कांग्रेस भाजपा से यारी, विकास पर पड़ती भारी

 


 

नरेश भारद्वाज /

 

 विकास - लैंसडाउन विधान सभा !


जहाँ 21 साल का युवा उतराखंड सरक सरक कर चलने को मजबूर है, वहीं लैंसडाउन विधान सभा तो अभी भी पालने में ही झूलने को मजबूर है. ऐसा क्यूँ? यह एक यक्ष प्रश्न है जिसका जवाब मतदाता इस आने वाले २०२२ के चुनावी पर्व में भी न ढूँढ पाये तो विकास के अँधियारे में पाँच साल और जुड़ जाएँगे. जवाब तो आम ग्रामीण खुली आँखो से देख रहे हैं, लेकिन मानने को तैयार नही की कांग्रेस भाजपा से यारी ही विकास पर भारी पड़ने की मुख्य वजह है. इससे भी बड़ा यक्ष प्रश्न है इस यारी के तिलस्म को तोड़े कौन और कैसे? वर्तमान में विधायक टिकट के दावेदारों में वही कांग्रेस और भाजपा ही दौड़ लगा रहे है. कांग्रेस के दर्जन भर उम्मीदवार ख़ुद को विकास का मसीहा साबित करने को ऊँचे नीचे पहाड़ दर पहाड़ में भटक रहे हैं तो भाजपा से दस वर्षों से विकास पुरुष रहे जनप्रतिनिधि ही आगे के लिए ताल ठोक रहे हैं. इसे विडम्बना ही कहेंगे की पूरे पाँच साल विकास का रोने वाले और दूसरे ख़ुद को समाजसेवी बताने का शोर मचाने वाले कहीं ग़ायब हैं.  दूसरी विधान सभाओं पर नज़र डालें तो बतौर क्षेत्रीय दल या निर्दलीय प्रत्याशियों की भरमार है जो चुनाव में क़िस्मत आज़माने को कमर कस रहे हैं. त्रिस्तरीय न्याय पंचायत चुनाव में ग्राम प्रधान से लेकर ज़िल्ला पंचायत अध्यक्ष तक के पदों के लिये प्रत्यक्षियो की भरमार रहती है, लेकिन जब बात आती है क़ाबिल जनप्रतिनिधि चुनने की तो ढूँढे से  भी उम्मीदवार नहीं मिलता और बागडोर फिर उन्ही के हाथों में जो इतने वर्षों से क्षेत्र को विकास  की अँधेरी ग़ुफ़ा में घुसाते आ रहे हैं. इसका महज़ एक कारण भाजपा कांग्रेस से यारी ही हैं. इन दोनो दलों ने ग्रामीण मतदाताओं की कमज़ोर नस पकड़ रखी है , और इस कमज़ोर नस को दलों के प्रत्याक्षि मज़बूत और मजबूर करते हैं अपने धनबल की ताक़त से. ऐंसे में कोई आर्थिक रूप से कमज़ोर सच्चा समाजसेवी, उतराखंड हितैषी चुनाव में उतरे भी तो कैसे? उतरे  भी तो अपना घर फूँकने को क्यूँ? बस क्षेत्रीय दल हो या निर्दलीय मन मसोस रह जाते हैं, और कांग्रेस भाजपा के साथ लक्ष्मी मोह की यारी विकास पर भारी पड़ती जा रही है साल दर साल. 



संस्थापक अध्यक्ष
सर्वोत्थान  सेवा संस्थान
(सामाजिक संगठन)

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