ग्रीन हाइड्रोजन और इलेक्ट्रोलाइज़र का एक प्रमुख निर्यातक बन सकता है भारत 

 


जी20 शेरपा, श्री अमिताभ कांत के अनुसार, दो मुख्य समस्याएं हैं जो बड़े पैमाने पर ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करना और इसकी लागत को कम करना कठिन बनाती हैं। पहली समस्या है कि लंबी अवधि के ऋण देने में सहायता के लिए पर्याप्त नए वित्तीय उपकरण नहीं हैं। और दूसरी समस्या है कि फ्री ट्रेड के लिए तमाम बाधाएँ हैं। इन मुद्दों को हल करने से मुश्किल-से-बदलने वाले उद्योगों को डीकार्बोनाइज करने में मदद मिलेगी।  
 
नई दिल्ली में हुए 22वें वर्ल्ड सस्टेनेबल डेव्लपमेंट समिट (डब्ल्यूएसडीएस) के दौरान अपने वक्तव्य में अमिताभ कांत ने कहा, "अगर हम कार्बन एमिशन को कम करना चाहते हैं, तो हमें उन उद्योगों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जहां व्यवस्था को बदलना कठिन है। ऐसा करने के लिए, हमें पानी जैसे ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करने की आवश्यकता है, जिसका उपयोग इलेक्ट्रोलाइज़र की मदद से ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए किया जा सकता है। भारत में न सिर्फ एक अच्छी जलवायु है, बल्कि कुशल उद्यमी भी हैं जो कम लागत पर ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन कर सकते हैं। इससे भारत ग्रीन हाइड्रोजन और इलेक्ट्रोलाइज़र का एक प्रमुख निर्यातक बन सकता है।  
 
अमिताभ कांत ने जलवायु परिवर्तन का समाधान खोजने में जी20 के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि, “इस समूह में विश्व की अर्थव्यवस्था, निर्यात और एमिशन का एक बड़ा हिस्सा है”। उन्होंने सुझाव दिया कि ग्रीन ट्रांज़िशन को सक्षम करने के लिए मिश्रित वित्त और ऋण वृद्धि जैसे नए उपकरण आवश्यक हैं। दीर्घकालिक वित्तपोषण के लिए वित्तीय एजेंसियों के लिए सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) और जलवायु वित्त दोनों का वित्तपोषण करना महत्वपूर्ण है। उन्होंने सुझाव दिया कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं, जो प्रत्यक्ष रूप से उधार देती हैं, को लंबी अवधि के लिए अप्रत्यक्ष वित्तपोषण के लिए एजेंसियां बनना चाहिए। जी20 शेरपा ने यह भी बताया कि बड़े पैमाने पर ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए फ्री ट्रेड बेहद ज़रूरी है। 
 
अमिताभ कांत ने उल्लेख किया कि किसी भी हरित विकास समझौते के लिए खपत पैटर्न, व्यक्तिगत और सामुदायिक कार्यों और दीर्घकालिक वित्तपोषण के संबंध में व्यवहार में महत्वपूर्ण बदलाव की आवश्यकता होती है। उन्होंने वित्त के प्रवाह को सुविधाजनक बनाने के लिए संस्थानों के पुनर्गठन की आवश्यकता पर भी बल दिया।  आगे, कनाडा के पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री स्टीवन गुइलबौल्ट ने नीली अर्थव्यवस्था, संसाधन दक्षता और पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली पर भारत के जी20 फोकस के लिए कनाडा का समर्थन व्यक्त करते हुए इस बात कि इच्छा जताई कि कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क में उल्लिखित 2030 के लिए वैश्विक 30% संरक्षण लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में G20 विशिष्ट कार्रवाई करेगा। 
 
