दुनिया में जल युद्ध के बढ़ते आसार

 


सलीम रज़ा

 

हर हालात से निपटा जा सकता है लेकिन पानी के बगैर कोई भी जंग नहीं जीती जा सकती। पिछले काफी अरसे से भारत पानी की समस्या से जूझ रहा है। पानी की समस्या से निपटने के लिए भूगर्भीय वैज्ञानिक शेध में लगे हुये हैं। दिनो-दिन गिरते जल स्तर से सभी परेशान हैं फिर पानी की समस्या गर्मी आते-आते और भी विकराल हो जाती है।ये बात सर्वविदित है कि पानी न होता तो सृष्टि का निर्माण संभव नही था और वैसे भी पानी के वगैर जीवन की कल्पना कैसे की जा सकती है, क्योंकि आधारभूत पंचतत्वो में से पानी हमारे जीवन का आधार है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मिलता है कि जितनी भी बड़ी-बड़ी सभ्यताये इतिहास का साक्षी बनी सभी के विकास का बिन्दु नदी के तट ही रहे हैं,लिहाजा ये ही वजह है कि ईश्वर का ये अनमोल कुदरती तोहफा है जिसका कोई भी मोल नहीं है।

लेकिन आज पूरी दुनिया ईश्वर के इस अनमोल तोहफे को संरक्षित न कर पाने की वजह से संकट के मुहाने पर खड़ी है। आबादी के मद्देनजर पूरी दुनिया में भारत का स्थान दूसरे नम्बर पर आता है, जो पानी की समस्या से जूझ रहा है। सरकारों के साथ देश के तमाम एन.जी.ओ. पानी के संरक्षण के लिए देश की जनता को जागरूक भी करते चले आ रहे हैं, देश का बच्चा-बच्चा जल ही जीवन है के श्लोगन को रटे हुये है, लेकिन फिर भी ऐसे हालात क्यों पैदा हो रहे हैं। हमारे देश में पानी की समस्या शहरी क्षेत्र में तो है ही साथ ही गामीण क्षेत्रों भी हालात कुछ अच्छे नहीं हैं।

दरअसल आज जो पानी की समस्या हमारे देश में विकराल रूप ले चुकी है उसमें कहीं न कहीं तेजी के साथ बढ़ रही आबादी भी एक सबसे बड़ा कारण बनी है। भूगर्भीय जल का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल होने की वजह से भी जमीन के अन्दर पानी की कमी आई है , आज पानी की समस्या से जूझ रहे राज्यों में उत्तर प्रदेश, हरियाणा,पंजाब,तमिलनाडु ,गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और केरल ऐसे राज्य हैं जहां पानी की समस्या विकराल रूप ले चुकी है। ऐसे में हमें पानी की समस्या से निपटने के लिए पानी के संरक्षण और उसके संचय करने के उपायों पर ध्यान देना होगा, पानी के संकट से उबरने के जिए हमें ही नहीं वल्कि अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को भी आवश्यक पहल करनी होगी।

आज जब वैज्ञानिक मंगल ग्रह पर पानी की रिसर्च में लगे हुये हैं ऐसे में भारत के साथ-साथ अन्य विकासशील देश पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। दुनिया की तकरीबन 70 फीसद भाग पानी से भरा हुआ है लेकिन फिर भी लोगों को पीने का पानी शुद्ध उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि हम पानी के संरक्षण के प्रति उदासीन नहीं दिख रहे इसीलिए हम पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। आलम ये है कि पानी की मिठास मात्र 3 फीसद ही रह गई उसमें भी 1 फीसद पानी ही पीने लायक होता है। हम लोग अपने दैनिक जीवन में ऐसी-ऐसी भूल करते हैं कि हमें ये पता ही नहीं चलता कि आने वाले वक्त में हम किस परेशानी में पड़ सकते हैं।

