कहानी : श्राद्ध

 



सलीम रज़ा //

अपने पति की मृत्यु के बाद सरस्वती ने अपने एक मात्र पुत्र अमित के पालन-पोषण में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। पति की पेंशन पर्याप्त न होने की वजह से सरस्वती ने एक फैक्ट्री में काम करना शुरू कर दिया था। ज्यों-ज्यों अमित बड़े क्लास में आता गया, सरस्वती ने सारे गैर ज़रूरी खर्चे सीमित कर दिये थे। लेकिन सरस्वती ने अमित की पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दी। सरस्वती के पति का सपना था कि वो अपने बेटे को पढ़ा-लिखा कर डाॅक्टर बनायेंगे।

अपने पति की अन्तिम इच्छा को ध्यान में रखते हुये सरस्वती ने अमित को एम.बी.बी.एस कराया। अमित शहर के प्रसिद्ध अस्पताल में त्वचा रोग विशेषज्ञ हो गया और अच्छा पैकेज मिलने लगा। इसलिए सरस्वती के सिर से बोझ कम हो गया। अमित का सपना साकार करने में सरस्वती 55 साल की आयु पार कर चुकी थी। चेहरे पर झुर्रियां, आंखों के नीचे डार्क सर्कल, गालों पर झाईयों की वजह से सरस्वती समय से पहले ही बूढ़ी नज़र आने लगी थी।

अब तो उसकी सांस भी फूलने लगी थी। अपनी हालत को देखकर उसने अमित से कहा, ‘‘बेटा अब मुझसे घर का काम-काज नहीं होता, क्यों न तेरी शादी करके बहू घर में ले आयें। मेरी भी जिम्मेदारी कम हो जायेगी।’’ अमित ने हिम्मत करके मां से कहा, ‘‘मां वो……. वो।’’ सरस्वती ने बीच में टोकते हुए कहा, ‘‘बचपन में तो तू हर बात एक बार ही में बतला देता था। लेकिन अब तू इतनी देर क्यों लगाता है। बता न क्या बात है।’’

अमित ने शरमाते हुये कहा, ‘‘मां मेरे साथ ही अंजली है, जो मेरे अस्पताल में स्त्री रोग विशेषज्ञ है। हम दोनों ने डाॅक्टरी साथ-साथ पढ़ी है, हम दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं। तुम अगर हां कर दो तो…।’ सरस्वती बोली, ‘‘अमित मैंने शायद ही तेरी ऐसी कोई बात होगी जो मानी न होे। जिसमें तेरी खुशी, उसमें मेरी खुशी।’’ इस तरह से अमित और अंजली एक बन्धन में बंध गये। अंजली व्यवहार की अच्छी तो थी लेकिन तीखे और मार्डन स्वभाव की थी।

कई बार ऐसा भी हुआ कि अंजली ने सरस्वती को कड़वा बोल दिया था। इसलिए सरस्वती ने भी अपने दायरे सीमित कर दिये। बहू बेटे दोनों डाॅक्टर होने की वजह से घर के रंग-ढ़ंग बदल गये। शाम होने के साथ शहर के बड़े लोगों का आना-जाना लगा रहता। सरस्वती को ऐसा लगा कि अंजली को उसकी मौजूदगी अच्छी नहीं लगती। एक दिन अंजली ने कह ही दिया, ‘‘मां जी आप पीछे वाले कमरे में शिफ्ट हो जाइये। रोज घर में लोगों का आना-जाना लगा रहता है, मुझे अच्छा नहीं लगता।

सरस्वती के दिल पर मानो वज्रपात गिर गया हो, उसकी आंखों में आंसू आ गये थे। अपने आंसुओं पर काबू पाती हुई सरस्वती ने हां में सिर हिला दिया। शाम को नौकर ने सरस्वती का पलंग और सामान घर के सबसे पीछे वाले कमरे में डाल दिया। वहीं पर सरस्वती को नौकर खाना दे जाता। वक्त ने ऐसी करवट ली कि डाईनिंग टेबल की हेड आॅफ द फैमली सीट जीते जी सरस्वती की जगह अमित ने ले ली। पूरी रात सरस्वती को नींद नहीं आई। उसके दिल में बार-बार एक ही ख्याल आ रहा था कि एक बार भी उनके जिगर के टुकड़े ने अपनी पत्नी के फैसले पर नाराज़गी नहीं जताई।

क्या मेरे बेटे की इस में मर्जी थी। फिर न जाने कब उसकी अंख लग गई। आंख लगते ही सरस्वती को ऐसा लगा कि स्वप्न में उसके पति कह रहे थे, ‘‘सत्तो दुखी मत हो तुमने एक पत्नी का धर्म निभाया है। तुमने उन सपनों को पूरा कर दिखाया, जिन्हें पूरा करने का ख्वाव मैने सजाया था। इस नश्वर शरीर ने मेरा साथ नहीं दिया लेकिन तुमने मेरी आत्मा को जरूर सुख पहुंचाया है। बस तुमसे एक गिला ज़रूर है। मेरे स्वर्गवासी होने के बाद इतनी कठिन परिस्थितियों में रहते हुये भी कभी तुम मेरा श्राद्व करना नहीं भूली थीं। लेकिन अब कई सालों से देख रहा हूं कि तुम मेरा श्राद्ध करना ही भूल गई।’’

