साईलेन्ट मतदाताओं ने बढ़ाई सियासी दलों की टेंशन



देहरादून:  आपको बता दें कि लगभग दो साल से देश कोरोना प्रकोप का दंश झेल रहा है ये ही वजह है कि अबकी बार विधान सभा 2022 में चुनाव प्रचार अभियान की धार मंद थी लेकिन बावजूद इसके चुनाव में वोटरों का जोश इस बार और भी बढ़ा हुआ था। बढ़े मतदान प्रतिशत ने इस बार सियासी दलों की पेशानी पर छलक आईं पसीने की बूंदे ये बता रही हैं कि इस बार बढ़े मतदान प्रतिशत ने सियासी दलों को हैरान कर दिया है। गौरतलब है कि इस बार चुनाव में तकरीबन 65.10 फीसद वोटरों ने अपने लोकतांत्रिक संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल किया है। हालांकि निर्वाचन आयोग के मुताबिक पोलिंग पार्टियों के रिकार्ड के मिलान के बाद इसमें कुछ बदलाव हो सकता है। देवभूमि उत्तराखंड अलग प्रदेश बनने के बाद हुए पहले तीन विधानसभा चुनावों में वोटिंग प्रतिशत में लगातार इजाफा हुआ, जबकि साल 2017 के चौथे विधानसभा चुनाव में इसमें एक प्रतिशत से ज्यादा  की गिरावट दर्ज की गई थी। प्रदेश के वोटरों  के मन में क्या है इसे इसे समझने में आखिर तक सियासी दल कामयाब नहीं हो सके।  बदले हालातों मे 65 प्रतिशत से ज्यादा वोटिंग को लेकर सियासी जानकारों का अपना अलग-अलग जोड़ घटाना कर रहे हैं।

आपको बता दें कि पांच साल सत्ता पर काबिज रहने वाली सरकार की एंटी इनकंबेंसी को लेकर सतर्क भारतीय जनता पार्टी को इस चुनाव में भी मोदी मैजिक के सहारे देखा गया है। अब जिस तरह वोटर ज्यादा तादाद में घरों से बाहर आकर पोलिंग बूथों तक मतदान को पहुंचे वहां भाजपा को सुकून मिलाहै। अब यह बात अलग है कि कांग्रेस भी इसे सत्ता परिवर्तन के रूप में बताकर अपने हक में बता रही है। अब भाजपा को यकीन बना हुआ है या फिर कांग्रेस का दावा सच साबित होगा यह तो आने वाले 10 मार्च को मतगणना के बाद सबके सामने आ ही जाएगा।


बहरहाल इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी विकास के साथ-साथ मोदी मैजिक के सहारे जनादेश मिलने की बात कर रही है। अब देखने वाली बात ये है कि क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जादू उत्तराखंड में इस बार चला है। साल 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी पांचों सीटों पर जीत हासिल करने के अलावा साल 2017 के पिछले विधानसभा चुनाव में भी 70 विधान सभा सीटों में से 57 सीटों पर विजय हासिल करके इसका प्रमाण दे चुकी है। देखने वाली बात ये है कि भारतीय जनता पार्टी ने पिछली बार की तरह इस बार भी चुनाव डबल इंजन के स्लोगन के साथ लड़ा है। जैसा कि मालूम है बीते पांच सालों में केंद्र और राज्य में भारतीय जनता पार्टी  की सरकार होने से उत्तराखंड को केंद्र से एक लाख करोड़ से ज्यादा की विकास परियोजनाओं का तोहफा मिला जिन पर काम चल रहा है।

कांग्रेस की इस बार के चुनाव में सबसे बड़ी आशा ीााजपा नीत सरकार की पांच साल की एंटी इनकंबेंसी है। इसे हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन के मिथक से जोड़ते हुए पार्टी इस बार जीत का दावा कर रही है। कांग्रेस ने भाजपा की पांच साल की सरकार में तीन-तीन मुख्यमंत्री के मुद्दे को भुनाने की पुरजोर कोशिश करी है। इसके अलावा महंगाई और बेरोजगारी दो ऐसे बड़े मुद्दे हैं जिन पर कांग्रेस को आशा है कि वोटर बड़ी तादाद में मतदान केंद्रों तक पहुंचे। हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जिलों की कुल 20 सीटें हैं इन सीटों  में किसान आंदोलन के असर को भी कांग्रेस पार्टी अपने पक्ष में ही मानकर चल रही है और उसे ऐसा लग रहा है कि यह चुनाव परिणाम में भी दिखाई देगा। वोटिंग के दौरान मुस्लिम बहुल इलाकों व बस्तियों में मतदाताओं के उत्साह ने भी  कांग्रेस के मनोबल बढ़ाया है।

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