उत्तरकाशी: केसर की खुश्बू से महकी हर्षिल घाटी, खिल उठे काश्तकारों के चेहरे
सीमांत जनपद की हर्षिल घाटी रसीले सेबों और राजमा के उत्पादन के लिए जानी जाती है। केसर की खेती के लिए घाटी का मौसम व मिट्टी मुफीद होने के चलते कृषि विज्ञान केंद्र ने वर्ष 2018-19 में पहले ट्रायल के तौर पर किसानों को केसर के बीज दिए थे। इसके सकारात्मक परिणाम सामने आए।
हर्षिल घाटी में केसर उत्पादन की योजना परवान चढ़ती नजर आ रही है। योजना के तहत घाटी के पांच गांवों के काश्तकारों को केसर के बीज निशुल्क उपलब्ध कराए गए थे। इनमें से अधिकांश बीज अंकुरित हो गए हैं और उनपर फूल खिल गए हैं। ये देख काश्तकारों के चेहरे खिल गए हैं।
इसे देखते हुए इस वर्ष जिला प्रशासन व उद्यान विभाग ने जिला योजना 2021-22 से घाटी के सुक्की, झाला, मुखबा, पुराली व जसपुर गांवों के करीब 38 किसानों को केसर के बीज दिए थे। किसानों ने क्यारियां तैयार कर इन्हें खेतों में बोया। एक से डेढ़ महीने में ही इन पर फूल खिलने शुरू हो गए हैं। इससे काश्तकार उत्साहित हैं।
सुक्की गांव के किसान मोहन सिंह राणा ने बताया कि उन्हें 6 किलो बीज मिले थे, जो उन्होंने 22 सितंबर को बोए थे। एक महीने में ही इन पर फूल आने शुरू हो गए हैं। 15 अक्तूबर तक फूल आते रहेंगे। हर्षिल के काश्तकार नागेंद्र सिंह रावत ने भी केसर के बीज बोए थे। उनके खेतों में भी फूल खिल रहे हैं।
काश्तकारों को अच्छी गुणवत्ता का बीज दिया गया था। इसके चलते इस पर एक से डेढ़ माह में फूल आना शुरू हो गए हैं। अभी उत्पादन कम है। भविष्य में यह किसानों के आजीविका संवर्धन में सहायक होगा।
-रजनीश सिंह, मुख्य उद्यान अधिकारी उत्तरकाशी
कृषि विज्ञान केंद्र चिन्यालीसौड़ हर्षिल घाटी में उत्पादित हो रहे केसर की गुणवत्ता की जांच करेगा। केंद्र के उद्यान विशेषज्ञ डॉ. पंकज नौटियाल ने बताया घाटी के तीन गांवों की पांच जगहों से सैंपल लिए जाएंगे। इसके बाद लैब में केसर में मिलने वाले क्रोसिन, क्रोसेटिन व सेफ्रेनल तत्वों के आधार पर इसकी गुणवत्ता परखी जाएगी। इसमें कश्मीर के केसर का सैंपल भी रखा जाएगा।
इससे कश्मीर के केसर के साथ भी इसका तुलनात्मक परीक्षण होगा ताकि काश्तकारों को वाजिब दाम मिल सकें। डीएचओ रजनीश सिंह ने बताया कि कश्मीर के केसर के बीजों का मूल्य ज्यादा होने के चलते यमुनाघाटी के धारी कफनौल में स्थित एक नर्सरी से ही किसानों को बीज मुहैया कराएगा।
टिप्पणियाँ