कोयला बनाम अक्षय ऊर्जा- एक वित्‍तीय विश्‍लेषण रिपोर्ट

  


अक्षय ऊर्जा के मुकाबले कोयला आधारित परियोजनाओं को ज्यादा ऋण दे रहे हैं पीएफसी और आरईसी 



image.png   image.png


क्‍लाइमेट ट्रेंड्स और सेंटर फॉर फाइनेंशियल अकाउंटेबिलिटी (सीएफए) द्वारा  कोयला बनाम अक्षय ऊर्जा- एक वित्तीय विश्लेषण शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020 में भारतीय स्‍टेट बैंक अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं का सबसे बड़ा वित्‍तपोषक था जबकि पीएफसी और उसकी सहयोगी संस्था आरईसी सरकारी स्‍वामित्‍व वाली ऐसी संस्थाएं हैं जिन्होंने वर्ष 2020 में कोयले से बिजली उत्पादन की परियोजनाओं को धन उपलब्‍ध कराया।

यह रिपोर्ट सीएफए की वार्षिक ऊर्जा वित्‍त कांफ्रेंस में जारी की गयी, जिसकी मेजबानी आईआईटी मद्रास स्थित इंडो जर्मन सेंटर फॉर सस्‍टेनेबिलिटी के सहयोग से की गयी।

 

कोयला आधारित परियोजनाओं के लिए कर्ज देने का सिलसिला लगातार गिरावट की ओर है। हालांकि दो वर्ष तक गिरावट के बाद वर्ष 2020 में इसमें हल्की बढ़ोत्तरी देखी गई। हालांकि यह अब भी वर्ष 2017 में इस रिपोर्ट में पाए गए 60767 करोड़ रुपए (9350 मिलियन डॉलर) के मुकाबले 85% नीचे बना हुआ है। 

 

सेंटर फॉर फाइनेंशियल अकाउंटेबिलिटी के अधिशासी निदेशक जो एथियाली ने कहा "भारत में वित्त पोषण का रुझान उसी तरह का हैजैसा हम इस वक्त वैश्विक स्तर पर देख रहे हैं। कोयले से चलने वाली नई परियोजनाओं के लिए वित्तपोषण को वापस लिए जाने का सिलसिला बढ़ रहा है। अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं प्रतिष्ठाआर्थिक पहलू तथा विश्वास से संबंधित जोखिमों के डर से कोयला आधारित परियोजनाओं के लिए धन देने से परहेज कर रही हैं। भारत के सातवें सबसे बड़े वाणिज्यिक बैंक यानी फेडरल बैंक ने इस साल कोयला आधारित परियोजनाओं के लिए धन नहीं देने की नीति का ऐलान किया। वह ऐसा करने वाला भारत का पहला बैंक है। पीएफसी को उसके नक्शेकदम पर चलते हुए कोयले को छोड़कर अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं का ही वित्तपोषण करना चाहिए।"

 

वर्ष 2020 में अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के प्राथमिक वितरण में साल दर साल 11% की बढ़ोत्तरी देखी गई। वर्ष 2020 में एसबीआई द्वारा अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को दिए जाने वाले कर्ज में 2019 के मुकाबले 334% ज्यादा की जबरदस्त वृद्धि देखी गई है। पीएफसी ने वर्ष 2020 में अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए 2160 करोड़ रुपए (289 मिलियन डॉलर) का ऋण दिया जो कोयला आधारित परियोजनाओं के लिए उसके द्वारा उपलब्ध कराए गए वित्त पोषण का करीब 60% है।

 

