उत्तराखंड: कोरोना की तीसरी लहर से ऐसे कैसे करेंगे मुकाबला 43 फीसद बच्चों को नहीं लग रहे जरूरी टीके

 

 



उत्तराखंड में एक से दो साल के बीच के करीब 43 फीसदी बच्चों का टीकाकरण नहीं हो पा रहा है। इससे बच्चों में विभिन्न बीमारियों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं हो पा रही और उन पर बीमार होने का खतरा मंडरा रहा है। सरकारी कोविड एक्सपर्ट कमेटी ने राज्य सरकार का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया है।

ऐसे बच्चों में कम होगी प्रतिरोधक क्षमता

 
कोरोना की तीसरी लहर का सबसे बड़ा खतरा बच्चों को बताया जा रहा है। ऐसे में सभी बच्चों का टीकाकरण न होना हालात चिंताजनक होने की ओर इशारा कर रहे हैं। दरअसल सरकार द्वारा बनाई गई कोविड एक्सपर्ट कमेटी के अनुसार, उत्तराखंड में 12 माह से 23 माह (एक साल से करीब दो साल) तक के महज 57 प्रतिशत बच्चों का टीकाकरण हुआ है यानी इस उम्र के प्रति सौ बच्चों में से 43 बच्चे टीकाकरण से वंचित हैं। ऐसे में यह तय है कि उनमें वैक्सीनेटेड बच्चों के मुकाबले प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) कम विकसित हुई होगी। राज्य में एक साल से दो साल तक की उम्र के बच्चों की संख्या तकरीबन तीन लाख है। ऐसे में यदि कोरोना की तीसरी लहर आई तो हालात गंभीर हो सकते हैं। हालांकि इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार ने बच्चों का पोषण और टीकाकरण कार्यक्रम लांच कर दिया गया है।

नहीं लग रहे कई अहम टीके 

 
एक से दो साल के बीच के बच्चों को एमएमआर, डीपीटी बूस्टर और पेंटा वैक्सीन लगाई जाती है। यह टीके बच्चों में काली खांसी, पोलियो, खसरा सहित अनेक बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करते हैं। यदि यह टीके नहीं लगे तो बच्चे को भविष्य में इन रोगों का खतरा और उनके गंभीर प्रभाव पड़ने का डर बना रहता है। 

राष्ट्रीय औसत से खराब स्थिति 

 
देश में एक से दो साल के बीच के बच्चों में टीकाकरण का प्रतिशत करीब 62 है यानी 100 में से 62 बच्चों का टीकाकरण हो रहा है। इसके सापेक्ष उत्तराखंड में प्रति सौ में से 57 बच्चों का ही टीकाकरण हो पा रहा है। इस मामले में देश में सबसे अच्छी स्थिति केरल की है। जहां प्रति सौ में से 82 बच्चों को टीके लग रहे हैं।

हरिद्वार और यूएसनगर में स्थिति ज्यादा खराब

 
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि राज्य में टीकाकरण की स्थिति पर्वतीय क्षेत्रों में ठीक-ठाक है लेकिन हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर जिलों की स्थिति खासी खराब है। इन जिलों को केंद्र सरकार ने विशेष टीकाकरण अभियान ‘मिशन इंद्रधनुष’ के तहत भी कवर किया था लेकिन इसके बाद भी हालात में अब तक बहुत अधिक सुधार नहीं दिखाई दे रहा है। अधिकारियों ने बताया कि इन दो जिलों में फ्लोटिंग आबादी अधिक है इसलिए सभी बच्चों का टीकाकरण नहीं हो पा रहा। 

ट्रेकिंग सिस्टम बनाने की जरूरत : डॉ.डीएस रावत 

 
पूर्व स्वास्थ्य महानिदेशक और बाल रोग विशेषज्ञ डॉ.डीएस रावत का कहना है कि 43% बच्चों का टीकाकरण न होना बेहद गंभीर है। इस स्थिति में सुधार की जरूरत है। उन्होंने कहा कि मैदानी क्षेत्रों में टीकाकरण के लिए ट्रेकिंग सिस्टम अपनाया जाना चाहिए। जिन बच्चों को जन्म का टीका लग गया, उनकी निरंतर ट्रैकिंग होनी चाहिए ताकि बाद के सभी टीके भी उन्हें लग सकें। उन्होंने कहा, टीकाकरण की स्थिति सुधरने से बच्चों के बाद में बीमार पड़ने की संभावना कम होती है। यदि बच्चा किसी कारण बीमार हो भी गया तो उन्हें गंभीर संक्रमण नहीं होता। 

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