आलेख _ सुंदरता
प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"
तो ये सारे सौंदर्य चिन्ह बस स्वास्थ्य और प्रजनन इन्ही दो चीजों के आसपास घूमते हैं, मतलब ये सब बाहरी पसन्द ना पसन्द किसी ने अपने मन से नही बनाये हैं, ये बस शारीरिक चेतना का हिस्सा है, इससे बाहर आना है तो अपनी चेतना के स्तर को शरीर से ऊपर उठाना होगा क्योंकि लोग शरीर के अलावा भी बहुत कुछ होते हैं और मानव जीवन में प्रजनन से महत्वपूर्ण और भी काम हैं, फिर अगर हमें भी उनकी तरह किसी को शारीरिक दिखावे के आधार पर पसन्द या नापसन्द करना है तो फिर इनसान होने का क्या मतलब ?
पर ये सब खुद को जानने की जरूरत है फिर इस बात से फर्क नही पड़ना चाहिए कि कोई आपके बारे में क्या सोचता है, सारी कॉस्मेटिक और फैशन इंडस्ट्री बस इसी बात पर टिकी है कि आप ये सुनिश्चित कर सको की आप दूसरों से अच्छे दिखो, पर नजर जब तक दूसरों पर बनी रहेगी कोई सुखी हो ही नही सकता, हमें क्यों जानना है कि लोग कॉन्फिडेंट, लविंग और टेलेंटेड लोगों को ढूढ रहे हैं, दरसल कोई कुछ नही ढूढ रहा है बल्कि सब खुद को ढूढे जाने लायक बनना चाहते हैं और वैसा हो जाना चाहते हैं जैसा दूसरे उन्हें देखना पसंद करते हैं, सब मुझ पर ध्यान दें, ये बस अहंकार की मांग है, इससे पुरुष और स्त्री सब पीड़ित हैं, तो नजर दूसरों से हट कर खुद पर ठहर जाना, यही तृप्ति है, जब यह ठहरेगी तो पता लगेगा कि हम शरीर से परे भी बहुत कुछ हैं, इस तरह की चीज़ों पर चर्चा होनी चाहिए और सच बाहर आना चाहिए क्योंकि ये मुद्दे इंसानियत के एक बड़े हिस्से की खुशी या दुख का निर्धारण करते हैं, इतनी जरा सी जिंदगी में अपनी खुशी की चाभी दूसरों के हाथों में सौंपना, ये अक्लमंदी नहीं है।।
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युवा लेखक/स्तंभकार/साहित्यकार
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
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