पहाड़ पर सपा की साइकिल का पहिया आज भी है जाम
देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड में चुनाव को लेकर तस्वीर पूरी तरह से साफ हो चुकी है। सभी प्रत्याशी अब मैदान में हैं। उत्तराखण्ड में फायर ब्रांड नेताओं की वर्चुअल रैली और डोर टू डोर कैंपेन तेज हो गए हैं। सभी राष्ट्रीय दलों के अलावा इस चुनाव में कई क्षेत्रीय दल भी अपनस दम-खम दिखा रहे हैं। फिलहाल हम बात कर रहे हैं समाजवादी पार्टी की तो आपको बता दें कि प्रदेश की 70 विधानसभा सीटों में 56 सीटों परसमाजवादी पार्टी चुनाव लड़ रही है जबकि छह अन्य सीटों पर पार्टी निर्दलियों को समर्थन दे रही है। नैनीताल के सपा जिलाध्यक्ष का कहना है कि उन सीटों पर निर्दलियों को सपोर्ट किया जा रहा है जिनका झुकाव पार्टी के पक्ष में है। समाजवादी पार्टी इस बार ‘‘नई हवा नई सपा’’ नारे के साथ कुछ अलग प्रदर्शन करने के लिए मैदान में उतरी है। आपको बता दें कि अलग राज्य बनने के बाद से अब तक चार विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी कोई खास प्रदर्शन नहीं कर सकी है। आज तक समाजवादी पार्टी का एक भी प्रत्याशी विधानसभा नहीं पहुंच सका है।
गौरतलब हे कि उत्तराखंड में दो दशक के सियासी सफर में अभी तक समाजवादी पार्टी का कोई खास जनाधार नहीं बन सका है। अब तक हुए चार विधानसभा चुनाव में सपा का एक भी विधायक विधानसभा नहीं पहुंच सका है। हां ये जरूर रहा कि राज्य गठन के बाद से 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में सपा का मत प्रतिशत कुछ ठीक था। तब पार्टी को कुल 7.89 फीसद वोट हासिल हुए थे और कई सीटों पर हार का अंतर भी काफी कम था। लेकिन उस चुनाव के बाद से पार्टी का प्रदर्शन प्रदेश में लगातार खराब होता चला गया। हालांकि 2004 के आम चुनाव में सपा कोटे से हरिद्वार सीट से राजेन्द्र बाडी सांसद चुने गए थे।
पहले चुनाव में जहां पार्टी को कुल 7.89 फीसद वोट मिले वहीं 2007 के चुनाव में समाजवादी पार्टी 42 सीटों पर चुनाव लड़ी और उनका मत प्रतिशत खिसकर 6.5 के करीब आ गया था। 2012 आते-आते सपा का ये ग्राफ नीचे गिरता चला गया और 1.5 फ़ीसदी पर आ गया। जबकि 2017 के चुनाव में उत्तर प्रदेश में हुए सपा के घमासान का असर उत्तराखंड में इस कदर देखने को मिला कि पार्टी 18 सीटों पर ही चुनाव लड़ पाई और मत प्रतिशत न के बराबर रह गया। अब इस चुनाव में सपा के सामने बेहतर प्रदर्शन की चुनौती है।
जाहिर है कि राज्य आंदोलन के दौरान रामपुर तिराहाकांड देशभर में सुर्खियों में रहा था। अलग राज्य की मांग को लेकर बस से दिल्ली जा रहे आंदोलनकारियों के साथ दो अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा में जो घटना हुई उसे याद कर राज्य आंदोलनकारी आज भी सिहर जाते हैं। उस दौरान पुलिस बल ने लाठी चार्ज कर महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को बेरहमी से पीटा था। बसों के शीशे तोड़ दिए गए थे। एक अक्टूबर की वह रात और दो अक्टूबर की सुबह दमन, बल प्रयोग और अमानवीय हदों को पार करने वाली साबित हुई थी। उस घटना में कई आंदालनकारियों की जान चली गई थी। महिलाओं के साथ भी अभद्रता हुई। उस वक्त संयुक्त प्रदेश में सपा की सरकार थी और मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे। उस घटना ने सपा के प्रति पहाड़ के लोगों में जो आक्रोश जागा वह आज तक कायम है। युवा नेतृत्व अखिलेश यादव के सामने उस दाग को धोने की चुनौती है। दूसरा कारण ये भी है कि प्रदेश में समाजवादी का कोई बड़ा चेहरा न होने की वजह से पार्टी आज तक कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर सकी।
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