सुख की आस में कटता हमारा जीवन
प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"
ऐसे सूत्र वाक्य हमारे सामने होते हैं, जब हमारा जीवन से संघर्ष जारी रहता है। जैसे नदी हमसे तब दूर हो जाती है, जब हम तैरना सीख जाते हैं। अखरोट हमारे सामने तब आता है, जब हमारे दाँत काम करना बंद कर देते हैं। कश्मीर की हसीन वादियों में घूमने का अवसर तब मिलता है, जब शरीर कमज़ोर हो जाता है। यह हमारे जीवन की विसंगतियाँ हैं, जो अक़्सर हमारा पीछा करती रहती हैं।
मानव
जीवन विसंगतियों के बीच ही चलता रहता है। इस दौरान मानव सदैव सुख की चाहत
में रहता है। वह हर तरह के सुख की कामना करता रहता है। वास्तव में वह जिसे
सुख समझता है, वह तो केवल मायावी होता है। हमारे सामने सदैव उन सुखों की
परछाई होती है। वास्तविक सुख की पहचान बहुत कम लोगों को ही हो पाती है। कई
लोगों की दृष्टि में अपार धन-दौलत ही सुखी होना होता है, कई धन कुबेर ऐसे
भी हैं, जिनके पास वे सभी सुविधाएँ हैं, जिसकी कल्पना मानव करता है, पर ये
लोग न तो ठीक से भोजन कर पाते हैं और न ही सो सकते हैं। उनके लिए यह जीवन
काँटों से भरा होता है। वे अच्छी गहरी नींद के लिए तरस जाते हैं। उन्हें
भूख नहीं लगती। सारे स्वादिष्ट व्यंजन उनके सामने होते हैं, पर वे उसे खा
नहीं सकते। उनकी स्वयं की दृष्टि में उनका जीवन एक अभिशाप ही है।
मानव
के लिए सात सुखों की कल्पना की गई है। इसे एक दोहे के रूप में लिखा गया
है। पहला सुख निरोगी काया, दूसरा सुख, हो घर में माया, तीसरा सुख कुलवंती
नारी, चौथा सुख सुत आज्ञाकारी, पंचम सुख संतों संग बासा, षष्टम सुख हो नदी
निवासा, सप्तम सुख हो उत्तम निवासा। इनमें से पहला सुख है– निरोगी काया। जब
तक शरीर स्वस्थ है, तब तक मानव वास्तव में अपना जीवन जीता है। रोगी शरीर
के साथ जीवन जीना मुश्किल होता है। इसलिए मानव स्वस्थ रहने की सारी जुगत
करता है। इसमें शामिल है, सुबह उठने के साथ ही सारे परहेज़ के बीच स्वयं को
व्यस्त रखना। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए मानव प्रतिदिन कई संकल्प लेता है,
पर जीवन की आपाधापी में वह उसे अमल में नहीं ला पाता। भले ही वह रोज़ सुबह
जल्दी उठने का संकल्प हो या फिर कम भोजन करने का। इस तरह के सारे संकल्प एक
ही झटके में भरमराकर टूट जाते हैं। लेकिन जब वह रोगी हो जाता है, तब उसकी
पूरी कोशिश होती है कि जो भी संकल्प लिया जाए, उस पर अमल भी किया जाए।
जब
शरीर निरोगी होगा, तभी वह माया बटोर पाएगा। यह सच है कि धन का अभाव कई
दु:खों को न्योता देता है, पर इसे ही सब कुछ मान लेना भूल होगी। लाखों
परिवार ऐसे भी हैं, जो कम आय में भी अपना जीवन अच्छी तरह से जी लेते हैं।
इसलिए धन ही सब कुछ है, यह कहना उचित नहीं होगा। हाँ, कुछ संशोधन के साथ यह
कहा जा सकता है कि धन बहुत-कुछ है। इससे काफ़ी कुछ पाया जा सकता है। धन को
सब कुछ मानने वाले यदि एक बार झोपड़-पट्टियों में रहने वालों का जीवन देख
लें, तो उन्हें पता चल जाएगा कि धन ही सब कुछ नहीं है। इसके बाद जिस सुख की