क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा "अध्ययन से यह पता लगता है कि 450 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत को इस दशक में करीब 38 लाख करोड रुपए या 500 बिलियन डॉलर के निवेश की जरूरत है। ऐसा करने के लिए न सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषणबल्कि घरेलू वित्तीय संस्थाओं को भी अपनी भूमिका निभानी होगी। ऐसा लगता है कि पीएफसी और आरईसी अक्षय ऊर्जा के मुकाबले कोयला आधारित परियोजनाओं को ज्यादा ऋण दे रहे हैं। यह केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्यों के अनुरूप नहीं है। सरकार ने कोयले से चलने वाले बिजलीघरों को चरणबद्ध ढंग से बंद करने का संकल्प व्यक्त किया है और दीर्घकाल में नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य निर्धारित किया है। जैसे-जैसे अक्षय ऊर्जा सस्ती और बनाने में आसान होती जाएगीपारंपरिक संस्थानों को यह एहसास होगा कि अधिक कोयला परियोजनाओं को वित्तपोषित करना ठीक नहीं है।"

 

राजस्थान और गुजरात ने 18671 करोड़ रुपए (2507 मिलियन डॉलर) या अक्षय ऊर्जा संबंधी सभी ऋणों का 77% हिस्सा आकर्षित किया है। इस बीचबिहार को लगातार दूसरी बार एक नई कोयला आधारित परियोजना के लिए धन मिला है। 

 

आईआईटी मद्रास स्थित इंडो जर्मन सेंटर फॉर सस्टेनेबिलिटी के प्रोफेसर डॉक्टर सुधीर चेला राजन ने कहा "कोयला परियोजनाओं का वित्तपोषण करने वालों की संख्या में हर साल हो रही कमी उत्साहजनक है। रूपांतरण की इस रफ्तार को देखते हुए नीति निर्धारकों और सरकार के लिए यह बेहद जरूरी होगा कि वे रोजी-रोटी के लिए कोयले पर निर्भर लाखों लोगों को साथ लेकर चलना सुनिश्चित करें और रूपांतरण को तर्कसंगत बनाएं।"

 

भारत की घरेलू संकल्पबद्धता उसकी अंतरराष्ट्रीय जलवायु संकल्पबद्धताओं से कहीं ज्यादा है। हालांकि भारत ने अपने नेशनली डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशंस (एनडीसी) को पेरिस समझौते के अनुरूप उन्नत बनाने के अपने इरादे को जाहिर किया है लेकिन उसने अभी तक यूएनएफसीसीसी में अपने अपडेटेड एनडीसी आधिकारिक रूप से प्रस्तुत नहीं किए हैं। 500 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य हासिल करने के लिए भारत को वायु तथा सौर ऊर्जा में सालाना होने वाली क्षमता वृद्धि को और बढ़ाने की जरूरत है। ऐसा करने के लिए यह जरूरी है कि सरकारी संस्थाएं और निधि बैंक अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए सस्ता कर्ज उपलब्ध कराएं। 

 

----समाप्त----

 

रिपोर्ट के लिए लिंक- https://www.cenfa.org/uncategorized/coal-vs-renewable-financial-analysis/

 

क्लाइमेट ट्रेंड्स के बारे में

क्लाइमेट ट्रेंड्स दिल्ली से संचालित होने वाली डेटा आधारित रणनीतिक संवादात्मक पहल है जो जलवायु संकट तथा समाधानों के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए काम करती है। हम जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा रूपांतरण के विषयों पर जनता तथा मीडिया की समझ को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। 

 

सीएफए के बारे में

सेंटर फॉर फाइनेंशियल अकाउंटेबिलिटी( सीएफए ) दिल्ली स्थित शोध और अभियान संगठन हैजो मूलभूत ढांचे संबंधी परियोजनाओं के सतत तथा जवाबदेही पूर्ण वित्तपोषण पर काम करता है। सीएफए का लक्ष्य भारत में वित्तीय जवाबदेही को मजबूती देना और उसमें सुधार करना है। 



Dr.Seema Javed
डॉ. सीमा जावेद

पर्यावरणविद , वरिष्ठ पत्रकार और

जलवायु परिवर्तन की रणनीतिक संचारक 

टिप्पणियाँ

Popular Post