आलेख _ सुंदरता



                                                                    प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"
                                                               

सुंदर हर कोई है पर मनुष्य जाति का दिमाग इतना करप्ट हो चुका है कि वह सुंदरता को केवल एक ही चुने हुए नजरिये से देखता है, पर सच यह भी है कि सुंदरता के ये मापदंड वास्तव में पेट्रियारकी या मेल या फीमेल गेज से नही बने हैं, जिन्हें हम ब्यूटी ट्रेट्स कहते हैं वे रिप्रोडक्शन के लिए दूसरे जेंडर को आकर्षित करने के लिए हैं बस, लड़कियां भी किसी मरियल और बीमार से दिखने वाले पुरुष को नही पसन्द करेंगी, दरसल जिसे सुंदरता के आधार पर चुनना बोलते हैं तो वो पसन्द आपकी नही होती है, ये बस प्रकृति आपके माध्यम से अपना काम करवा रही होती है कि आप मेटिंग के लिए एक ऐसा साथी चुनें जो स्वस्थ हो और प्रजनन के लिए उपयुक्त हो, जिससे आपकी प्रजाति विलुप्त न हो जाए, अब किसी महिला के सौंदर्य-आकर्षण में कमी है -- और शारीरिक रूप से उसकी प्रतीति अलग है तो इसमें बस उसकी जेनेटिक्स या हार्मोन्स के थोड़े इधर उधर होने का सवाल है, इससे ज्यादा कुछ नही, आत्मसम्मान, या खुशी से इसका कोई लेना देना नही है, हो सकता है ऐसी महिला प्रजनन के लिए अधिक उपयुक्त न भी हो पर यही अब कुछ नही है, सब पीटी ऊषा जैसे तेज दौड़ने के लउपयुक्त नही होते या सबका दिमाग शकुंतला देवी जितना नही चलता, तो ?


तो ये सारे सौंदर्य चिन्ह बस स्वास्थ्य और प्रजनन इन्ही दो चीजों के आसपास घूमते हैं, मतलब ये सब बाहरी पसन्द ना पसन्द किसी ने अपने मन से नही बनाये हैं, ये बस शारीरिक चेतना का हिस्सा है, इससे बाहर आना है तो अपनी चेतना के स्तर को शरीर से ऊपर उठाना होगा क्योंकि लोग शरीर के अलावा भी बहुत कुछ होते हैं और मानव जीवन में प्रजनन से महत्वपूर्ण और भी काम हैं, फिर अगर हमें भी उनकी तरह किसी को शारीरिक दिखावे के आधार पर पसन्द या नापसन्द करना है तो फिर इनसान होने का क्या मतलब ? 

पर ये सब खुद को जानने की जरूरत है फिर इस बात से फर्क नही पड़ना चाहिए कि कोई आपके बारे में क्या सोचता है, सारी कॉस्मेटिक और फैशन इंडस्ट्री बस इसी बात पर टिकी है कि आप ये सुनिश्चित कर सको की आप दूसरों से अच्छे दिखो, पर नजर जब तक दूसरों पर बनी रहेगी कोई सुखी हो ही नही सकता, हमें क्यों जानना है कि लोग कॉन्फिडेंट, लविंग और टेलेंटेड लोगों को ढूढ रहे हैं, दरसल कोई कुछ नही ढूढ रहा है बल्कि सब खुद को ढूढे जाने लायक बनना चाहते हैं और वैसा हो जाना चाहते हैं जैसा दूसरे उन्हें देखना पसंद करते हैं, सब मुझ पर ध्यान दें, ये बस अहंकार की मांग है, इससे पुरुष और स्त्री सब पीड़ित हैं, तो नजर दूसरों से हट कर खुद पर ठहर जाना, यही तृप्ति है, जब यह ठहरेगी तो पता लगेगा कि हम शरीर से परे भी बहुत कुछ हैं, इस तरह की चीज़ों पर चर्चा होनी चाहिए और सच बाहर आना चाहिए क्योंकि ये मुद्दे इंसानियत के एक बड़े हिस्से की खुशी या दुख का निर्धारण करते हैं, इतनी जरा सी जिंदगी में अपनी खुशी की चाभी दूसरों के हाथों में सौंपना, ये अक्लमंदी नहीं है।।
_______________________________


युवा लेखक/स्तंभकार/साहित्यकार
लखनऊ, उत्तर प्रदेश

टिप्पणियाँ