पेशे के प्रति ईमानदार और मानवता की मिसाल हैं डा0संजय गांधी
डाक्टर संजय गांधी
सलीम रज़ा
तेजी के साथ बदलते आज के दौर में इंसानियत,हमदर्दी,व्यवहार और रहे बचे रिश्ते सब कुछ प्रैक्टिकल हो गये हैं। अब हर इंसान सुविधानुसार इसका इस्तेमाल करने में महारत हासिल कर चुका है, लेकिन अभी भी यह फीसद कम है। हर इंसान निहायत प्रोफेशनल नहीं है उसके दिल के किसी कोने में आज भी हमदर्दी,प्यार,और दूसरों की निःस्वार्थ सेवा करने का जज्बा ज़िन्दा है। इन सारी बातों की पर्त दर पर्त इस कोरोना काल में सबके सामने आ गई लेकिन कुछ ऐसे जिन्दा किरदार हैं जिन्होंने अपनी मिसाल कायम कर दी जो अविस्मरणीय है। कहते हैं आसमान में भगवान जिसके एक नहीं अनेक रूप हैं तो वहीं ज़मीन पर डाक्टर भगवान का रूप है जो इंसानों की जान बचाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाकर देवदूत का दर्जा पाता है। मैं यहां पर कुछ बात कहना चाहता हूं कि आजके मार्केटिग और विज्ञापन की चकाचौंध भरी दुनिया में अच्छे डाक्टरों की शिनाख्त करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है। दरअसल वैल फर्निश्ड क्नलीनिक,बेहतरीन ड्रेसकोड और मंहगी गाड़ी से उतरने वाला डाक्टर शालीन और हमदर्द होगा संदेह के दायरे में आता है,क्योंकि ये पैतिृक संस्कार हैं जिसका समावेश हर डाक्टरी पेशे से जुड़े डाक्टर में देखने को मिले ये मुमकिन नहीं है। बाज़ारबाद की प्रतिस्पर्धा में जोड़-तोड़ करके या फिर बड़े मीडिया चैनल्स में आकर मरीजों के स्वास्थ समाधान पर चर्चा करके मैनेज करने वाला ही अच्छा डाक्टर होगा मैं इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता हूं। अच्छा डाक्टर वह है जो अपने पेशे से ईमानदारी करे ंदेखने वाली बात है कि जिस मरीज के परिजन डाक्टर के पास लाकर अपने अजीज की जिन्दगी उसके हवाले कर देते हैं और वह पूरी तन्मयता के साथ वगैर किसी स्वार्थ के उसे नया जीवन देता है। ऐसी मिसालें बहुत हैं तो ऐसी भी मिसाले हैं जहां पर डाक्टरी पेशा शर्मसार भी हुआ है । मैं ज्यादा लम्बी बात नहीं करना चाहता लेकिन जो मैंने सुना वो आपके समक्ष रख रहा हूं। देवभूमि उत्तराखण्ड में भी ऐसी शख्सियतें हैं जिनके किस्से सुनकर सर फक्र से ऊंचा हो जाता है। जी हां मैं बात कर रहा हूं उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में सिटी हार्ट केयर सेन्टर के एम.डी डाक्टर संजय गांधी जी की जो सिर से लेकर पांव तक आदर्श की मिसाल हैं। डाक्टर संजय गांधी अपने मृदु भाषा और सौम्य व्यवहार के लिए जाने जाते हैं। तकरीबन 50 के आसपास स्टाफ के साथ मरीजों की देखभाल करने वाले डाक्टर गांधी का स्टाफ भी उनकी तरह संस्कारित है, जिनका मकसद सिर्फ और सिर्फ मरीजों की बेहतर देखभाल करना है। उनके अस्पताल में उपचाराधीन मरीज डाक्टर गांधी और उनके स्टाफ की तारीफ करते नहीं थकते उनका कहना था कि जिस तरह से वो मरीजों के साथ व्यवहार करते हैं उससे आधे से ज्यादा रोग तो वैसे ही कट जाता है। कुछ लोगों ने मुझे बताया कि जब कोरोनाकाल में कई निजि अस्पतालो के डाक्टरों द्वारा पैसे के अभाव में मरीजों की अनदेखी की गई ऐसे समय में सिटी हार्ट केयर सेन्टर में डाक्टर गाधी के अन्डर में उपचाराधीन होने पर उनको हिम्मत और दिली सुकून मिला, ये अपने आप में बहुत बड़ी बात है। मैंने जब मरीजों की जुबानी डाक्टर गांधी की प्रशंसा सुनी तो मेरी भी इच्छा उनसे बात करने की हुई।फोन पर बातचीत के दौरान मेरी उनसे डाक्टरी पेशे को लेकर लम्बी बातचीत हुई लेकिन उनकी एक बात ने मुझे काफी प्रभावित किया, जब उन्होंने कहा कि कोरोनाकाल में जब लोग अपनों के बिछड़ जाने का गम लिए हुये थे उस वक्त मैंने सोचा कि सबसे पहले मेरा मकसद है उनको बेहतर विक्तिसा सेवा देना।उन्होंने कहा कि मैंने कभी पैसों की चाहत नही करी पैसा मेरी प्राथमिकता नहीं रही मरीज जल्द से जल्द ठीक हो ये मेरी पहली प्राथमिकता थी। बहरहाल मेरे अन्तस में एक सवाल कौंध रहा है उसे जरूर कहना चाहूंगा कि बाजारबाद की इस दुनिया में बढ़ते लालच और बेईमान समय ने डाक्टरों की जीवन शैली को अपनी ही तरह से बदल डाला है तो जाहिर सी बात है कि डाक्टरों का मीठा बोलना भी मजबूरी है क्योंकि ये प्रोफेशनल या ये कह लें कि धधे की बात है। लेकिन डाक्टर संजय गांधी का वयवहार अनूठा तो उनकी मिसाल बेमिसाल है मैं उनके पेशे के प्रति समर्पण भाव और ईमानदारी को सलाम करता हूं।
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