स्टीवन गुइलबौल्ट ने प्लास्टिक प्रदूषण के वैश्विक समाधान खोजने के लिए जी20 के महत्व पर जोर दिया और प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय समझौते की दिशा में जी20 भागीदारों के साथ काम करने के अवसर का स्वागत किया। उन्होंने बताया कि “G20 देश ऊर्जा से संबंधित CO2 उत्सर्जन के एक महत्वपूर्ण हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं, लेकिन वैश्विक रिन्यूबल ऊर्जा क्षमता का एक बड़ा हिस्सा भी रखते हैं। इसलिए, G20 दुनिया को अपने जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने में मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।”  
 
जापान के वैश्विक पर्यावरण मामलों के उप-मंत्री श्री हिरोशी ओनो ने आशा व्यक्त की कि भारत और जापान सहयोगात्मक तरीके से जी7 और जी20 दोनों को आगे बढ़ाने के लिए सहयोग और सहयोग करेंगे क्योंकि दोनों देश एक साथ इन संगठनों की अध्यक्षता करते हैं। 
वहीं माइकल आर ब्लूमबर्ग, जलवायु महत्वाकांक्षा और समाधान पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत, और ब्लूमबर्ग एलपी, ब्लूमबर्ग फिलेन्थ्रोपीज़ के संस्थापक, भारत की जी20 अध्यक्षता को दूसरों के लिए एक उदाहरण स्थापित करने के एक महान अवसर के रूप में देखते हैं। उन्होंने स्वच्छ ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए भारत के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों की प्रशंसा की और कहा कि देश उन प्रतिबद्धताओं को कार्रवाई में बदलने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है।
 
श्री ब्लूमबर्ग ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन और आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन जैसी पहलों के माध्यम से भारत के प्रयासों की भी सराहना की, जो देशों को सहयोग करने और विचारों को साझा करने में मदद करते हैं।  उन्होंने आगे इस बात पर प्रकाश डाला कि भारतीय व्यवसाय उत्सर्जन में कटौती करने और अधिक हरित निवेश पूंजी को आकर्षित करने के लिए सरकारी नेताओं के साथ काम करने के लिए नए तरीके खोज रहे हैं। भारत में ब्राजील के राजदूत श्री आंद्रे कोरिया डो लागो ने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का समाधान करना मुख्य रूप से अर्थशास्त्र, वित्त और ऊर्जा उत्सर्जन का मुद्दा है। उन्होंने आगे बताया कि भारत अपनी जी20 अध्यक्षता के दौरान अंतर्राष्ट्रीय जैव ईंधन गठबंधन शुरू करेगा, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए स्थायी समाधान खोजने की देश की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। 
 
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के महानिदेशक डॉ. ब्रूनो ओबरले ने जलवायु वित्त के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होने कहा कि, “हमें वैश्विक जीडीपी का लगभग 2-3%, जो सालाना 2-4 ट्रिलियन डॉलर के बीच है, चाहिए एक गैर टिकाऊ निवेश के रास्ते से टिकाऊ निवेश के रास्ते पर आने के लिए।”  इस बीच, डीकिन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर इयान मार्टिन ने जी20 द्वारा निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए विश्वविद्यालयों, सरकारों और उद्योगों के बीच बौद्धिक पुलों के निर्माण के महत्व पर जोर दिया। 
 
शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में अपने भाषण के दौरान, कोलंबिया विश्वविद्यालय के अर्थ इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर जेफरी डी सैक्स ने इस वर्ष भारत की जी20 अध्यक्षता के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि वास्तविक दुनिया का प्रतिनिधित्व करने वाले देश लगातार चार वर्षों तक जी20 की अध्यक्षता करेंगे। यह चार हैं इंडोनेशिया, भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका। उन्होंने कहा कि यह चार देश जलवायु परिवर्तन की दशा और दिशा बदल सकते हैं। उन्होनें इस बात पर प्रकाश डाला कि ब्रिक्स देशों की अर्थव्यवस्थाएं अब जी7 की तुलना में बड़ी हैं और इस वजह से भारत से परिवर्तन लाने की अपनी शक्ति को समझने का आग्रह किया।  
 

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