विश्व पर्यावरण दिवस: प्राकृतिक संसाधनों का दोहन मनुष्य की जीविका को करता है प्रभावित
सलीम रज़ा /
सर्वप्रथम सभी को विश्व पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं। यूं तो हर साल पर्यावरण दिवस मनाया जाता है इस दिन हर कोई सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर सक्रिय रहकर पर्यावरण संरक्षण की बात करता हुआ नज़र आता है। बहुत से वे लोग भी इस दिवस पर अपनी सक्रियता बढ़ाते हैं जो अपने घर की फुलवारी या फिर घर की बालकनी में सजाये गये गमले मे लगे पौधों को पानी भी नहीं देते, खैर ये वो बाते हैं जिसे हम खुली आंखों से देखते चले आ रहे हैं लेकिन हम इसके प्रति कितने संवेदनशील हैं ये समय बता रहा है। आज समूचा विश्व वैश्विक महामारी कोरोना से जूझ रहा है,,आक्सीजन की कमी से न जाने कितने लोगों की जानें चली गईं तब जाकर हमें प्रकृति के इस उपहार की कमी महसूस हुई जिसका हम बेदर्दी के साथ दोहन करते चले आ रहे हैं। अगर मैं ये कहूं कि कोरोना ने हमें प्रकृति और वन संरक्षण की महत्ता को बताया तो शायद गलत न होगा। विश्व पर्यावरण दिवस हर साल 5 जून को मनाया जाता है इसका उद्देश्य पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक बनाना है।आज के दिन लोगों को पेड़ों को संरक्षित करने पेड़ पौधे लगाने और नदियों को साफ करने का आहवान किया जाता है।
इस दिवस की शुरूवात 5 जून 1972 को संयुक्त राष्ट्र महासंघ द्वारा की गई थी। इस साल यानि 2021 पर्यावरण दिवस की थीम है (इकोसिस्टम रीस्टोरेशन) यानी ‘पारिस्थितिक तंत्र पुर्नबहाली’ और इस साल इस दिवस का मेजबान है पड़ोसी देश पाकिस्तान। दरअसल इसको पारिस्थितिक तंत्र बहाली भी कह सकते हैं सीधे अर्थों में पृथ्वी को एक बार फिर अच्छी अवस्था में लाना है। अब आप जरा सोचिये क्या हम इस थीम के सही मायने को समझ रहे हैं इसकी वास्तिवकता या फिर इसमें क्या शमिल है और स्थानीय स्तर पर हम कितने जागरूक होकर इसकी गम्भीरता को समझ रहे है। पारिस्थितिक तंत्र पुर्नबहाली का अर्थ क्षतिग्रस्त और बरबाद हो गये तंत्र को उसी स्वरूप में रीकवर करने में अपना सहयोग देना है। इसको बहाल करने के लिए हमें इसके संरक्षण के लिए गम्भीर होना पड़ेगा पेड़े पौधे लगाने होंगे। इस पारिस्थितिक तंत्र को अनुकूलित और पुर्नस्थापित करने के लिए शहरी और ग्रामीण परिदृश्य मे अलग-अलग तरीके से काम करने होंगे। पर्यावरण को सही और सरल तरीके से जानने के लिए जो जरूरी है स्वच्छता,जलवायु,प्रदूषण और वृक्ष इन सभी को मिलाकर ही पर्यावरण बनता है। हमारेे दैनिक जीवन में इसका सीधा-सीधा संबंध रखने के साथ उसे प्रभावित करता है। हम आप सब जानते हैं कि इंसान और पर्यावरण एक दूसरे पर निर्भर होते हैं। पर्यावरण जैसे जलवायु प्रदूषण और वृक्षों का कम होना मानव जीवन पर सीधा असर डालता है। मानव ही पर्यावरण के अच्छे और बुरे का भागीदार है, अगर अच्छाई करता है तो वो पर्यावरण को संतुलित करने के लिए वृक्षों की देखभाल और उनको पोषित करना,जलवायु प्रदूषण रोकना,अपने आसपास स्वच्छता रखना भी पर्यावरण को प्रभावित करने का काम करता है। वहीं मानव के बुरे काय्र जैसे जल दूषित करना ,आत्याधिक बरबाद करना,वृक्षों का लगातार कटान आदि ऐसी बाते हैं जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है,ं नतीजा ये निकलता है कि मानव को बाद में बहुत सारी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है जिसे वह खुद भुगतता है।
