अब इंसान खाएगा दूसरा इंसान! जिंदा हो गया है जॉम्बी वायरस
अजब-गजब:आपने जॉम्बी को सिनेमा में देखा होगा। इन फिल्मों में जॉम्बी वायरस की चपेट में आने से लोग दूसरे इंसान का मांस खाते हुए नजर आते थे। लेकिन अगर आपको ये लगता है कि ऐसी चीजें सिर्फ फिल्मों में ही होती है तो आप गलत साबित हो सकते हैं। दरअसल, साइंटिस्ट्स ने ऐसे जॉम्बी वायरस को जिंदा कर दिया है जिसके चपेट में आने के बाद लोग दूसरे इंसान का मांस खाने लगेंगे। ये वायरस बीते कई हजारों साल से बर्फ में दबा हुआ था।रुस और कनाडा में बीते कई सालों से साइंटिस्ट्स रिसर्च कर रहे हैं।ये साइंटिस्ट्स वहां मौजूद पर्माफ्रॉस्ट की टेस्टिंग करते हैं। अब इन टेस्टिंग्स में एक ऐसा वायरस मिला है, जो जॉम्बी वायरस हो सकता है। कहा जा रहा है कि ये वायरस बीते 48 हजार से पर्माफ्रॉस्ट में जमा हुआ था।
लेकिन अब ये फिर से जिंदा किया जा सकता है। लेकिन ये खतरे की बात है। अगर ये दुनिया में फ़ैल गया तो दुनिया के लोग जॉम्बी बनकर दूसरे इंसान का मांस खाने वाले बन जाएंगे।कनाडा और रुस में मौजूद पर्माफ्रॉस्ट हमेशा से साइंटिस्ट्स की पहली पसंद रहे हैं। इसमें कई तरह के अवशेष मिलते हैं। कई ऐसे जानवरों का जीवाश्म इसमें मिला है, जो अब इस दुनिया में नहीं है। इनके मिलने से लोगों को नई जानकारी भी मिलती है। लेकिन इस बार जो वायरस मिला हो, वो कई लोगों की नींद उड़ा इस जॉम्बी वायरस की वजह से दुनिया में नई तबाही मच सकती है।
अगर ये दुनिया में किसी भी लापरवाही से फ़ैल गया तो लोग दूसरे इंसान का मांस खाने लगेंगे। और इसके बाद जो होगा उसकी मात्र कल्पना ही की जा सकती है।जॉम्बी वायरस की तलाश में बीते कई साल से लगे थे जीन मिशेल क्लावेरिए। फ्रांस के एक्स मार्सेल्ले यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ मेडिसिन के प्रोफेसर जीन के हाथ अब जॉम्बी वायरस लग गया है। बताया जा रहा है कि इसमें से कुछ को प्रोफेसर ने पुनर्जीवित भी कर दिया है। जिस वायरस को जॉम्बी वायरस बताया जा रहा है वो करीब 48,500 साल पुराना है। ये बर्फ में 16 मीटर की गहराई में छिपा था। वहीं एक और की उम्र 27 हजार साल पुरानी बताई जा रही है।
हालांकि, जीन का दावा है कि इन वायरस को यूं पुनर्जीवित किया गया है कि ये इंसानों को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। लेकिन इसके बाद भी कई लोगों ने इसे लेकर चिंता जताई है। अगर गलती से भी ये वायरस इंसानों पर रियेक्ट कर गया, तो दुनिया में तबाही आ जाएगी। अब कोरोना के बाद एक और वायरस का कहर झेलने की हिम्मत शायद किसी में नहीं बची है। ऐसे में कई लोगों ने ऐसे रिसर्च को बंद ही कर देने की मांग की है।
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