सियासत में धार्मिक बंदिशे संगठनात्मक कट्टरपंथ को बढ़ावा









सलीम रज़ा


सियासत और धार्मिक बंदिश एक ऐसा ट्रेण्ड चल पड़ा है जो अपने विकृत सवरूप तक पहुंच गया है। हर किसी व्यक्ति को अपने मताधिकार और मनपसंद सियासी पार्टी को चुनने का अधिकार है जो भारत के संविधान में निहित है फिर तरह-तरह के वाक्यात सामने आते हैं जो मन को बहुत पीड़ित करते हैं। राजनीति और धर्म दोनों ही हर वर्ग के लोगों को प्रभावित करने वाले विषय हैं जो कभी भी एक दूसरे से जुदा नहीं हो सकते लेकिन हम सबको राजनीति की दशा और दिशा के बारे में अपनी सोच बदलने की असद जरूरत है। महात्मा गांधी ने कहा था राजनीति ने हमें सांप की कुंडली की तरह जकड़ रखा है लिहाजा इससे जूझने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। खैर ये तो अपना-अपना नजरिया है लेकिन किसी के मौलिक अधिकारों का हनन करना या उसके मौलिक अधिकारों की सवतंत्रता छीनना भी जघन्य अपराध की श्रेणी में आता है। आपको बता दें हमारे देश में यदि कोई सबसे बड़े उत्सव की तरह मनाया जाने वाला चुनावी त्योहार है लेकिन आज के परिवेश में सियासत के पैरोकारों ने धर्म के नाम पर इमोशन के साथ खेलने का अच्दा फंडा निकाल रखा है और हर सियासी पार्टी इसी का अनुसरण करने पर लगी हैं। अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में एक मुस्लिम परिवार का बेटा बाबर जो भारतीय जनता पार्टी की जीत पर खुशियां मना रहा था उसे मार दिया गया आखिर क्यों ऐसा ही एक वाक्या और आया है जिला बदायूं के लक्ष्मिपुर गांव से जहां शाहरूख नाम के एक युवक ने भारतीय जनता पार्टी की जीत का  जश्न मनाना भारी पड़ा। शाहरूख को गांव के दबंगो ने मारा भी और उससे इस बात की हिदायत भी दी कि वो भाजपा से अलग हो जायें भाई ऐसा क्यों । आप भाजपा को न्दिुत्व की पार्टी बताते हैं ये आपकी संकीर्ण मानसिकता का परिचय है। आप अपने गांव में किसी हिन्दु व्यक्ति के शादी समारोह और अन्य धार्मिक आयोजनों में शरीक होते हैं तो क्यों सिर्फ सियासत में ही क्यों। सरकार को चलाने वाले धार्मिक हो सकते हैं लेकिन सरकार धार्मिक हो ही नहीं सकती उसे हर धर्म हर वर्ग के लोगों का बराबर ख्याल रखना भी राजनीति धर्म है फिर ये आजादी हमें क्यों नहीं । बहरहाल इस मामले में स्थानीय मौलाना मुफ्ती वसीम अशरफ साहब ने टविट किया था जिसमें उन्होंने कहा है कोई किसी भी राजनीतिक दल को समर्थन करे इसकी अनुमति देश का संविधान और कानून देता है राजनीतिक वहिष्कार के फतवे असहनीय हैं। मैं मुफ्ती साहब की राय से इत्तेफाक रखता हूं । लेकिन बावजूद इसके धार्मिक कट्टरपंथ की इन्तेहा हो गई इसका भी एक उदाहरण निदा खान हैं जो सुर्खियों में हैं। बहरहाल सब कुछ देखने और सुनने के बाद मैं इस बात पर पहुंचा आज के राजनेता जो सत्ता पर कायम हैं उन्होंने राजनीति का धर्म और सिद्धान्त भुलाकर धर्म की राजनीति करके सत्ता पर काबिज हैं ये विष भी इसी रास्ते से निकलकर लोगों की रगों तक पहुंचा इसमें किसी का दोष नहीं है बहरहाल प्रशासन को सजग होकरऐसे लोगों के खिलाफ सख्त एक्शन लेना चाहिए जो सियासत की आड़ में धार्मिक सौहार्द और आपसी भाईचारे को नष्ट करने पर लगे हैं। 

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