पर्यावरण के आग्रेनिक कम्पोनेन्ट में माइक्रोव से लेकर कीड़े मकोडे सभी जीव जन्तु और पेड़-पौधों के अलावा उनसे जुड़ी सभी जैव क्रियाऐं और प्रक्रियायें भी समाहित हैं जबकि पर्यावरण के अवायटिक कम्पोनेन्ट में निर्जीव तत्व और उनसे जुड़ी प्रक्रियायें आती हैं जिसमे नदी,चट्टाने,हवा और पहाड़ और जलवायु के तत्व वगैराह-वगैराह ये सभी हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले हैं जो हमारे इर्द-गिर्द व्याप्त हैं। लिहाजा इंसान द्वारा की जाने वाली सारी क्रियायें पर्यावरण को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मुतास्सिर करती है। प्राकृतिक संसाधनो का दोहन मनुष्य के जीवन के लिए बहुत बड़ा नुकसान है इसके दोहन का असर सीधे-सीधे मानव जीवन को प्रभावित करता है उसकी जीविका को प्रभावित करता है। इसको संरक्षित करने के लिए हमे गरीबी,भुखमरी,बेकारी,बीमारी,विषमता और शोषण से निजात पाने के लिए अपने देश को हर भरा बनाना होगा। वनों के आस पास के क्षेत्रों में रह रहे लोगों को निराशाओं और नेगिटीविटी से निकालकर आगे बढ़ने का अवसर देना होगा। जाहिर सी बात है कि जैविक सम्पदा हर देश की अनमोल और बेशकीमती धरोहर होती है फिलहाल हमारे देश की गणना विश्व के संपन्न देशों में की जाती है फिर भी लिंचिंग प्लानेट रिपोर्टस 2020 के मुताबिक तकरीबन 46 सालों के अन्तराल में 60 फीसद पशु-पक्षी,जलचर व सांप एवं मछलियों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है। दुःख है कि जानवरों और पौधों की अनेक प्रजातियां लगभग विलुप्त के कगार पर हैं। हम इसके संवर्द्धन और संरक्षण के जरिये अपनी इस बेशकीमती धरोहर को बचा सकते हैं लिहाजा प्रकृति का सुतुलन बनाये रखने के लिए ये नितान्त आवश्यक है। हम कोरोना जैसी महामारी से जूझ रहे हैं ये जल्द हमारे देश से चला जाये और फिर कोई महामारी अपनी जद मे न ले इसके लिए हमे हरित मानसिकता अपनानी होगी इसके लिए संवर्द्धन और संरक्षण का प्रयास करना होगा। हमें इस बात से इन्कार नहीं करना चाहिए कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण लोगों की जीविका से जुड़ा होता है, अगर पर्यावरण बिगड़ता है तो ऐसे हालात में गरीबी,भुखमरी,असमानता और बेरोजगारी को बढ़ावा मिलता है,फिर तो ये बिल्कुल साफ है कि मनुष्य के जीवन यापन का साधन सीधे प्रकृति से जुड़ा होता है। आपने महसूस किया होगा कि जमीन का स्वरूप बिगड़ा तो किसान प्रभावित, पानी कम तो मछलीपालन करने वाले प्रभावित और नदी -तालाब सूखे तो गांव पर संकट के बादल। हमें देखना और समझना चाहिए कि बढ़ते प्रदूषण ने महामारी के खिलाफ हमारी जंग को कमजोर बना दिया था इसलिए इस बात में कोई संदेह नहीं कि प्रकृति के संरक्षण से ज्यादातर समस्याओं का निदान संभव है। बहरहाल राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रकृति के दिनोदिन बिगड़ते मिजाज़ को लेकर बड़ी-बड़ी गोष्ठियां आयेजित की जाती हैं मंचों पर चिंतायें व्यक्त की जाती रही है,ं हर पर्यावरण दिवस पर संकल्प दोहराये जाते हैं लेकिन चकाचैंध से अन्धे और सुख संसाधनो की चाहत ने इसके संतुलन को बिगाड़ दिया है। आप देख ही रहे हैं कि सकल घरेलू उत्पादों में दिनोंदिन हो रहे इजाफे,बेलगाम आद्यौगिक विकास जिसके चलते रोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर पैदा करने की चाहत से इस तरह के संकल्प और चर्चाये बेमतलब होजाती है, ये ही कारण है कि कभी साइक्लोन तो कभी अर्थक्वेक, कभी सूखा तो कभी अकाल कभी महामारी के रूप मे प्रकृति अपना डरावना रूप दिखाकर हमें आगाह करती रही है । लिहाजा हमें पर्यावरण दिवस 2021 की थीम पर चलकर संकल्प लेना होगा कि उन पारिस्थतिक तंत्र जो नाुजक और नष्ट हो रहै हैं उनके संरक्षण और संवर्द्धन के लिए आगेे आकर पर्यावरण के संतुलन को बनाये रखने में अपना योगदान देना होगां।
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