मसलन हम वारिश के पानी को संचय करने में दिलचस्पी नहीं दिखाते तो वही ंप्राकृतिक स्त्रोतों से भी खिलवाड़ करते हैं। आज आप देखिये कि ग्रामीण क्षेत्रों में दूर-दूर तक कुओं का नामोनिशान नहीं है, तो वहीं तालाबों को पाटकर भी हमने उस पर इमारतें खड़ी कर दी जिसकी वजह से वारिश का पानी नालियों के जरिये बह जाता है, वहीं हम नदियों को भी प्रदूषित कर रहे हैं पानी के प्रदूषित होने की वजह से पानी में आर्सेनिक की मात्रा बढ़ रही है जिससे इंसानी जीवन पर खतरा मंडराने लगा है। उत्तर प्रदेश में एक सर्वे में पाया गया कि राज्य के 30 से ज्यादा जिले ऐसे हैं जहां पानी में आर्सेनिक की मात्रा ज्यादा है। अतिसंवेदनशील 20 ऐसे जिले चिन्हित किये गये जिनमें पानी के अन्दर पाये जाने वाले आर्सेनिक की जरूरी मा़त्रा 0.05 माईक्रोग्राम से ज्यादा है।अगर हम विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानको को देखें तो पानी में आर्सेनिक की मात्रा प्रति लीटर 0.05 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए, लेकिन रिसर्च में इस बात का खुलासा हुआ कि इन जिलों में 100-150 पार्ट प्रति विलियन आर्सेनिक पानी में पाया गया है।

बिहार में भी लोग आर्सेनिक युक्त जहरीला पानी पीने को मजबूर है। आर्सेनिक युक्त पानी पीने से आंत,लीवर,गैंग्रेन,और मूत्राशय में कैंसर जैसी जीवन को समाप्त करने वाली बीमारियां अपने पांव पसार रही हैं। जब पीने के पानी का संकट गहराता जायेगा तो संभवतः मुमकिन है कि दुनिया के अन्दर पानी की त्राहिमाम से जल युद्ध के बादल न मंडराने लगें।

अगर ऐसे ही हालात और बद से बदत्तर हुये तो अन्दाजा लगाया जा रहा है कि अगला विश्व युव्द्ध पानी को लेकर हो सकता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक पानी की समस्या को लेकर भारत सबसे ज्यादा फिक्रमंद है वैसे भी पानी को लेकर युद्ध जैसे हालात बन ही रहे हैं, कई देशों में पानी को लेकर तनातनी है तो वहीं भारत में भी पानी के बटबारे का विवाद दिल्ली-हरियाणा, पंजाब-हरियाणा और तमिलनाडु-कर्नाटक के बीच हमेशा बना रहता है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पानी के बटबारे को लेकर भारत का चीन, पाकिस्तान और बंगलादेश से हमेशा विवाद छिड़ा ही रहता है। भारत के अन्दर पानी बटबारे को लेकर हाल इतना बुरा है कि सरकारे आपस में ही युद्ध जैसे हालात बना देती है।

इसके वावजूद राष्ट्रीय राजधानी समेत अनेक राज्यों में पानी की किल्लत सबसे बड़ा मुद्दा है इससे निपटने के लिए सरकार तमाम तरह की योजनाओं के जरिए करोड़ों रूपये का बजट हर साल दे रही है वहीं इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले समय में पानी अन्तर्राष्ट्रीय विवाद बन सकता है रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में पानी को लेकर संघर्ष हो सकता है जिसे जल युद्ध अगर कहें तो शायद कोई गल्ती नहीं होगी। क्योंकि जल युद्ध के लिए निशानदेही हो चुकी पांच बड़ी नदियां ही कारण बन सकती हैं। क्योकि इन पांच नदियों में तीन नदियां तो भारत में ही हैं जिो पानी बंटबारे में अन्तर्रराष्ट्रीय दखल रखती हैं।

बहरहाल कहना ये है कि बढ़ते जलवायु परिवर्तन और जनसंख्या दवाब तो बड़ा कारण है ही लेकिन पानी को संरक्षित और उसके संचय पर भी अपना ध्यान रखना होगा। प्राकृतिक संसाधनों पर ज्यादा निर्भर रहते हुएभूगर्भीय जल दोहन से बचना होगा, तो वहीं पानी के आत्यधिक खर्च को रोककर पानी का संरक्षित किया जा सकता है। साथ ही कृषि के लिए भी ऐसे बीतों का इस्तेमाल करें जिनमें पानी की अधिकता न हो और बीज भी उन्नत किस्म के हो जिससे पैदावार भी प्रभावित न हो। लेकिन संयुक्त अनुसन्धान केन्द्र की रिपोर्ट तो ये ही बतलाती है कि जलवायु परिवर्तन के चलते दुर्लभ प्राकृतिक संसाधनों की होड़ में क्षेत्रीस अस्थिरता और सामाजिक अशांति के आसार प्रबल बन रहे हैं। शोधकर्ताओं की माने तो जो हालात पानी को लेकर तमाम दुनिया में पैदा हो रहे हैं तो उसमें कोई दो राय नहीं कि एक सदी के अन्दर पानी को लेकर जल विश्व युद्ध जैसे हालात पैदा हो जायेंगे।

 

देहरादून,उत्तराखण्ड

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