सरकार का कृषि कानून वापसी का फैसला महज चुनावी स्टंट
सलीम रज़ा
एक साल से ज्यादा अर्से से अन्नदाता सड़क से संसद तक तीनो काले कृषि कानूनों को रद करने के लिए सरकार के खिलाफ लामबन्द थे लेकिन सरकार अपने हठ के आगे किसानों की मांग को नज़र अन्दाज करती चली आ रही थी। सरकार के मंत्रियों और किसानों के बीच कई दौर की वार्ता भी हुई लेकिन समाधान नहीं निकला, इतना ही नहीं छुर्भावना से ग्रस्त सरकार ने किसान आन्दोलन को बदनाम करने में भी कोई कमी नहीं की थी , इस आन्दोलन में न जाने कितने किसान शहीद हुये लेकिन संसद में बैठे लोगों का दिल नहीं पसीजा मगर एकाएक सरकार का तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला चौंकाने वाला था लेकिन कई सवाल मेरे मन में उठने लगे कि अचानक किसी की परवाह न करने वाली मोदी सरकार बैकफुट पर कैसे आ गई लेकिन नजर दौड़ाई तो कुछ बातें सामने निकल कर बाहर आईं जिसे देखकर लगा कि सरकार तीनों कृषि कानून वापस लेने के लिए मजबूर क्यों हुई तो मेरे अन्तस में जो आया वो आपके सामने है क्योंकि मिशन 2022 सामने है उत्तर प्रदेश,उत्तराखण्ड और पंजाब तीनों प्रदेशों में किसान आन्दोलन का ग्रहण लगा हुआ था इसमें भाजपा को सबसे ज्यादा खतरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश था जो किसान बहुल्य है और जाट वोट बिखरने का सरकार को डर था। दूसरा हाल ही में संपन्न हुये उपचुनाव में हिमाचल और राजस्थान में भाजपा को मिली शिकस्त ने भी सरकार के पांव डगमगा दिये तीसरा लखीमपुर खीरी कांड ने भी सरकार की निरंकुश छवि को सामने ला दिया वहीं भाजपा सांसद वरूण गांधी और मेघालय के गवर्नर सत्यपाल मलिक के विरोध ने भी सरकार को सोचने पर मजबूर कर दिया जो भाजपा के कुनबे में किसान आन्दोलन को लेकर पनप रहे असंतोष को दर्शा रहा था बहरहाल मैं तो ये ही कहूंगा कि संसद में बिल पास हुआ तो संसद में ही निरस्त होना चाहिए ऐसे में भारतीय कियान युनियन के प्रमुख टिकैत का तीनों क1षि कानून संसद में निरस्त न होने तक आन्दोलन जारी रखने का फैसला सही है क्योंकि आगामी चुनाव को देखते हुये ये किसानों को इमोशनल ब्लैकमेल करने का हथियार तो नहीं है बहरहाल आईये जानते हैं कि वुद्धिजीवी,उद्योगपति,समाजसेवीऔर शिक्षाविद पत्रकार तीनों काले क1षि कानून सरकार द्वारा वापस लेने के फैसले पर अपनी-अपनी क्या प्रतिक्रिया देते हैं।
उत्तराखण्ड सरकार में पूर्व मंत्री रहीं सुश्री सारिका प्रधान का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी का तीनो कृषि कानून को वापस लेने का फैसला महज चुनावी स्टंट है।
सुश्री सारिका प्रधान,पूर्व मंत्री उत्तराखण्ड सरकार।
समाज सेवी अनवर अली खान का कहना है कि ये कानून चुनाव को देखते हुए लिया गया है,इसका भारतीय जनता पार्टी को कोई फायदा पुहंचने वाला नहीं है,जनता इस को समझ रही है।
अनवर अली खान, समाज सेवी,सैदपुर बदायूं
बदायूं के उद्योगपति मुजाहिद हुसैन सिद्दिक़ी का कहना है कि तीनों कृषि कानून को सरकार का वापस लेने का फेसला एक पूर्व नियोजित ड्रामा है चुनाव का वक्त नजदीक देखकर सरकार ने किसानों को चुनावी लोली पाप थमा दिया है,लेकिन इसका चुनाव में भाजपा को कोई लाभ जनता नही देगी।
मुजाहिद हुसैन सिद्दिक़ी,उद्योगपति,बदायूं
भाजपा जिला उपाध्यक्ष अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ बदायूँ के शाहिद अली इंजीनियर का कहना है कि ये कानून किसानों के हित में ही वापस लिया गया है।
शाहिद अली इंजीनियर,भाजपा जिला उपाध्यक्ष अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ बदाय
सपा कार्यकर्ता व व्यापारी शहनशाह अली खानका कहना है कि किसान बिल वापस लेना सरकार की मजबूरी रही। इस का सरकार को अब भी बड़ा नुकसान मिलेगा।
शहनशाह अली खान,सपा कार्यकर्ता व्यापारी
शिक्षाविद्द कैसान अली का कहना है कि आगामी विशान सभा चुनाव में अपनी शिकस्त सामने देखकर भाजपा सरकार बैकफुट पर आई है लिहाजा ये कानून चुनाव को देखते हुए वापस लिया गया है।
कैसान अली,शिक्षाविद्द
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