धामी के तूफान में तिनके की तरह बिखर गये दल
सलीम रज़ा
उत्तराखण्ड के युवा सीएम धामी की कार्यशैली उनके समर्पण भाव,शालीन व्यवहार और मृदुभाषिता के अलावा उनके काम करने की क्षमता पर अब शायद ही कोई शको सुवह रहा होगा। भले ही विधान सभा के आम चुनाव में उन्हें अपने गृह क्षेत्र खटीमा में हार का मुह देखना पड़ा हो लेकिन जिस तरह से चंपावत उपचुनाव में वहां की जनता ने धामी को जो प्यार दिया उस पर उन्हें खरा उतरना पड़ेगा। ऐसा न हो कि पिछले मुख्यमंत्रियों की तरह वो भी इस क्षेत्र से अपना मुह मोड़ लें।
बहरहाल पुष्कर सिंह घामी ने न सिर्फ भारी मत हासिल किये वल्कि अब तक मुख्यमंत्रियों के उपचुनाव के मुकाबले सारे रिकार्ड तोड़ते हुये ऐतिहासिक जीत भी दर्ज की है। दरअसल धामी को जीत का सेहरा पहनाने वाले कैलाश गहतोड़ी को भी नजरअन्दाज नहीं करना चाहिए वरना धामी अपनी हार को जीत में बदलने की जादूगरी से चूक सकते थे। अब सवाल ये उठता है कि भले ही पुष्कर धामी चुपावत की जीत के जश्न में आकंठ डूबे हों लेकिन खटीमा की टीस तो उन्हें अपने कार्यकाल के अंत तक सालती ही रहेगी।
वहीं एक सवाल ये भी उठता है कि अपने गृहनगर की जनता से नकारे गये धामी उनके दिलों में अब किस तरह से अपनी जगह बना पाते हैं। ऐसे में उनके कंधों पर एक नहीं वल्कि दो-दो विधानसभाओं की देखरेख का भार आने वाला है। बहरहाल पुष्कर सिंह धामी की कार्य करने की क्षमता पर कोई संदेह नहीं क्योंकि वो ऐसे गुरू के शिष्य हैं जिनकी राजनीति के साथ संघ में भी खासी पकड़ है। हालांकि इस उपचुनाव का परिणाम क्या होगा ये तो सर्व विदित था ही लेकिन ऐसा चमत्कारित होगी ऐसा तो अनुमान नहीं था।
ऐसा जादुई परिणाम जहां पर मुख्य विपक्षी दल को अपनी जमानत भी नहीं बचा मिली। यहां एक सवाल खड़ा होता है कि क्या कांग्रेस सही मायनों में तेजी के साथ हाशिये की तरफ बढ़ रही है इसके पीछे मंथन करने की जरूरत है। मंथन भी उसका होता है जिस पार्टी का वजूद हो यहां तो पार्टी के वजूद पर ही करारा प्रहार है। अब ये लगभग तयशुदा माना जा सकता है कि धीरे-धीरे प्रदेशों से कांग्रेस की विदाई हो रही है उसे देखकर तो लगता है कि भाजपा का कांग्रेस मुक्त सपना साकार होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा । एक बार पुनः धामी जी को ऐतिहासिक जीत हासिल करने पर बधाई के साथ सफल कार्यकाल के लिए अग्रिम शुभकामनाऐं।
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