बता दिया कि धर्म के नाम पर सियासत करने का उनका फंडा चलने वाला नहीं है। हालांकि सियासी जानकारों का कहना था कि बंगाल में सिर्फ सांप्रदायिक धुंवीकरण के माहौल को बनाया गया था लेकिन ग्राउन्ड लेबल पर राजनीतिक धु्रवीकरण देखने को मिला, क्योकि भाजपा शुरू से ही टी.एम.सी पर अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का इल्जाम लगाती रही थी।
दूसरा सबसे बड़ा कारण जो भाजपा की पराजय का कारण बना वो था भाजपा के पास कोई कद्दावर नेता का न होना जिसे मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में भाजपा ममता के सामने उतार पाती , हालांकि मुख्यमंत्री के नाम को लेकर बंगाल से लेकर दिल्ली तक भाजपा ने मंथन किया गया जिसमें दिलीप घोष का नाम सबसे आगे था लेकिन भाजपा में अन्दरखाने की रार से भाजपा बैकफुट पर रही अन्ततः मोदी के चेहरे को सामने रखकर चुनाव लड़ा जो पीएम बनाम सीएम हो गया जो भाजपा पर भारी पड़ गया। तीसरा एक और अहम कारण था कि भाजपा ने बंगाल चुनाव में अपनों की नाराजगी लेकर खतरा पैदा कर लिया हुआ ये कि भाजपा ने अधिकतर उन लोगों को टिकट दिया जो पार्टी छोड़कर भाजपा में आये थे जो भाजपा के कुनबे में रार की वजह बना और भाजपा ने अपने खेमें में ही असंतुषटों की फौज खड़ी कर ली जो उसकी पराजय का कारण रही। एक अहम कारण और था वो था भारतीय जनता पार्टी का महिलाओं के वोट मत पर ज्यादा आशन्वित होना। प्रधानमंत्री मोदी खुद भी महिला वोटर्स को साइलेंन्ट वोटर्स बताते रहे हैं लिहाजा उन्हें और भाजपा के खेमे को महिला वोटों को अपने पक्ष में जाने का पूरा यकीन था, क्योंकि भाजपा ने बिहार में इस टैरो कार्ड पर फतेह हासिल की थी, लेकिन बंगाल में मोदी द्वारा ममता के लिए इस्तेमाल किये गये फूहड़ भाषा ‘दीदी ओ दीदी’और नंदीग्राम मे हुये ममता के साथ हादसे ने महिलाओं के माइंन्ड को डायवर्ट कर दिया नतीजा ये हुआ कि महिलाओं का वोट सहानुभूति के तौर पर दीदी के पक्ष में चला गया जिसका खामियाजा भाजपा को हार का मुह देखकर चुकाना पड़ा।
बहरहाल ममता का कद मोदी के समानांन्तर हुआ है इसमें कोई शक नहीं है भले ही भाजपा ने 3 से 76 तक पहुचने में कामयाबी हासिल करी हो लेकिन भाजपा को याद रखना चाहिए कि सुबह का भूला शाम को अपने घर लौटता है अगर ऐसा होता है तो भाजपा ब्रगाल में फिर खाली हाथ ही रहेगी। भले ही मोदी जी ने गुरू रविन्द्र नाथ टैगोर का गेट अप बनाने की कोशिश करी हो लेकिन उन्हें और भाजपा को ये नहीं भूलना चाहिए कि जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की घरती पर ही उन्हे वहां कि जनता ने बाहर का रास्ता दिखाकर ये बता दिया कि उन्हें अपने चोले से बाहर निकलकर कुछ नया करना होगा, वहीं कोरोना काल में चुनाव कराना ं भी देश की जनता को रास नहीं आया जहां लाशों के अम्बार लग रहे हो और सरकार के नेता चुनाव कराने में व्यस्त हों जिसका खामियाजा भाजपा को आने वाले चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। आज चुनाव आयोग ममता की जीत के बाद मनाये जा रहे जश्न पर सख्त है और कोरोना प्रोटोकाल की बात कर रहा है लेकिन कोरोना काल में सरकार के आगे नतमस्तक होकर चुनाव के लिए तैयार भी हो रहा है वो भी कई चरणों में जिसे देखकर अब तो साफ है कि भाजपा के चुनाव में सभी बड़ी एजेन्सियां उसकी समर्थित रहती है। अगर हाल ऐसा ही रहा तो इसे देखकर ये ही कहा जा सकता है कि सच में लोकतंत्र खतरे में है, फिलहाल ऐसा ही रहा और देश का मतदाता समय रहते नहीं जागा तो वो दिन दूर नहीं कि जब उसेे अपनी मर्जी से भी सांस लेने की इजाजत नहीं होगी
Sources:SaleemRaza
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