सरस्वती की आंख अचानक खुल गई, उसे भी याद थी ये बात, वो अपने पति को कैसे बताती। मैं श्राद्ध के लिये हर साल बहू-बेटे से बोलती हूं। मगर उन लोगों को याद नहीं रहता या फिर उनकी दिलचस्पी नहीं, वो नहीं बता सकती। लेकिन अब उसके हाथ में कुछ भी तो नहीं है। इसी कश्मकश में रात कट गई। आज उसका खाने का भी दिल नहीं हो रहा था। जैसे-तैसे शाम हुई, सरस्वती अपने कमरे में न जाकर ड्रांईगरूम में बैठ गई। देर रात दरवाजे से उसे अमित और अंजली के साथ कई महिलाओं के हंसने की आवाज आई। वो अभी सोफे से उठ ही रही थी कि अमित अन्दर दाखिल हुआ।

मां को देखकर उसके पास आकर बोला, ‘‘क्या बात है।’’ सरस्वती अमित को लेकर अपने कमरे की तरफ चल दी। कमरे में जाकर बोली, ‘‘बेटा सपने में तेरे पिताजी कह रहे थे कि सत्तो तुम कई सालों से मेरा श्राद्ध नहीं कर रही हो। बेटा तुझे याद है कि पहले मैं तेरे पिताजी का श्राद्ध कैसे मनाती थी। तू ही तो 21 ब्राह्मणों को बुलाकर लाता था, तरह-तरह के खानों के साथ मैं सभी को कपड़े दिया करती थी।’’ सरस्वती अभी अमित से बात कर ही रही थी कि अंजली अन्दर आ गई। मां-बेटे की गुफ्तगू देखकर अंजली को गुस्सा आ गया।

वो जैसे आई थी, वैसे ही वापस चली गई। लेकिन जाते-जाते अमित को बाहर आओ कहना न भूली। रात को सरस्वती ने खाना भी थोड़ा सा ही खाया था। रात को अपने बैडरूम में जाकर अंजली ने अमित से पूछा, ‘‘तुम्हारी मां क्या कह रही थी।’’ अमित ने बताया, ‘‘मां कल पिताजी का श्राद्ध करने के लिए कह रही थी।’’ अंजली ने बीच में बोलते हुये कहा, ‘‘फुलिश वुमैन क्या रखा है इन सब बातों में। सोसायटी में अपना मज़ाक बनबाओ। अमित तुम भी न अपनी दकियानूसी मां की तरह हो, आजकल कौन इन ढकोसलों को मानता है।

हम अपने स्टेटस से हटकर कोई काम नहीं होने देंगे।’’ सरस्वती अंजली को अपने बेटे को सख्ती से बुलाने के आदेश से ही घबरा गई थी। कहीं दोनों पति-पत्नी आपस में तू-तू मैं-मैं न कर रहे हों। इस लिहाज से कमरे के दरवाजे से लगकर अपने बहू-बेटे की बात सुन रही थी। अमित अपनी पत्नी की बात सुनकर बोला, ‘‘अंजली ठीक है लेकिन मां का दिल रख लेते हैं, उनसे हां करने में क्या जा रहा है। करना न करना तो हमारे हाथ में है।’’

अपने जिगर के टुकड़े को अपने बारे में ऐसी बात सुनकर यकीन तो नहीं हो रहा था लेकिन कानों को झुठलाया भी नही जा सकता। दिल पर लगे सदमे को शायद सरस्वती सह न सकी, उसको ऐसा लगने लगा कि अब उसके पैरों में दम नहीं रहा। धीरे-धीरे सरस्वती दरवाजे की तरफ दीवार से लगकर अचेत हो गई। सुबह फोन काल के साथ अंजली की आंख खुली।

बात करते-करते दरवाजा खोला तो अपनी सास को दीवार से लगा देखकर बोली, ‘‘अमित उठो तो, देखो तुम्हारी मां पति के श्राद्ध के लिए हां करवाने के इन्तज़ार में दरवाजे पर धरना दिये बैठी हैं।’’ अमित चैंक कर उठा और कन्धे पर हाथ रखते हुये बोला, ’’मां…. मां….।’’ जैसे ही अमित ने कन्धा पकड़कर झिंझोड़ा ये क्या मां का निर्जीव शरीर उसके हाथों में आ गया। जो न जाने किस वक्त रात में अपनी रूह परवाज़ कर के स्वर्ग लोक अपने पति के पास चली गईं थी। शायद अपने पति का श्राद्ध न कर पाने का गम सरस्वती सह न सकी।

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