उत्तराखंड में कोरोना के नये वेरिएंट ओमिक्रॉन की दस्तक, सैंपलों में डेल्टा प्लस कंफर्म

 


 दून मेडिकल कॉलेज में जीनोम सिक्वेंसिंग के दूसरे बैच की भी रिपोर्ट आ गई। इसमें नये वेरिएंट की पुष्टि नहीं हुई। हालांकि, चिंता की बात है कि सभी सैंपलों में डेल्टा और डेल्टा प्लस वेरिएंट मिला है। दून मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना ने बताया कि प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर डॉ. शेखर पाल, असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुनील कुमार दहिया की अगुवाई में वॉयरोलॉजी लैब में जीनोम सिक्वेंसिंग की गई थी। पहले बैच में 18 सैंपलों की रिपोर्ट के बाद अब दूसरे बैच के 80 सैंपलों की रिपोर्ट आ गई है। इसमें कोरोना का कोई नया वेरिएंट नहीं मिला, पर अभी भी सजग रहने की जरूरत है। दूसरे बैच में नैनीताल के 35, हरिद्वार के एक, टिहरी के दो, अल्मोड़ा के पांच और देहरादून के 37 सैंपल थे।लखनऊ और दिल्ली से ट्रेनिंग से लौटे आईएफएस संक्रमित पाए जाने के बाद उनके सैंपलों की भी जीनोम सिक्वेंसिंग करवाई गई थी। आठ आईएफएस के सैंपलों की रिपोर्ट में भी पुराने वेरिएंट ही मिले हैं। इसकी रिपोर्ट आईडीएसपी और संस्थान को दे दी गई है।दून मेडिकल कॉलेज में ही अभी जीनोम सिक्वेंसिंग की जा रही है। पर, जिलों से सैंपल भेजने में कंजूसी की जा रही है। प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना ने कहा कि सभी जिलों की लैबों को रिमाइंडर भेजा गया है। उन्होंने बताया कि ऋषिकेश एम्स से तो एक भी सैंपल नहीं आया है।दून मेडिकल कॉलेज की वीआरडीएल लैब के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर डॉ. शेखर पाल और असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुनील दहिया ने बताया कि जीनोम सिक्वेंसिंग की एक प्रक्रिया में चार दिन लगते हैं। यह किसी वायरस का प्रोफाइल होता है। कोई वायरस कैसा है, किस तरह का दिखता है, इसकी जानकारी जीनोम से ही मिलती है। इसी वायरस के विशाल समूह को जीनोम कहा जाता है। वायरस के बारे में जानने की विधि को जीनोम सिक्वेंसिंग कहते हैं। इससे ही कोरोना के नए स्ट्रेन के बारे में जानकारी मिलती है। 20 या 80 सैंपलों की चिप लगाकर जांच की जाती है। 

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