कल्पना की गई है, उसमें नाम आता है कुलवंती नारी। देखा जाए, तो एक नारी ही
मानव और घर को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसकी उदारता के आगे
सारे समर्पण फीके हैं। ये कभी बुरी नहीं होती, पर हालात इन्हें कई बार
बुरा बना देते हैं। इसलिए घर को सँवारने और इंसान को बनाने में एक कुलवंती
नारी का होना आवश्यक है। यह नारी पत्नी, माँ, बहन, भाभी, बुआ, चाची, ताई
आदि रूपों में हमारे बीच हो सकती है। ये देवी होती हैं, इन्हें पूजा जाना
चाहिए। इनकी अवहेलना कभी नहीं होनी चाहिए। इनकी महानता को समझना चाहिए। जब
तक उसका सम्मान होता रहेगा, वह कुलवंती बनी रहेगी।
इसके
बाद बात चौथे सुख की आती है सुत के आज्ञाकारी होने की। आज सबसे बड़ी समस्या
यही है कि बच्चे माता-पिता की बात नहीं मानते। जब वे छोटे होते हैं, तब तो
मनाया जा सकता है, पर जब वे बड़े हो जाते हैं, तब उन्हें मनाना मुश्किल
होता है। बच्चों के आज्ञाकारी न होने से माता-पिता की चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
वे तनाव ग्रस्त हो जाते हैं। फिर उनका जीना ही मुश्किल हो जाता है। इसलिए
बच्चों को ऐसे संस्कार दिए जाएँ, जिससे वे आज्ञाकारी बनें रहें। उनके सामने
कोई भी ऐसा काम न करें, जिसे वे ग़लत मानते हों। पाँचवाँ सुख है संतों के
साथ रहने का। संतों से आशय बुद्धिमानों के बीच रहने का है। किताबें हमें
बुद्धिमान बनाती हैं, पर बुद्धिमानों के बीच रहने से हमें अपनी बुद्धि के
विस्तार का पता चलता है। संतों के सत्संग से हम अपने विचारों को तराशते
हैं। हमें नए ज्ञान की जानकारी होती है। इसलिए इसे भी एक सुख ही माना गया
है। छठा सुख है नदी निवासा और सातवाँ उत्तम निवासा। इन दोनों को यदि ध्यान
से समझने का प्रयास करें, तो हम पाएँगे कि पर्यावरण के बीच रहना भी एक सुख
ही है। आजकल हम सभी ने देखा होगा कि बिल्डर्स ऐसे-ऐसे मकान बना रहे हैं,
जिसे वे हरियाली का नाम देते हैं। जैसे लेक-व्यू, सी-व्यू, ग्रीन सिटी आदि।
हर कोई चाहता है कि वह प्रकृति के बीच रहे। कोई भी उजाड़ में नहीं रहना
चाहता। इसलिए यदि हरियाली के बीच रहा जाए, तो जीवन की दुश्वारियों का सामना
हम अच्छी तरह से कर सकते हैं। घर यदि नदी किनारे हो, तो सोने में सुहागा।
इसलिए लोग अपना घर ऐसे स्थानों पर बनाना चाहते हैं, जो नदी के आसपास हो या
फिर हरियाली के बीच हो। हरियाली के बीच रहना भी एक सुख ही है।
इस
तरह से हमने सातों सुख को अच्छी तरह से जान लिया है। इन सुखों को प्राप्त
करने के लिए हमें कई जतन करने होंगे। इसमें हमारा परिश्रम तो होगा ही, पर
अच्छे कर्म भी हमें इसके लिए सहायता करेंगे। अच्छे कर्म, अच्छी सोच से ही
आएँगे। इसलिए यह ध्यान रखा जाए, हमारे कर्म ऐसे हों, जिससे हमारी संतानें
उस पर गर्व करे। अपनी संतानों से हम आँखें मिलाकर तभी बात कर पाएँगे, जब हम
निर्दोष होंगे। निर्दोष होने के लिए हमारे कर्म ही सहायक होंगे। ये सात
सुख हमें परमार्थ की ओर ले जाएँगे। इसका ध्यान अवश्य रखें।
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
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