भावुक और प्रैक्टिकल
प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम" /
सच
में किसी को किसी की आदतें नहीं बिगाड़नी चाहिए। लोग तयशुदा वक्त पर किसी
का ख्याल रखते हैं, मैसेज करते हैं, फोन करते हैं, एक मिसकाॅल देते हैं,
खाना खाया, नहीं खाया, आज वाॅक हुई ना हुई, क्या कर रहे हो, शाम को क्या
करोगे, आज का दिन कैसा गया, सूरत तो दिखा दो, नाराज़गियाँ, तमाम रूठना
मनाना, प्यार मोहब्बत, अपना ख्याल रखना, मैं हमेशा साथ हूँ, वगैरह वगैरह।
ये
सुनने में कॉमन या मज़ाक भी लग सकता है लेकिन ज़िंदगी का असली रंग-रूप यही
है। जब किसी वक्त फिर ये नहीं मिलता या लोग किसी को ये सब ट्रीटमेंट नहीं
देते तो कलेजा मुँह को आ जाता है क्योंकि आपने किसी की और किसी ने आपकी
आदतें बिगाड़ी होती हैं। वो कोई भी हो सकता है, माँ-पिता, भाई-बहन,
यार-दोस्त, प्रेमी-प्रेमिका, पति-पत्नी कोई भी।
किसी
की आदतें नहीं बिगाड़नी चाहिए क्योंकि इन सबके अभाव में सब कुछ बिखरा
बिखरा लगता है। रिश्तों के दरकने की ज़िम्मेदारी भी लेनी चाहिए क्योंकि
उसके बाद एक इंसान हमेशा के लिए अकेला रह जाता है और जाने वाले को एक रेशा
फर्क नहीं पड़ता।
रिश्ते
बिगड़ने पर इंसान भी अलग तरह से बिगड़ जाता है। मानसिक रूप से वो इस तरह से
टूटता बिगड़ता है जिसका इलाज तक उसे पता नहीं। इलाज के रास्ते तक पता नहीं
होते।
कम्फर्ट ज़ोन में
रहकर लोग एक दूसरे के साथ खेलते रहते हैं। जब मर्ज़ी हुई प्रेम जताया प्रेम
के नाम पर सेक्स कर लिया। दो लोगों में से कोई एक हमेशा तड़पता रहता
है। चाहे वो लड़का हो चाहे लड़की या कोई भी जेंडर।
आप
जब अपने स्तर पर स्पष्ट हों कि हम भावुक नहीं प्रैक्टिकल हैं तब कम से कम
आप किसी भावुक को मत पकड़िए। भावुक लोग सब कुछ हो सकते हैं, प्रैक्टिकल
नहीं हो सकते।
इस दुनिया
में सारे कॉम्बिनेशन हैं और बहुत वक्त नहीं लगता आपको ये समझने में कि आप
कर क्या रहे हैं! रिश्तों के आपसी तनाव ने बहुत कुछ बिगाड़ रखा है।
कम से कम भावुक लोगों को लपेटे में नहीं लेना चाहिए।
सबके
लिए सब कुछ भूलकर आगे बढ़ना आसान नहीं है। कुछ की ज़िंदगी के मोड़ ऐसे
मुड़ते हैं जहाँ डेड एंड आ जाता है। किसी की पीड़ा का कारण बनने से बेहतर
है किसी का कुछ भी ना बनना।
मानसिक
व्याधियों का इलाज करते करते जब हर दूसरा इंसान इन सब बातों से पीड़ित
मिलता है मुझे तब मेरा ये कहना शायद किसी एक को ही सही, समझ आए कि इन सबके
परिणाम क्या होते हैं।
किसी
को अपना टाइमपास बनाने और उसे ही अपना टाइम बनाने में ज़मीन आसमान का अंतर
है। मेंटल हेल्थ से बढ़कर कुछ नहीं है। खुद रहेंगे तब तो कुछ रहेगा। खुद
ही नहीं रहेंगे तो रहे हुए का क्या कर लेंगे।
प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"
युवा लेखक/स्तंभकार/साहित्यकार
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
सचलभाष/व्हाट्सअप : 6392189466
ईमेल : prafulsingh90@gmail.com
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